युवा नेतृत्व पर भरोसा
देवानंद सिंह
झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 के मतगणना के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे बड़ी पार्टी उभरकर सामने आई है। इसीलिए मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य में गठबंधन सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया है। प्रदेश को युवा नेतृत्व मिलने से पूरे झारखंड में जश्न का माहौल है। और चोरों ओर हेमंत सोरेन की जमकर तारीफ भी हो रही है कि वन मैन आर्मी होने के बाद भी उन्होंने बीजेपी की पूरी मशीनरी और सुपरस्टार प्रचारकों की मेहनत पर पानी फेर दिया और युवा नेतृत्व पर झारखंड की जनता ने भरोसा जताया।
हेमंत सोरेन पहले भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं और उन्हें न सिर्फ शासन चलाने का अनुभव है, बल्कि वह प्रदेश की जनता की जरूरत को भी समझते हैं, इसीलिए उन्होंने जीत के बाद जिस विनम्र भाषा में झारखंड के बेटे, भाई और परिवार के नाते काम करने की बात कही, वह इस बात को दर्शाती है कि हेमंत सोरेन एक संकल्प के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं और उसमें वह राज्य के हर वर्ग, समुदाय का सहयोग चाहते हैं।
हेमंत राज्य के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। अब जब वह फिर राज्य के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं तो उनकी सर्वमान्य स्वीकार्यता पर किसी को शक नहीं है। अपने गठबंधन में वह नेता तो हैं ही, बल्कि यह बात भी उनके पक्ष में पूरी तरह जाती है कि उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर भी सामने आई है। यह भी अपने-आप में हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी की बहुत बड़ी सफलता है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता शिबू सोरेन के बेटे हेमंत इन चुनावों में जेएमएम-कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन का चेहरा थे। और उन्होंने जिस तरह चुनाव प्रचार के दौरान अपने गठबंधन का नेतृत्व किया, वह भी बीजेपी को धराशाही करने वाला बड़ा कारण रहा। और अब उम्मीद यही की जाएगी कि आगामी पांच वर्षों तक वह गठबंधन को इसी तरह एक सूत्र में बांध कर रखेंगे, जिससे बिना किसी विवाद के सरकार भी चले और राज्य का विकास भी समांनतर चले, क्योंकि गरीब राज्य होने की वजह से राज्य में अभी बहुत काम करने की आवश्यकता है। हेमंत सोरेन जमीन से जुड़े हुए नेता हैं और झारखंड राज्य के लिए उनके पिता शिबू सोरेन व अन्य नेताओं द्बारा किए गए संघर्ष को भली-भांति जानते हैं। और अगर, वह किसान, गरीब, शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करते हैं तो निश्चित ही यह बात साफ हो जाती है कि उनके दिमाग में राज्य के विकास को लेकर खाका बिल्कुल साफ है। इसीलिए इस बात पर किसी को संकोच नहीं होना चाहिए कि राज्य के विकास गति पिछले सरकार से कमतर रहेगी। हेमंत सोरेन की सबसे बड़ी खूबी यह भी है कि वह जमीनी हकीकत को करीब से जानने पर अधिक विश्वास करते हैं, इसीलिए वह सरकार से बाहर होने के दौरान भी लगातार लोगों से जुड़ाव बनाए रखते थे। जिसका परिणाम आज सामने है, जबकि रघुवर दास को लोगों से सीधा संबंध नहीं रखना ही भारी पड़ गया। हेमंत सोरेन 19वीं सदी के आदिवासी नायक बिरसा मुंडा को मानते हैं, इसीलिए वह राज्य के विकास में उनकी क्या भूमिका होनी चाहिए, वह इस बात को भली भांति जानते हैं, इसीलिए वह एक मंझे हुए राजनेता के तौर पर अपनी बात रखते हैं और एक असली नेता की उस जरूरत को समझते हैं, जिसमें जमीनी हकीकत का जुड़ाव होना बेहद जरूरी होता है।
राजनीति की बहुत-सी सीढ़ियां चढ़ चुके हेमंत भले ही आज गंभीर राजनेता के तौर पर जाने जाते हैं, लेकिन मगढ़ जिले के नेमरा गांव में शिबू सोरेन और रूपी के घर 10अगस्त, 1975 को जन्मे हेमंत का राजनीति में पर्दापण भी एक घटना की तरह ही है। या यूं कहें कि उनके बड़े भाई की मौत होने के बाद ही उनके करियर में राजनीति जुड़ी। 2००9 में उनके बड़े भाई दुर्गा की असमय मौत हो गई थी। पहले उन्हें ही शिबू सोरेन का उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन उनकी असमय मौत के बाद हेमंत राज्य की राजनीति के केंद्र में आए। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार राज्य की राजनीतिक सक्रिय होते गए।
राज्य सभा के सांसद के तौर पर वह 24 जून, 2009 से लेकर 4 जनवरी, 2010के बीच संसद भी पहुंचे। सितंबर में वह बीजेपी/जेएमएम/जेडीयू/एजेएसयू गठबंधन की अर्जुन मुंडा सरकार में झारखंड के उपमुख्यमंत्री भी बने। इससे पहले वह 2013 में राज्य के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री भी बने और दिसंबर 2014 तक इस पद पर रहे। इसीलिए शासन का अनुभव हेमंत के लिए कोई नया नहीं है, बशर्ते उनके समक्ष नई चुनौतियां होंगी और रघुवर दास सरकार से कुछ अलग करने दवाब भी। लेकिन जिस तरह अपने नेतृत्व के दम पर उन्होंने बड़ी जीत हासिल की है, उसी प्रकार वह राज्य को भी मजबूत दिशा देने में निश्चित ही सफल होंगे।
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