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    अंजुरी में स्वर्ग से गीतों का झरना

    Devanand SinghBy Devanand SinghDecember 20, 2021No Comments9 Mins Read
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     अंजुरी में स्वर्ग से गीतों का झरना
    ************************************

    जिस छोटे-से कद के व्यक्ति को मैं यहाँ आपके सामने ला रहा हूँ वह देखने में साधारण सा लगता है । यह देखकर अनुमान लगाना कठिन होगा कि शान्त चित्त वाले इस व्यक्ति की प्रतिभा माता सरस्वती की वीणा की लय पर ही अंगड़ाई लेती रही है और अपनी अंजुरी से भर भरकर यह व्यक्ति जनमानस को अपने गीतों से अभिषेक करता रहा है। हाँ, तो मैं जिस छोटे से कद वाले व्यक्ति की चर्चा कर रहा हूँ वही आपके सम्मुख मामचंद अग्रवाल वसंत यानी वसंत जमशेदपुरी के नाम से चर्चित हैं।

    जीवन के किस मोड़ पर क्या होगा–यह कहना मैं समझता हूँ असम्भव है। हाँ, इसे संयोग कहा जा सकता है जो मन में बिना सोचे कोई व्यक्ति से आपकी मुलाकात हो जाये या कोई घटना घट जाये। इसी सन्दर्भ में मैं उस शाम की याद करता हूँ जो मेरे इस दिल के कोरे कागज पर हौले से कुछ पंक्तियाँ लिख गयी जो स्मृतियों की आँच में और निखरती गयीं। उस निखार के आईने में मामचंद अग्रवाल वसंत ने अपने इस साहित्यिक नाम ‘ वसंत जमशेदपुरी ‘ को अपनी काव्यात्मक चेतना में पूरी तरह समर्पित कर दिया, उनकी लेखनी का अजस्र प्रवाह साहित्य के स्तर को समृद्ध तो करता ही है अपनी छोटी-सी अंजुरी में से पूरी मानवता को अपने गीतों की लड़ियों का उपहार भी देता जाता है।

    मैं उस शाम को कभी भूल नहीं सकता क्योंकि उसी शाम दिनांक ३०/११/२०१९ को बड़े भाई कविश्रेष्ठ श्यामल सुमन के बेटे के वैवाहिक प्रीतिभोज का भव्य आयोजन किया गया था। वह शाम मेरी स्मृति में अभी भी मूर्त है। उस शाम को मैं इसलिए विशिष्ट मानता हूँ क्योंकि मुझे कवयित्री माधवी उपाध्याय, वीणा पाण्डेय भारती और मामचंद अग्रवाल वसंत जी से भेंट हुई थी। मेरे साथ डाॅ अरुण कुमार शर्मा और विनसा विवेका भी थे। उस समय मामचंद अग्रवाल वसंत जी से मेरी पहली मुलाकात हुई थी। बस इधर-उधर की बातें ही होती रही।हाँ, वीणा पाण्डेय भारती और माधवी उपाध्याय की पहल से दो-तीन तस्वीरें अवश्य ली गयीं जो आज भी मेरे मोबाइल में सुरक्षित हैं। उस समय तक मैं भाई मामचंद जी की अप्रतिम प्रतिभा से पूरी तरह अपरिचित था। जैसे-जैसे इनसे मेरा परिचय बढ़ता गया, फेसबुक पर इनकी कविताओं के गहराई में मैं डूबता गया वैसे-वैसे इनकी अप्रतिम प्रतिभा भी मेरे सामने खुलने लगी। मामचंद अग्रवाल वसंत जी को पूरी तरह वसंत जमशेदपुरी में बदलते देखा है मैंने ।

