प्रशासनिक निष्पक्षता पर सवाल: आदिवासियों पर कहर बनकर टूट रहे हैं ज़िला अधिकारी – सन्नी सिंकु
राष्ट्र संवाद, संवाददाता
रामगोपाल जेना
चाईबासा
झारखण्ड पुनरुत्थान अभियान के तत्वाधान में सदर अनुमंडल कार्यालय के सामने आज एक दिवसीय धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया। धरना प्रदर्शन की अध्यक्षता और संचालन अभियान के जिला संयोजक अमृत मांझी ने किया। मुख्य वक्ता के रूप में धरना प्रदर्शन को संबोधित करते हुए सन्नी सिंकु ने कहा जिन जिला भू अर्जन पदाधिकारी और सदर अंचल अधिकारी को पारदर्शी,जवाबदेह, तटस्थ और प्रतिबद्ध प्रशासनिक कार्यसंस्कृति का प्रदर्शन करना चाहिए। वह अधिकारी कोल्हान, पश्चिम सिंहभूम जिला के सहज, सरल, निर्दोष, निरक्षर आदिवासी मूलवासियों पर कहर बरपा रहे हैं। उन अधिकारी को पता होना चाहिए कि कोल्हान सिंहभूम के विद्रोहों के कारण जिला को सामान्य विधियों के क्रियान्वयन से बाहर रखने की ब्रिटिश नीति का विकास हुआ। जिसके तहत वर्ष 1833 के रेगुलेशन XIII ने गैर विनियमित यानी नॉन रेगुलेशन प्रांत के रूप में घोषित किया।
परिणामस्वरूप विलकिंसन के 31 नियम को कोल्हान, पश्चिम सिंहभूम में प्रभावी बनाया गया। और पारंपरिक स्वशासन प्रथा मानकी मुंडा को हुकूकनामा के तहत अधिकार और जिम्मेदारी सौंपी गई। कोल्हान, पश्चिम सिंहभूम के इस क्रमिक राजनीतिक और प्रशासनिक विकास को इतिहास के रूप में देखा जा सकता है। भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत उपरोक्त उल्लेखित संदर्भ को गवर्नर के अधीन संरक्षित किया गया। जो स्वतंत्रता के बाद आदिवासी मूलवासियों की बहुलता वाली क्षेत्रों को भारत का संविधान ने पांचवीं और छठी अनुसूचियों के रूप में दो अलग अलग प्रशासनिक व्यवस्थाओं का प्रावधान किया गया। जिसके आलोक में 15 नवंबर 2000 को झारखण्ड राज्य का गठन होने के बाद राष्ट्रपति के आदेश द्वारा वर्ष 2007 से झारखंड को अनुसूचित राज्य के रूप अधिसूचित किया गया। जारी अधिसूचना के अनुसार कोल्हान, पश्चिम सिंहभूम अनुसूचित जिला है। लेकिन जिला भू अर्जन पदाधिकारी और सदर अंचल अधिकारी का प्रशासनिक संस्कृति अनुसूचित जिला के प्रशासन और नियंत्रण के अनुरूप नहीं है,
बल्कि वे अनुसूचित जिला के लिए किए गए संवैधानिक अधिकारों और प्रावधानों का गंभीर रूप से उल्लंघन करने पर आमादा है। झारखण्ड पुनरुथान अभियान के संस्थापक पूर्व राज्यसभा सांसद दुर्गाप्रसाद जामुदा ने कहा कोल्हान, पश्चिम सिंहभूम जिला के जनता आदिवासी मूलवासियों पर आधारित पंचशील के मान्य सिद्धांत के अवधारणा पर विकास कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के लिए तैयार है। जिसके आधार पर आदिवासी मूलवासियों की भूमि उनके सहमति के बिना नहीं छीनी जाने पर आधारित है।
हालांकि तत्कालीन केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री भार साधक सदस्य के रूप में दिनांक 22/07/2019 को लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब का उल्लेख भी गौरतलब है। जिसमें आदिवासी मूलवासियों के भूमि संबंधी संवैधानिक अधिकारों का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया है। जिसमें वन अधिकार अधिनियम 2006,पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 , भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिनियम 2013, अनुसूची V के अंतर्गत संवैधानिक प्रावधान भूमि अधिग्रहण के कारण आदिवासी मूलवासियों के आबादी के विस्थापन के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करते हैं।
