आरजेडी के लिए पारिवारिक संकट या राजनीतिक रणनीति?
देवानंद सिंह
बिहार की राजनीति एक ऐसे मोड़ पर खड़ी हो गई है, जहां परिवार, नैतिकता, सत्ता और छवि चारों के द्वंद्व ने एक नया रूप ले लिया है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है। यह फैसला तेज प्रताप द्वारा फेसबुक पर एक व्यक्तिगत प्रेम-संबंध को सार्वजनिक करने के बाद आया, जिसे उन्होंने बाद में अकाउंट हैक बताते हुए डिलीट भी कर दिया, हालांकि, सार्वजनिक और राजनीतिक हलकों में इस घटनाक्रम ने गंभीर हलचल मचा दी है। बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में इस घटनाक्रम के निहितार्थ को सिर्फ एक पारिवारिक विवाद कह कर टाला नहीं जा सकता है।
दरअसल, गत 24 मई को तेज प्रताप यादव ने अपने फेसबुक पोस्ट में एक लड़की से 12 साल पुराने प्रेम संबंध की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार की। यह पोस्ट कुछ ही समय में वायरल हो गया और इससे राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया। तेज प्रताप ने इसे बाद में अकाउंट हैक का नतीजा बताया, लेकिन तब तक यह मुद्दा आरजेडी के लिए सार्वजनिक असहजता का कारण बन चुका था। पार्टी के भीतर पहले से ही उनके विवादास्पद बयानों और व्यवहार को लेकर बेचैनी थी, और यह प्रकरण उस असंतुलन की पराकाष्ठा बन गया।
लालू यादव ने इस बार जिस तरह से तेज प्रताप को सख्ती से बाहर का रास्ता दिखाया, वह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि इस बार पार्टी नेतृत्व ने नुकसान की आशंका को गंभीरता से लिया है। यह निर्णय केवल एक पारिवारिक पिता द्वारा नहीं, बल्कि एक अनुभवी राजनेता द्वारा लिया गया निर्णय प्रतीत होता है, जो चुनाव से पहले किसी भी प्रकार की नैतिक विफलता के आरोप से पार्टी को बचाना चाहता है। तेज प्रताप यादव अपने राजनीतिक जीवन में हमेशा एक रंगीन और विचित्र व्यक्तित्व के रूप में सामने आए हैं। कृष्ण, शिव जैसे रूपों में सड़कों पर उतरना, बांसुरी बजाना, ‘किंगमेकर’ और ‘सारथी’ जैसे उपमाओं से खुद को नवाजना, इन सबने उन्हें एक गंभीर राजनेता के बजाय एक सनकी नेता की छवि में ढाल दिया। यही कारण है कि पार्टी के भीतर उनके बयानों और व्यवहार को लेकर अक्सर असहजता देखी जाती रही है।
साल 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने ‘लालू राबड़ी मोर्चा’ बनाकर आरजेडी प्रत्याशी के खिलाफ स्वतंत्र उम्मीदवार को समर्थन दिया था, जिससे आरजेडी को जहानाबाद सीट पर नुकसान उठाना पड़ा। इसके अलावा, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से उनकी खुली नाराज़गी और सोशल मीडिया पर बयानबाज़ी ने उन्हें एक विद्रोही और अप्रत्याशित नेता की छवि दी है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह निर्णय महज़ तेज प्रताप की हरकतों का परिणाम नहीं है, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह पब्लिक कंजम्प्शन के लिए उठाया गया कदम है। लालू यादव को डर है कि अगर मामला नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों पर चला गया तो इसका नुकसान आगामी चुनावों में उठाना पड़ सकता है। इस संदर्भ में देखा जाए तो यह निष्कासन एक प्रतीकात्मक कार्रवाई है, ताकि पार्टी की छवि को नुकसान से बचाया जा सके, इसीलिए यह एक सांकेतिक एक्शन है, यानी परिवार के भीतर संवाद की खिड़की खुली है, लेकिन जनता और मीडिया के समक्ष यह संदेश देना जरूरी था कि पार्टी अनुशासन के मामले में सख्त है।
