गुरुचरण महतो ने मजदूरों को समर्पित करते हुए लिखा “मजदूर अब मजबूर नहीं”*
जमशेदपुर:शहर के बारीडीह निवासी युवा कवि गुरुचरण महतो ने समस्त मजदूरों को समर्पित करते हुए 1मई(अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस) के मौके पर एक कविता लिखा है।टाटा स्टील लिमिटेड में स्वयं स्थायी मजदूर की हैसियत से कार्यरत गुरुचरण महतो ने बताया कि विश्व की सारी संस्कृति और सभ्यताओं को मजदूरों ने अपने खून पसीना से खींचा है। विश्व विरासतों,शहरोंऔर दार्शनिक स्थलों को आकार देने,सजाने और संभाल कर रखने में इनका योगदान अतुलनीय है।इसके बावजूद वे अपने अधिकारों से वंचित है।सरकार के साथ-साथ निजी ओद्यौगिक इकाइयों को भी इन लोगों पर ध्यान देने की जरूरत है।कवि गुरुचरण महतो ने आगे लिखा है कि हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि ये लोग मजदूर हैं,मजबूर तो कतई नहीं।
मजदूर अब मजबूर नहीं*
*कवि:गुरुचरण महतो(बारीडीह,जमशेदपुर)*
मेरे मजदूर भाइयों!
क्या तुम्हें याद भी थोड़ा है
किसी से सुना या कहीं पढ़ा है,
1886 की शिकागो में
अमेरिकन इतिहास में जो गढ़ा है।
वैश्विक संस्कृति और सभ्यता को
हमने खून-पसीने से सींचा है,
चिलचिलाती धूप की छांव में
माटी-सीमेंट में सनकर भींचा है।
ये बांध,आलीशान मकानें
नित नतून मशीन कारखानें,
लहराते फसल की हो राज
या संगमरमरी महल सी ताज।
चाहे हो पिरामिड,झुकी मीनार
एफिल टावर या चीन की दीवार,
मां लिबर्टी स्तंभ सी स्थिर
खजुराहो-कोणार्क की मंदिर।
जी तोड़ मेहनत करते गए
धरोहरों को संभालते गए,
हाथ हथौड़े हाथ में लेकर
अपनी वजूद क्यों भूलते गए।
मेरे मजदूर भाइयों!
एक वो दिन और आज है एक दिन
मजदूर दिवस,मई का पहला दिन,
जो बिगुल तब थी बजी
अब सदियों तक गूंजेगी,
हमारी हक के लिए बजेगी
हमारी हक के लिए लड़ेंगी,
जो उन्होंने तब थी कहीं
सब कहें आज हम भी वहीं
हम मजदूर हैं मजदूर,मजबूर नहीं।।