Close Menu
Rashtra SamvadRashtra Samvad
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • होम
    • राष्ट्रीय
    • अन्तर्राष्ट्रीय
    • राज्यों से
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
      • ओड़िशा
    • संपादकीय
      • मेहमान का पन्ना
      • साहित्य
      • खबरीलाल
    • खेल
    • वीडियो
    • ईपेपर
      • दैनिक ई-पेपर
      • ई-मैगजीन
      • साप्ताहिक ई-पेपर
    Topics:
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Home » किशोरों में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति गंभीर चुनौती : ललित गर्ग
    Breaking News Headlines मेहमान का पन्ना राष्ट्रीय शिक्षा

    किशोरों में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति गंभीर चुनौती : ललित गर्ग

    News DeskBy News DeskMay 24, 2025No Comments7 Mins Read
    Share Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Share
    Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link

    किशोरों में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति गंभीर चुनौती
    – ललित गर्ग –

    भारतीय बच्चों में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति एवं क्रूर मानसिकता चिन्ताजनक है, नये भारत एवं विकसित भारत के भाल पर यह बदनुमा दाग है। पिछले कुछ समय से स्कूली बच्चों में बढ़ती हिंसा की प्रवृत्ति निश्चित रूप से डरावनी, मर्मांतक एवं खौफनाक है। चिंता का बड़ा कारण इसलिए भी है क्योंकि जिस उम्र में बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास की नींव रखी जाती है, उसी उम्र में कई बच्चों में आक्रामकता एवं क्रूर मानसिकता घर करने लगी है और उनका व्यवहार हिंसक होता जा रहा है। कैथल जनपद के गांव धनौरी में दो किशोरों की निर्मम एवं क्रूर हत्या की हृदयविदारक घटना न केवल उद्वेलित एवं भयभीत करने वाली है बल्कि चिन्ताजनक है। चौदह-पंद्रह साल के दो किशोरों की गला रेतकर हत्या कर देना और वह भी उनके हमउम्र साथियों द्वारा, हर संवेदनशील इंसान को हिला देने वाली डरावनी एवं खैफनाक घटना है, जो किशोरों में पनप रहे हिंसक बर्ताव एवं हिंसक मानसिकता का घिनौना एवं घातक रूप है। जिस उम्र में बच्चों को पढ़ाई-लिखाई और खेलकूद में व्यस्त रहना चाहिए, उसमें उनमें बढ़ती आक्रामकता, हिंसा एवं क्रूरता एक अस्वाभाविक और परेशान करने वाली बात है। जाहिर है दसवीं-ग्यारहवीं के छात्रों की क्रूर हत्या हमारे समाज में बढ़ती संवेदनहीनता को भी दर्शाती है। ऐसी कई अन्य घटनाओं में स्कूल में पढ़ने वाले किसी बच्चे ने अपने सहपाठी पर चाकू या किसी घातक हथियार से हमला कर दिया और उसकी जान ले ली। अमेरिका की तर्ज पर भारत के बच्चों में हिंसक मानसिकता का पनपना हमारी शिक्षा, पारिवारिक एवं सामाजिक संरचना पर कई सवाल खड़े करती है।
    जैसाकि घटना से संबंधित तथ्यों में बताया गया कि हत्या में शामिल युवक धनौरी गांव के ही थे और कुछ दिन पहले किशोरों को धमकाने उनके घर आए थे। मारे गए किशोरों पर हत्या आरोपियों ने आरोप लगाया था कि वे उनकी बहनों से छेड़खानी करते थे। निश्चय ही ऐसे छेड़खानी के कथित आरोप को नैतिक दृष्टि से अनुचित ही कहा जाएगा, लेकिन उसका बदला हत्या कदापि नहीं हो सकती। यह दुखद है कि एक मृतक किशोर अरमान पांच बहनों का अकेला भाई था। घटना से उपजी त्रासदी से अरमान के परिवार पर हुए वज्रपात को सहज महसूस किया जा सकता है। उनके लिये जीवनभर न भुलाया जा सकने वाला दुख एवं संत्रास पैदा हुआ है। बड़ा सवाल है कि जिन वजहों से बच्चों के भीतर आक्रामकता एवं हिंसा पैदा हो रही है, उससे निपटने के लिए क्या किया जा रहा है? पाठ्यक्रमों का स्वरूप, पढ़ाई-लिखाई के तौर-तरीके, बच्चों के साथ घर से लेकर स्कूलों में हो रहा व्यवहार, उनकी रोजमर्रा की गतिविधियों का दायरा, संगति, सोशल मीडिया या टीवी से लेकर सिनेमा तक उसकी सोच-समझ को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों से तैयार होने वाली उनकी मनःस्थितियों के बारे में सरकार, समाजकर्मी एवं अभिभावक क्या समाधान खोज रहे हैं। बच्चों के व्यवहार और उनके भीतर घर करती प्रवृत्तियों पर मनोवैज्ञानिक पहलू से विचार किए बिना समस्या को कैसे दूर किया जा सकेगा?