    आज फेसबुक को देखता हूँ तो मुझे इनके गीतों, गजलों और दोहों के भाव तथा शिल्प साहित्य के प्रतिमानों को लिए हुए होते हैं। इसीलिए हास्य- व्यंग्य के नवीन हस्ताक्षर दीपक वर्मा ‘दीप’ ने इन्हें दोहा किंग कहा है। मामचंद अग्रवाल वसंत जी छन्दों में रचनाएँ लिखने वाले एक सशक्त हस्ताक्षर हैं–इसमें दो मत नहीं। इनके गोतों में आये हुए शब्द यों ही प्रयुक्त नहीं हुए हैं अपितु काव्य-सृजन की कलात्मकता को जीते हुए ये शब्द बहुत मुखर होते हैं —

    ” सूखी नदिया धन्य हो गई,
    अंतर्मन सरसाया |
    टूट गए तटबंध नेह के,
    तन ऐसा हुलसाया |
    जाल लिए नदियों के तट पर,
    आ पहुँचे मछुआरे ||
    -वसंत जमशेदपुरी
    ( प्रथम गीत संकलन”अँजुरी भर गीत”से)

    इस गीत की इन पँक्तियों में जो शब्द प्रयुक्त हुए हैं वे बहुत ही सहज हैं लेकिन पूरे सन्दर्भ में काव्य के प्राकृतिक मनोहारी आनंद को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त कर रहे हैं। जब मनुष्य स्वयं के आनंद को व्यक्त करने में असमर्थ पाता है या संकोच का अनुभव करता है या वह उस आनंद का अनुभव वह अपने अवचेतन मन में करता है, लेकिन वही मनुष्य प्राकृतिक उपादानों में होते हुए परिवर्तन से हर्षित होने का अनुभव करता है। यहाँ कवि यही कहना चाहता है।

    कवि जीवन-संघर्षों में भी न तो कभी भयभीत होता और ना हीं दूसरों को हतोत्साहित होने देता है। वह स्वप्नदर्शी होने के साथ-साथ जीवन जीने की नींव की मजबूती चाहता है। वह इन पँक्तियों में कहता है–

    ” रुकना-झुकना मैं क्या जानूँ,
    बाधाओं से डरना क्या |
    कोई नहीं ईश से पर्दा,
    फिर मानव से करना क्या |
    साँसों का अनमोल खजाना,
    जब तक मेरे पास सुनो-
    लड़ना ही है जीवन मेरा,
    लड़े बिना भी मरना क्या |
    मुझको तो ये लड़ना-भिड़ना,
    बस मनुहार लगे || ”

    मामचंद अग्रवाल वसंत के गीतों में प्रयुक्त शब्द कवि के जिये गये क्षणों की अभिव्यक्ति है जो भावलोक को सहज ढंग से संस्पर्श करते हैं। इसके गीतों की सहजता इसके शब्दों में देखी जा सकती है जहाँ कवि की संवेदनात्मक सृजन के बहुत सशक्त संवाहक हैं—-

    ” जब-जब मेघ झरे अंबर से

    जब-जब मेघ झरे अंबर से,
    झंझा पंथ बुहारे |
    तब-तब प्रीति-पखेरू बोले,
    आजा प्रीतम प्यारे ||
    ( अंजुरी भर गीत’ से)

    भाव पक्ष कवि की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति कही जा सकती है जो इसके गीतों के शिल्प-पक्ष के मूर्त रूपों में परिलक्षित होती है– शब्दों से सौन्दर्य की अद्भुत सृष्टि कवि वसंत जमशेदपुरी के गीत की इन पँक्तियों में स्पष्टतः देखी जा सकती है।

    ” सोने जैसी केश-राशि अब,
    रजत-सरीखी लगती है |
    जिन पर गजल लिखी थी तुमने,
    बस पाती में मिलती है |
    तुम बिन इन उलझी जुल्फों को,
    बोलो प्रियतम कौन सँवारे ||
    ( अंजुरी भर गीत ‘ से )

    इन पँक्तियों में उपमा का प्रयोग कवि के काव्य-सृजन का वह पक्ष है जो सौन्दर्य-बोध को और तीव्रता से अनुभव कराता है।