तेज प्रताप और तेजस्वी यादव दोनों ने साल 2015 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन तेजस्वी ने लगातार परिपक्वता, संयम और राजनीतिक समझ का परिचय दिया। यही वजह है कि आरजेडी में आज उनकी नेतृत्व स्वीकार्यता सर्वोच्च है, जबकि तेज प्रताप लगातार विरोध, सनक और अस्थिरता का प्रदर्शन करते रहे हैं।
आज की तारीख में तेजस्वी, आरजेडी ही नहीं बल्कि पूरे महागठबंधन का प्रमुख चेहरा हैं। उनकी छवि एक युवा, सशक्त और नीतिपरक नेता की बनी है, जो सामाजिक न्याय की राजनीति को व्यावहारिक शासन में बदलने की क्षमता रखता है। तेज प्रताप के सार्वजनिक कृत्य और उनके द्वारा पैदा किए गए विवाद इसी छवि के लिए चुनौती बनते रहे हैं।
तेज प्रताप के फेसबुक पोस्ट ने विपक्ष को भी एक नया हथियार दे दिया है। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी से लेकर जेडीयू और बीजेपी के नेताओं ने लालू परिवार पर नैतिकता और महिला सम्मान को लेकर हमले तेज कर दिए हैं। ऐश्वर्या राय के साथ तेज प्रताप के वैवाहिक विवाद को भी एक बार फिर राजनीतिक बहस में घसीटा जा रहा है। यह स्थिति महागठबंधन के लिए असहज है, खासकर तब जब वह भाजपा के संस्कार और परिवारवाद विरोधी नैरेटिव से जूझ रहा है। आरजेडी को यह समझ में आ गया है कि अगर, ऐसे मामलों पर तुरन्त और प्रतीकात्मक कार्रवाई नहीं की गई तो भाजपा इसका राजनीतिक लाभ उठा सकती है।
ऐसे में, सवाल यह है कि क्या यह निष्कासन स्थायी है? विश्लेषकों का मानना है कि यह निष्कासन सिर्फ एक संदेश देने का माध्यम है। परिवार के भीतर तेज प्रताप को अब भी स्पेस है और चुनाव से पहले उन्हें दोबारा पार्टी में लाया जा सकता है। इसके कारण हैं, राबड़ी देवी और लालू यादव पर भावनात्मक दबाव बना कर तेज प्रताप को वापस लाया जाएगा, खासकर तब जब सीटों का वितरण तय होगा। दूसरा, आरजेडी महुआ जैसी कोई सीट सहयोगी दल को दे देगी और तेज प्रताप निर्दलीय या किसी दोस्ताना प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ेंगे, जहां यादव-मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं।
कुल मिलाकर, लालू प्रसाद यादव राजनीति में जितने सिद्धहस्त हैं, उतने ही पारिवारिक संतुलन के प्रबंधन में भी दक्ष माने जाते हैं, लेकिन मौजूदा स्थिति उनके लिए एक दोधारी तलवार है। एक तरफ उन्हें तेजस्वी की नेतृत्व छवि को सुरक्षित रखना है, वहीं तेज प्रताप जैसे असंतुलित तत्व को संभालना भी जरूरी है, जो कभी भी पार्टी के लिए संकट उत्पन्न कर सकता है। इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार की राजनीति में अब सिर्फ जातीय समीकरण और करिश्माई नेतृत्व ही काफी नहीं है। राजनीतिक नैतिकता, सार्वजनिक आचरण और नेतृत्व की एकरूपता, इन सबका संयोजन आवश्यक है। लालू यादव का यह कदम यही दर्शाता है कि आरजेडी अब नेतृत्व और नैतिकता दोनों मोर्चों पर तेजस्वी को आगे रखकर चुनावी रणभूमि में उतरना चाहती है। तेज प्रताप की असहमति, उनकी विद्रोही मुद्रा और सार्वजनिक रूप से विवादास्पद बयानबाज़ी अब पार्टी की प्राथमिकताओं में नहीं हैं।
ऐसे में, यह निष्कासन इस बात का भी संकेत है कि आरजेडी अब केवल ‘लालू का कुनबा’ नहीं रह गया है, बल्कि वह खुद को एक संगठित और अनुशासित राजनीतिक दल के रूप में पुनर्परिभाषित करने की कोशिश कर रही है। तेज प्रताप के लिए यह एक आत्ममंथन का समय है कि क्या वह खुद को फिर से स्थापित कर पाएंगे या अपनी ही छाया में रहकर विलीन हो जाएंगे?