    बहरहाल, इस हृदयविदारक एवं त्रासद घटना ने नयी बन रही समाज एवं परिवार व्यवस्था पर अनेक सवाल खड़े किये हैं। सवाल नये बन रहे समाज की नैतिकता एवं चरित्र से भी जुड़े हैं। निश्चित ही किसी परिवार की उम्मीदों का यूं कत्ल होना मर्मांतक एवं खौफनाक ही है। लेकिन सवाल ये है कि चौदह-पंद्रह साल के किशोरों पर यूं किन्हीं लड़कियों को छेड़ने के आरोप क्यों लग रहे हैं? पढ़ने-लिखने की उम्र में ये सोच कहां से आ रही है? क्यों हमारे अभिभावक बच्चों को ऐसे संस्कार नहीं दे पा रहे हैं ताकि वे किसी की बेटी व बहन को यूं परेशान न करें? क्यों लड़कियों से छेड़छाड़ की अश्लील एवं कामूक घटनाएं बढ़ रही है। क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था में नैतिक शिक्षा का वह पक्ष उपेक्षित हो चला है, जो उन्हें ऐसा करने से रोकता है? क्या शिक्षक छात्रों को सदाचारी व नैतिक मूल्यों का जीवन जीने की प्रेरणा देने में विफल हो रहे हैं? हत्या की घटना हत्यारों की मानसिकता पर भी सवाल उठाती है कि उन्होंने क्यों सोच लिया कि छेड़खानी का बदला हिंसा एवं क्रूरता से गला काटना हो सकता है? धनौरी की घटना के पूरे मामले की पुलिस अपने तरीके से जांच करेगी, लेकिन किशोर अवस्था में ऐसी घटना को अंजाम देने के पीछे बच्चे की मानसिकता का पता लगाना भी ज्यादा जरूरी है। दरअसल, दशकों तक बॉलीवुड की हिंदी फिल्मों ने समाज एवं विशेषतः किशोर पीढ़ी में जिस अपसंस्कृति का प्रसार किया, आज हमारा समाज उसकी त्रासदी झेल रहा है। इसमें दो राय नहीं कि किशोरवय में राह भटकने का खतरा ज्यादा रहता है।
    अब तक हिन्दी सिनेमा से समाज के किशोरवय और युवाओं में गलत संदेश गया कि निजी जीवन में छेड़खानी ही प्रेम कहानी में तब्दील हो सकती है। हमारे टीवी धारावाहिकों की संवेदनहीनता ने गुमराह किया है। बॉक्स आफिस की सफलता और टीआरपी के खेल ने मनोरंजक कार्यक्रमों में ऐसी नकारात्मकता एवं हिंसक प्रवृत्ति भर दी कि किशोरों में हिंसक एवं अराजक सोच पैदा हुई। इंटरनेट के विस्तार और सोशल मीडिया के प्रसार से स्वच्छंद यौन व्यवहार का ऐसा अराजक एवं अनियंत्रित रूप सामने आया कि जिसने किशोरों व युवकों को पथभ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित करना शुरू कर दिया। आज संकट ये है कि हर किशोर के हाथ में आया मोबाइल उसे समय से पहले वयस्क बना रहा है। जिस पर न परिवार का नियंत्रण है और न ही शिक्षकों का। ‘मन जो चाहे वही करो’ की मानसिकता वहां पनपती है जहां इंसानी रिश्तों के मूल्य समाप्त हो चुके होते हैं, जहां व्यक्तिवादी व्यवस्था में बच्चे बड़े होते-होते स्वछन्द हो जाते हैं। अर्थप्रधान दुनिया में माता-पिता के पास बच्चों के साथ बिताने के लिए समय ही नहीं बच पा रहा।
    आज किशोरों एवं युवाओं को प्रभावित करने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व नये-नये एप पश्चिमी अपसंस्कृति से संचालित हैं। इन पर अश्लीलता और यौन-विकृतियों वाले कार्यक्रमों का बोलबाला है। ऐसे कार्यक्रमों की बाढ़ हैं जिनमें हमारे पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों में स्वच्छंद यौन व्यवहार को हकीकत बनानेे का खेल चल रहा है। पारिवारिक एवं सामाजिक उदासीनता एवं संवादहीनता से ऐसे बच्चों के पास सही जीने का शिष्ट एवं अहिंसक सलीका नहीं होता। वक्त की पहचान नहीं होती। ऐसे बच्चों में मान-मर्यादा, शिष्टाचार, संबंधों की आत्मीयता, शांतिपूर्ण सहजीवन आदि का कोई खास ख्याल नहीं रहता। भौतिक सुख-सुविधाएं एवं यौनाचार ही जीवन का अंतिम लक्ष्य बन जाता है। भारतीय बच्चों में इस तरह का एकाकीपन उनमें गहरी हताशा, तीव्र आक्रोश और विषैले प्रतिशोध का भाव भर रहा है। वे मानसिक तौर पर बीमार बन रहे हैं, वे आत्मघाती-हिंसक बन रहे हैं और अपने पास उपलब्ध खतरनाक एवं घातक हथियारों का इस्तेमाल कर हत्याकांड कर बैठते हैं।
    ऑस्ट्रिया के क्लागेनफर्ट विश्वविद्यालय की ओर से किशोरों पर किए गए अध्ययन में पता चला है कि दुनिया भर में 35.8 प्रतिशत से ज्यादा किशोर मानसिक तनाव, अनिद्रा, अकारण भय, पारिवारिक अथवा सामाजिक हिंसा, चिड़चिड़ापन अथवा अन्य कारणों से जूझ रहे हैं। एकाकीपन बढ़ने से वे ज्यादा आक्रामक और विध्वंसक सोच की तरफ बढ़ने लगे हैं। मोबाइल व कथित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बह रहे नीले जहर से किशोर अराजक यौन व्यवहार एवं हिंसक प्रवृत्तियों की तरफ उन्मुख हुए हैं। किशोरों को समझाने वाला कोई नहीं है कि यह रास्ता आत्मघात का है। आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व ब्रिटेन जैसे देश किशोरों को मोबाइल से दूर रखने हेतु कानून बना रहे हैं। हमारे देश में भी शीर्ष अदालत ने समय-समय पर ऐसी घटनाओं पर तल्ख टिप्पणियां की हैं। क्या इन दर्दनाक घटनाओं से हमारे अभिभावकों, समाज-निर्माताओं एवं हमारे सत्ताधीशों की आंख खुलेगी? बच्चों से जुड़ी हिंसा की इन वीभत्स एवं त्रासद घटनाओं से जिन्दगी सहम गयी है। हमें मानवीय मूल्यों के लिहाज से भी विकास एवं नयी समाज-व्यवस्था की परख करनी होगी। बच्चों के भीतर हिंसा मनोरंजन की जगह ले रही है। इसी का नतीजा है कि छोटे-छोटे स्कूली बच्चे भी अपने किसी सहपाठी की हत्या तक कर रहे हैं। बच्चों के व्यवहार और उनके भीतर घर करती प्रवृत्तियों पर मनोवैज्ञानिक पहलू से विचार किए बिना समस्या को कैसे दूर किया जा सकेगा?