    कविवर मामचंद अग्रवाल वसंत की विविध काव्यात्मक ऊँचाई सिर्फ गीतों में ही नहीं अपितु गज़लों में भी देखी जा सकती है। हालाँकि गीतों और दोहों में मामचंद अग्रवाल वसंत एक विशिष्ट पहचान रखते हैं, फिर भी कवि की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति किसी खास परिपाटी में समायोजित नहीं की जा सकती। अगर वह रचनाकार है तो उसकी लेखनी की बेचैनी अपनी अभिव्यक्ति का मार्ग तलाश ही लेती है। इनकी काव्यात्मक ऊँचाई के लिए कविता पत्रिका के सम्पादक और लेखक अनुज मुकेश रंजन ने 2020 में प्रथम ‘ कविता सम्मान ‘ से सम्मानित किया और ‘ रचनाकार मंच ‘ ने इनकी रचनाओं की गहराई को देखते हुए सम्मानित किया। इसीतरह कवि की साधना अनवरत चलती रही, खैर। मैं कवि के भावलोक के बारे में बता रहा था तो कभी-कभी कविवर मामचंद अग्रवाल वसंत के भावलोक इनकी ग़ज़लों में भी उतर आता है और वह हमें प्रभावित किये बिना नहीं रहता। वसंत जमशेदपुरी की प्रतिबद्धता सिर्फ अपने रचना-कर्म से ही नहीं अपितु उस समाज से है जो पूरे राष्ट्र की नब्ज छूता है—

    ” जीत लो दुनिया को अपने प्यार से
    व्यर्थ कोशिश मत करो तलवार से

    गुफ्तगू भी अब हमारी बंद है
    ये सिला हमको मिला तकरार से

    कुछ तो कोशिश कर कि सँवरे जिंदगी
    मत बहुत उम्मीद कर सरकार से। ”

    छन्दों के विविध रूपों में इनकी लेखनी अनवरत चलती है। दोहे की रचना हमें इन्हें ‘दोहा किंग ‘ कहने पर मजबूर कर देता है।
    इन्होंने बहुत से अच्छे-अच्छे दोहे लिखें हैं जिनसे सम्भवतः रहीम और बिहारीलाल की अनुपस्थिति का अहसास नहीं होने देते। यहाँ उनके दोहों में से एक दोहे की कुछ पँक्तियाँ कवि के दोहे में पारंगत होने का सटीक प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।

    ” तम को यों ललकार कर,बोला नन्हा दीप |
    जब तक बाती,तेल है,आना नहीं समीप ||

    मावस कार्तिक मास की,दीपों का त्यौहार |
    लक्ष्मी आए अवनि पर,करने को उजियार ||

    बाँटें सभी मिठाइयाँ,पहनें नव-परिधान |
    माता लक्ष्मी दे रही,समृद्धि का वरदान ||

    है प्रकाश का पर्व यह, दीपमालिका नाम |
    अवध पुरी में आज ही,लौटे वन से राम || ”

    ×÷÷÷÷××÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

    चन्द्रमुखी को देखकर , कहे चंद्र यह बात
    चंद्र चंद्र को अर्घ्य दे, बड़ी अनोखी रात

    तम को यों ललकार कर, बोला नन्हा दीप
    जब तक बाती तेल है आन नहीं समीप ”

