आर्थिक दृष्टिकोण से भी खास है ‘महाकुंभ’
देवानंद सिंह
महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन होता है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मंच पर नई पहचान तो देता ही है, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह भारत के लिए अत्यंत खास होता है। इसका कारण है, 12 साल बाद आने वाले इस मेले को लेकर केवल श्रद्धालुओं, संत-महात्माओं और साधुओं में ही उत्सुकता नहीं रहती है, बल्कि प्रयागराज की पवित्र धरती बड़ी संख्या में पर्यटकों को भी अपनी तरफ खींच लाती है। पर्यटक महाकुंभ में पवित्र स्नान के लिए तो आते ही है, बल्कि वो दूसरे अन्य पर्यटन डेस्टीनेशन पर भी अवश्य जाते हैं, जाहिर सी बात है, यह देश के आर्थिक दृष्टिकोण से भी किसी वरदान से कम नहीं होता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार का लक्ष्य एक ट्रिलियन इकोनॉमी बनने का है और केंद्र सरकार का लक्ष्य देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनाने का है। यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन तो है ही, लेकिन एक व्यापारिक मेले के रूप में भी यह अपनी एक अलग पहचान कायम करता है। इस बार के महाकुंभ में 45 करोड़ लोगों के आने की उम्मीद है, जो अपने-आप में एक बड़ी संख्या होती है। 2013 में, जब पिछला पूर्ण कुंभ हुआ था, तब 20 करोड़ लोग स्नान और दर्शन के लिए आए थे, जबकि 2019 में आयोजित हुए अर्द्ध कुंभ के समय यह संख्या बढ़कर 25 करोड़ हो गई थी, इस बार अगर इस संख्या के 45 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है तो यह भारत के सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण समय कहा जाएगा।
13 जनवरी से शुरू हुए दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में लगभग 34 करोड़ से अधिक लोग अब तक त्रिवेणी में डुबकी लगा चुके हैं। इस कुंभ को 26 फरवरी महाशिवरात्रि के पवित्र दिवस तक चलना है, इसीलिए अभी काफी दिनों का समय बचा हुआ है। ऐसे में, इस बात की पूरी संभावना है कि 45 करोड़ लोगों के आने की जो उम्मीद की गई है, वह पूरी होगी, इसमें कोई संदेह नजर नहीं आता है।
अगर, इसको कारोबार के नजरिए से देखें तो महाकुंभ में आने वाले 45 करोड़ लोगों में से प्रत्येक श्रद्धालु औसतन 5 से 10 हजार रुपए भी खर्च करता है तो यह तय है कि 4 से 4.5 लाख करोड़ रुपए तक का व्यवसाय होगा, जो प्रदेश और देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ी ताकत देगा। विदेशों से आने वाले लोगों को लेकर इस बात की भी पूरी संभावना रहती है कि अगर, वो त्रिवेणी में पवित्र स्नान करने आते हैं, तो निश्चित रूप से वो देश के दूसरे हिस्सों का भी भ्रमण करेंगे, जो यह महाकुंभ के आर्थिक दृष्टिकोण का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है।
महाकुंभ से देश की जीडीपी में 1 प्रतिशत की वृद्धि होने का जो अनुमान लगाया गया है, आकड़े इस बात की प्रमाणिकता को दर्शा रहे हैं, जिससे देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की इकोनॉमी एक ट्रिलियन और भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनेगा, इस दिशा में महाकुंभ का योगदान निश्चित रूप से महत्वपूर्ण होने वाला है। 2023-24 में भारत की जीडीपी 295.36 लाख करोड़ रुपए थी। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि 2024-25 में जीडीपी बढ़कर 324.11 लाख करोड़ तक पहुंच जाएगी। अगर, देश की इकोनॉमी को इतनी ग्रोथ मिलने की उम्मीद लगाई गई है तो महाकुंभ की भूमिका जगजाहिर रहेगी, इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को नई ताकत तो मिलेगी ही, बल्कि समाज के आर्थिक ढांचे को भी मजबूती मिलेगी।
महाकुंभ रोजगार प्रदत्ता के रूप में भी अभूतपूर्व योगदान देता है, क्योंकि इसमें लोगों को न केवल खुद के काम को बढ़ाने का अद्भुत अवसर मिलता है, बल्कि हॉस्पीटिलिटी, ट्रांसपोर्ट से लेकर अन्य तमाम क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर भी पैदा होते हैं, इसीलिए महाकुंभ इस कालखंड का सर्वोत्तम आयोजन है। यह पुनीत अवसर कई वर्षों बाद आता है, जो हमारी कला और संस्कृति के साथ ही आर्थिक दृष्टिकोण से भी देश को समृद्ध और सशक्त बनाने का काम करता है। ऐसे में, अगर अपनी अभूतपूर्व सांस्कृतिक संपन्नता से भरपूर देश में ऐसा पुण्य अवसर आया है तो यह सरकार के विरासत भी और विकास भी के विजन को पंख देने वाला सबसे सुनहरा अवसर है।
भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर है, लेकिन यह सफलता की ऊंचाई पर तभी पहुंचेगा, जब देश आर्थिक मोर्चे पर सुदृढ़ होगा, क्योंकि आर्थिक समृद्धि ही देश के इंफ्रास्ट्रक्चर की यात्रा को गति देने के साथ ही मजबूती भी प्रदान करेगा। इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूती देश की आर्थिक प्रगति का सबसे बड़ा वाहक होता है, क्योंकि इससे दूसरे तरह के उद्योगों के साथ ही पर्यटन उद्योग को भी बूम मिलता है। महाकुंभ के बहाने अगर, खासकर विदेशों से आने वाले लोग प्रदेश व अन्य राज्यों में सैर-सपाटे के लिए भी जा रहे हैं तो निश्चित रूप से यह अच्छा संकेत है कि भारतीय पर्यटन उद्योग को भी अच्छा-खासा बूस्ट मिल रहा है। यह भविष्य के लिए भी, इस बात को ध्यान रखने का समय है कि हमें अपने पर्यटन उद्योग को हल्के में लेने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, बल्कि पर्यटन उद्योग को और मजबूत करने की दिशा में काम करना है। नए-नए पर्यटन डेस्टीनेशन बनाए जाने की जरूरत है और जो डेस्टीनेशन पहले से हैं, उनको भी आधुनिक स्वरूप देने की जरूरत है।
यह अच्छी बात है कि पिछले 10 वर्षों में इस दिशा में सरकार ने अच्छा काम किया है, देश के पर्यटन उद्योग की विकासगाथा को नई सोच के साथ विकसित करने के लिए अभूतपूर्व कदम उठाए गए हैं, जो आर्थिक दृष्टिकोण से बेहद जरूरी थे, क्योंकि भारत सांस्कृतिक और पर्यटन के नजरिए से दुनिया भर के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने की भरपूर क्षमता रखता है, इसीलिए इस बात की बहुत आवश्यकता थी कि पर्यटन स्थलों को नए तरीके से विकसित किया जाए, क्योंकि इससे यह फायदा होगा कि जो पर्यटक एक बार भी भारत आए, वह हर बार भारत आने के लिए प्रेरित हो सके। ऐसा होने की स्थिति में पर्यटकों की संख्या में निरंतरता बनी रहेगी, जो आर्थिक दृष्टिकोण से अच्छे दूरगामी परिणाम तय करेगी और यही स्थिति 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र बनने की परिकल्पना को भी साकार करेगी।