लेकिन जिला भू अर्जन पदाधिकारी और सदर अंचल अधिकारी उपरोक्त उल्लेखित नियमों और विनियमों का खुले तौर पर उल्लंघन कर रहे हैं। रैयत संघर्ष समन्वय समिति जगन्नाथपुर के अध्यक्ष सुमंत ज्योति सिंकु ने कहा वर्तमान जिला भू अर्जन पदाधिकारी से बेहतर तो पूर्व के जिला भू अर्जन पदाधिकारी थे। जिन्होंने कम से कम संवैधानिक प्रावधानों का अक्षरशः अनुपालन सुनिश्चित करते हुए NH 320G की राजपत्र का विज्ञापन प्रकाशित करने के पहले सभी मान्य प्रक्रिया पूर्ण किए थे। उन्होंने सबसे पहले मानकी मुंडाओं के साथ बैठक कर परामर्श किया।
उसके बाद रैयतों का मंतव्य जानने के लिए जगन्नाथपुर बायपास सड़क से प्रभावित होने वाले गांव में राजस्व कर्मचारियों को प्रतिनियुक्त किया। उसके बाद फिर जगन्नाथपुर अनुमंडल पदाधिकारी के कार्यालय कक्ष में तत्कालीन जिला भू अर्जन पदाधिकारी, राष्ट्रीय राजमार्ग के कार्यपालक अभियंता, अंचल अधिकारी, राष्ट्रीय राजमार्ग के पदाधिकारीगण, पीढ़ के मानकी और गांव के मुंडागण और रैयत उपस्थित थे। जिस बैठक की अध्यक्षता तत्कालीन जगन्नाथपुर के अनुमंडल पदाधिकारी ने की थी। आयोजित सभी बैठक में रैयतों ने अपनी बहुफसली सिंचित कृषि भूमि को जगन्नाथपुर बायपास सड़क निर्माण कार्य हेतु देने से असहमति जताई थी। लेकिन वर्तमान जिला भू अर्जन पदाधिकारी के आने के बाद न तो वह मानकी मुंडा से परामर्श की और न ही रैयतों का मंतव्य जानने के लिए ग्रामसभा कराना जरूरी समझी। जिला भू अर्जन पदाधिकारी येन केन प्रकारेण कोल्हान के आदिवासी मूलवासियों की रैयती भूमि को बायपास सड़क निर्माण कार्य के नाम पर अधिग्रहण करना चाहती है। जबकि NH 75 हो या NH 320G मूल सड़क पर लीज में निवासरत लोगो द्वारा अनाधिकृत रूप से सड़क का अतिक्रमण किया गया है। उन अतिक्रमण कारियो को हटाने के लिए जिला भू अर्जन पदाधिकारी बिल्कुल सख्त नहीं है। यह भेदभाव और पक्षपात पूर्ण नहीं तो क्या है?
धरना प्रदर्शन को खूंटकट्टी रैयत रक्षा समिति के अध्यक्ष बलभद्र सवैया, हो समाज सेवानिवृत महासभा के घनश्याम गगराई, चंद्रमोहन बिरुआ, भारत आदिवासी पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष सुशील बारला ईचा खड़कई बांध विस्थापित संघ संघ के विधि सलाहकार सुरेश सोय, रेयांस सामाड, अम्बेडकराइट सागर सिंकु, झारखण्ड स्वशासन एकता संघ के जिला अध्यक्ष कुसुम केराई, देसाउली बचाओ फाउंडेशन के साधो देवगम, झारखण्ड पार्टी के पूर्व उम्मीदवार कोलंबस हांसदा, एडवोकेट महेंद्र जमुदा, कातीगुटु गांव के मुंडा सिद्ध्यू पुरती, टोटो गांव के मुंडा सुरेंद्र बानरा, डोबरो बसा गांव के मुंडा रॉबिन पड़ेया, सिंघपोखरिया गांव के मुंडा दीपू सवैया,गीतिलपी गांव के मुंडा कृष्णा सवैया, तुईवीर गांव के मुंडा मैथ्यू देवगम, तालाबुरू गांव के मुंडा मथुरा दोराईबुरू, कैरा बिरुआ, तिलक बारी, मुनेश्वर पुरती, नीतिमा सवैया, बसंती तिरिया, रामेश्वर सवैया, रामाय पुरती, मीरा देवगम, नारायण सिंह पुरती, विशाल गुड़िया, बिरसा गोप, विकास केराई, विनीत लागुरी, विश्वनाथ बोबोंगा, शैली शैलेंद्र सिंकु, केदार नाथ कालुंडिया, अरिल सिंकु, बुधराम सिंकू, योगेंद्र सिंकु, कृष्णा सिंकु, महिपाल तिरिया, कुशल मांझी, विशाल कुमार मुंडा, बालकिशोर सिंकु, सुधांशु सिंकु, संतोष कुमार सवैया, विजय सिंह सवैया, दूलबू कालुंडिया, नितीन जमुदा, रमेश जेराई, सनातन बिरुआ, हरीश चंद्र कुंकल, सुखलाल पुरती, बिनोद हांसदा, अश्वनी कुमार सिरका ने भी संबोधित किया। धरना प्रदर्शन में चाईबासा, जगन्नाथपुर के सैकड़ों रैयतगण उपस्थित थे।