    किशोरों में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति गंभीर चुनौती - ललित गर्ग -
    Share. Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Previous Articleबड़वा गांव की हवेलियों में इतिहास की गूंज: ठाकुरों की गढ़ी से केसर तालाब तक
    Next Article डा सुधा नन्द झा ज्यौतिषी जमशेदपुर झारखंड द्वारा प्रस्तुत राशिफल क्या कहते हैं आपके सितारे देखिए अपना राशिफल

    Related Posts

    2018 की शराब नीति को अपनाकर हेमंत सरकार ने स्वीकार की भाजपा सरकार के नीति की श्रेष्ठता, सख्ती से हो पालन तभी आएंगे सकारात्मक परिणाम:पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास

    May 24, 2025

    हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड द्वारा राखा कॉपर माइंस जबरन बंदी के वक्त रैयतों के साथ धोखाधड़ी ग्राम सभा में उठ रहे है विरोध के स्वर

    May 24, 2025

    भाजपा सरकार आदिवासी को सरना/आदिवासी धर्म कोड नहीं देकर हिंदू बनाने की साजिश रच रही है : बुधराम लागुरी

    May 24, 2025

    Comments are closed.

    अभी-अभी

    2018 की शराब नीति को अपनाकर हेमंत सरकार ने स्वीकार की भाजपा सरकार के नीति की श्रेष्ठता, सख्ती से हो पालन तभी आएंगे सकारात्मक परिणाम:पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास

    हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड द्वारा राखा कॉपर माइंस जबरन बंदी के वक्त रैयतों के साथ धोखाधड़ी ग्राम सभा में उठ रहे है विरोध के स्वर

    भाजपा सरकार आदिवासी को सरना/आदिवासी धर्म कोड नहीं देकर हिंदू बनाने की साजिश रच रही है : बुधराम लागुरी

    नोडल पदाधिकारियों द्वारा प्रखंड एवं नगर निकाय क्षेत्रों में विकासात्मक एवं जनकल्याणकारी योजनाओं का किया गया निरीक्षण

    गोड्डा में अवैध शराब तस्करी का भंडाफोड़ लोहंडिया चौक से बोलेरो में 169 बोतल विदेशी शराब जब्त, चालक गिरफ्तार

    एग्रीको हेल्थ एसोसिएशन द्वारा आयोजित 15 दिवसीय समर कैंप 2025 का समापन

    लातेहार पुलिस को सफलता: JJMP सुप्रीमो 10 लाख इनामी पप्पू लोहरा समेत दो उग्रवादी मुठभेड़ में ढ़ेर

    गम्हरिया थाना प्रभारी कुणाल की संयम से टली बड़ी घटना  

    आपसी वर्चस्व को लेकर ट्रिपल हत्या

    सोना देवी विश्वविद्यालय के छात्र देवऋषि कश्यप गणतंत्र दिवस आरडीसी कैंप के लिए चयनित

    Facebook X (Twitter) Telegram WhatsApp
    © 2025 News Samvad. Designed by Cryptonix Labs .

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.