इरफान अंसारी के असंवेदनशील रवैए ने पीड़ितों के घावों पर छिड़का नमक
देवानंद सिंह
राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से ही गहरे संकट में थी, लेकिन जमशेदपुर के प्रतिष्ठित एमजीएम अस्पताल की घटना ने इसे और भी बदतर बना दिया है। अस्पताल की अव्यवस्था और चिकित्सा ढांचे की बदहाली के कारण तीन निर्दोष लोगों की मौत के बाद राज्य में आक्रोश और असंतोष की लहर है। इस दुखद घटना के बाद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने जिस प्रकार की शर्मनाक और असंवेदनशील बयानबाज़ी की, उसने केवल जनता के घावों पर नमक छिड़कने का काम किया है।
एमजीएम मेडिकल कॉलेज अस्पताल, झारखंड का एक प्रमुख चिकित्सा संस्थान है, जिसे ‘स्टेट रिफरल हॉस्पिटल’ की भूमिका निभानी चाहिए थी, लेकिन वर्षों से यह अस्पताल संसाधनों के अभाव, कर्मचारियों की कमी, आधारभूत ढांचे की जर्जरता और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। यह विडंबना ही है कि राज्य की स्वास्थ्य नीतियों का केंद्र बने इस अस्पताल में आज ऑक्सीजन प्लांट तक स्थापित नहीं है, ब्लड बैंक शिफ्ट नहीं हुआ, ऑपरेशन थिएटर अधूरा पड़ा है और बुनियादी सुविधाएं जैसे पानी, स्वच्छता व कचरा प्रबंधन तक चरमराई हुई है।
उल्लेखनीय है कि डिमना क्षेत्र में प्रस्तावित नए एमजीएम अस्पताल भवन के निर्माण की योजना पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में बनी थी। पूर्व रघुवर दास सरकार ने इस परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण, बजट आवंटन और एलएनटी जैसी विश्वसनीय कंपनी को निर्माण की ज़िम्मेदारी सौंपी, आज जब वह इमारत चालू नहीं हो सकी, तब उसकी असफलताओं का ठीकरा पूर्व सरकार पर फोड़ना केवल कायरता है, जिम्मेदारी नहीं।
स्वास्थ्य मंत्रालय ऐसा विभाग है, जिसकी विफलता का मूल्य आम जनता अपनी जान देकर चुकाती है। इस सच्चाई को समझने के बजाय, इरफान अंसारी मीडिया की सुर्खियों में बने रहने के लिए विवादित बयान देने में मशगूल रहते हैं। उनके बयान कई बार न केवल बचकाने होते हैं, बल्कि तथ्यों से परे और जनता की संवेदनाओं को आहत करने वाले भी होते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब मंत्री पद पर बैठे व्यक्ति को आपात चिकित्सा व्यवस्था, अस्पताल संचालन, आधारभूत निर्माण और चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता जैसे विषयों पर बोलना चाहिए, जमशेदपुर जैसे शहर में निजी अस्पताल किस तरह मरीजों को ठगने का काम कर रहे हैं और विभाग के आला अधिकारी चैन की नींद सो रहे हैं इस स्थिति में वे व्यक्तिगत आरोप और बयानबाज़ी में लगे रहते हैं, जो अत्यंत शर्मनाक भी है और गैर जिम्मेदाराना भी।
*सवाल स्वास्थ्य विभाग से: –*
*राष्ट्र संवाद नजरिया: किसी राज्य में जब सरकारी अस्पताल फेल होने लगते हैं सब जाकर कुकुरमुत्ते की तरह निजी नर्सिंग होम खुलते हैं और वहीं से शुरू होते हैं आम जनता का शोषण .झारखंड स्वास्थ विभाग पूरी तरह से क्लॉप कर गया है! निजी अस्पतालों में नैतिक और अनैतिक कार्य धड़ल्ले से जारी है जो जांच के दायरे में हैं या तो वे दूसरे व्यापार में जाने को तैयार है ,तो कोई TMH की तरह करोड़ों लगाकर पुराने पाप होने की तैयारी में हैं अगर पूरे मामले की की जांच होगी तो कई सिविल सर्जन सलाखों के पीछे होंगे*
*मंत्री को अपने विभाग से मतलब नहीं दूसरे पर आरोप लगाने में व्यस्त है जमशेदपुर के स्थानीय अधिकारी घटना पर आंखें बंद कर रखी है! विधायक सरयू राय के स्वास्थ्य प्रतिनिधि व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए निकले थे परंतु ——*
एमजीएम हादसे को लेकर मंत्री की बयानबाज़ी और भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया ने राज्य में एक बार फिर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच टकराव को उभार दिया है, लेकिन यह टकराव केवल राजनीतिक नहीं है, यह नैतिक भी है। सवाल केवल यह नहीं है कि अस्पताल में क्या कमी थी, बल्कि यह भी है कि जनता के प्रति किसका रवैया ईमानदार और जवाबदेह है। विपक्ष की भूमिका आलोचना तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें वैकल्पिक योजना और जनहित में सकारात्मक दबाव भी बनाना चाहिए। वहीं, सत्तापक्ष को आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या बयानबाज़ी से स्वास्थ्य व्यवस्था की कमियों पर पर्दा डाला जा सकता है?
झारखंड जैसे राज्य में, जहां लाखों लोग सरकारी अस्पतालों पर निर्भर रहते हैं, इसीलिए हर त्रासदी का सबसे गहरा असर समाज की उस सोच पर होता है, जो सरकार से न्यूनतम उत्तरदायित्व की अपेक्षा करती है। एमजीएम त्रासदी के बाद जो घटनाक्रम सामने आए हैं, उन्होंने आम जनता का भरोसा न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था पर, बल्कि पूरे शासकीय तंत्र पर डगमगा दिया है। इस परिस्थिति में जब, ऐसे राज्य के स्वास्थ्य मंत्री का दायित्व सबसे अधिक है। इरफान अंसारी यदि इस जिम्मेदारी को नहीं निभा पा रहे हैं और उसके बदले में केवल बयानबाज़ी कर रहे हैं, तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर करने का साहसिक निर्णय लेना चाहिए। यह न केवल एक राजनीतिक संदेश होगा, बल्कि प्रशासनिक नैतिकता की पुनर्स्थापना भी करेगा।
वहीं, एमजीएम हादसे की उच्चस्तरीय जांच, दोषियों पर कार्रवाई, अस्पताल के अधूरे कार्यों की त्वरित पूर्ति और स्वास्थ्य सेवाओं में ठोस निवेश यही इस संकट से उबरने का एकमात्र मार्ग होगा। वरना, हर नई घटना के बाद हम सिर्फ एक नई बहस, नई बयानबाज़ी और नई मौतों की ओर बढ़ते रहेंगे।