    मामचंद अग्रवाल वसंत के अबतक दो काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ‘ अंजुरी भर गीत ‘ तथा ‘ ससुराला ‘ ‘ अंजुरी भर गीत ‘ जो कवि का प्रथम गीत-संग्रह है, बहुत ही प्रीतिकर है।
    अंजुरी भर गीत ‘ यानी वैसे गीत जो अंजुरी में आ जायें ।अंजुरी में कभी गीत समा सकता है भला ? आप सोचेंगे –यह अंजुरी और गीत, दोनों में कोई तालमेल नहीं लेकिन आप शब्दों के पीछे कवि की कोमल भावनाओं के धरातल पर उतरिए यहाँ ‘अंजुरी ‘ बहुत ही प्यारा शब्द है। ठीक उसी तरह जैसे गीतों का सम्बन्ध दिल से होता है वैसे ही यह शब्द ‘अंजुरी ‘ है। ‘अंजुरी ‘ एशब्द पर गौर करें तो दिल धड़क उठता है और एक ऐसा प्यार, एक ऐसी दिलकश रवानगी जिससे कि दिल की साँकल अपने आप खुल जाती है और भाई कविवर मामचंद अग्रवाल वसंत जमशेदपुरी के गीतों की संवेदना इस अंजुरी से निकलकर हमारी, आपकी यहाँ तक कि पूरी जम्हूरियत की मीठी-सी गुनगुनाहट बन जाती है। इसी धड़कन में अंजुरी भर गीतों का बसेरा है। ‘ ‘ ससुराला ‘ में मुक्तकों का संग्रह है। इन छोटे-छोटे मुक्तकों में कवि ने ससुराल की गतिविधियों को हास्य-व्यंग्य के साथ बहुत ही रोचक ढंग से पेश किया है।

    कवि मामचंद अग्रवाल वसंत की रचनाएँ भाव और शिल्प दोनों स्तरों को आत्मसात करती हुई रची जाती हैं। जिन कविताओं में भाव के साथ-साथ शिल्प – कला भी है, वह कवि की अन्यतम रचना है ,क्योंकि काव्य-सृजन सिर्फ भाव-पक्ष का नाम नहीं है बल्कि उस शिल्प-पक्ष का भी है जो किसी भी रचना को सशक्त बनाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि वसंत जमशेदपुरी की कविताएँ भाव और शिल्प दोनों को समाहित की हुई हैं।

    यहाँ मैं मामचंद अग्रवाल वसंत जी की जीवन- शैली और महाकवि जयशंकर प्रसाद की जीवन शैली की बस तुलना कर रहा हूँ। चूँकि महाकवि की जीवन शैली अकस्मात याद आ गई । यहाँ महाकवि जयशंकर प्रसाद के कवि कर्म और चिन्तन के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता। वे हमारे आज भी आदर्श हैं और आगे भी रहेंगे । मेरे ख्याल से उस आर्य मनीषी महाकवि चिन्तक के चरणों के निकट बैठकर हम सीख सकते हैं, लेकिन जीविका से संबंधित दोनों एक ही समानान्तर रेखाओं पर दिखे। महाकवि जयशंकर प्रसाद सुँघनी साहू नाम से तम्बाकू की दूकान चलाते थे और मामचंद अग्रवाल वसंत जी कपड़े की दूकान चलाते हैं, इसीलिए मैंने जीवन शैली की बात उठायी न कि आन्तरिक काव्य धारा की,अस्तु।

    यह मन बहुत भागता है लेकिन इसी भागने के क्रम में हीं जिये गये लम्हों को जब कुछ ठहर कर देखता है तब उसे अहसास होता है कि बहुत सी अनमोल चीजें भागने के क्रम में छूट गईं और तब एक संताप, एक खिन्नता उसे परेशान कर देती है। हाँ, कभी-कभी इसी क्रम में उसका सामना ऐसे कवि से हो जाता है जो गीतों की दुनिया में काव्य-सृजन का गीत लिखता है।
    मामचंद अग्रवाल वसंत की साहित्यिक उपलब्धि गीत-मालाओं से पूरी तरह सजी हुई है। हमें यही गीत-मालाएँ मन-प्राणों के लिए जीने का मार्ग प्रशस्त करती हैं। आज हम ‘अखिल भारतीय साहित्य परिषद् ‘ इन्हें पाकर गौरवान्वित होते हैं।

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    राजमंगल पाण्डेय,19 /12 21
    © सर्वाधिकार सुरक्षित

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