दिल्ली में भाजपा ने जीत की नई इबारत लिखी
-ः ललित गर्ग:-
दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए न केवल 27 साल के वनवास को खत्म करने में कामयाब हुई है बल्कि देश की राजधानी को एक नया विश्वास, नया जोश एवं गुड गर्वनेंस का भरोसा दिलाने को तत्पर हो रही है। निश्चित ही चुनाव मोदी के नाम पर लड़े गये और दिल्ली की जनता ने मोदी पर भरोसा जताया है। एक बार फिर मोदी का जादू चला एवं उनके करिश्माई राजनीतिक व्यक्तित्व ने नया इतिहास रचा है। दिल्ली में भाजपा ने जीत की नई इबारत लिखी है। दिल्ली में 11 साल के बाद डबल इंजन की सरकार बनने से दिल्ली की बुनियादी समस्याओं का हल होते हुए दिख रहा है, बल्कि दिल्ली के विकास की नई गाथा लिखे जाने की शुभ शुरुआत हो रही है। अब दिल्ली में न केवल वायु प्रदूषण दूर होगा, बल्कि यमुना नदी का प्रदूषण दूर करते हुए उसका कायाकल्प किया जायेगा। चुनाव परिणामों में आम आदमी पार्टी चुनाव को जिस तरह की हार का सामना करना पड़ा है उससे आप सिर्फ सत्ता से ही बेदखल नहीं हो रही बल्कि आप एवं केजरीवाल के राजनीतिक जीवन पर भी ग्रहण लगता हुआ दिखाई दे रही है। कांग्रेस के लिये भी अपनी राजनीतिक जमीन बचाने एवं सत्ता में वापसी का सपना बूरी तरह पस्त हो गया है।
दिल्ली की लगभग सभी सीटों पर मतदाताओं ने सुशासन, भ्रष्टाचार मुक्ति, विकास एवं मुक्त की सुविधाओं के नाम पर वोट डाले हैं। दिल्ली में मुस्लिम बहुल इलाके हों, गांधी नगर जैसे कारोबारी क्षेत्र हों या फिर पूर्वी दिल्ली का पटपड़गंज हो, या मुस्तफाबाद जैसे पिछडे़ इलाके सभी जगहों पर आप को करारा झटका लगा है। हिन्दुत्व की ताकत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक एवं भाजपा की सुनियोजित चुनाव रणनीति ने भाजपा को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मोदी-शाह की जोड़ी ने करिश्मा कर दिखाया है। आप एवं कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की हार ने तय किया कि राजनीति में राजशाही सोच, अहंकार एवं बड़बोलापन कामयाब नहीं है। दिल्ली के विकास म़ॉडल को पूरे देश में केजरीवाल सर्वश्रेष्ठ बताते रहे हैं, उसी दिल्ली की दुर्दशा, उससे जुड़े झूठे बयानों एवं तथ्यों के कारण आप हारी है।. इस तरह केजरीवाल की राजनीति पर मतदाताओं ने सवालिया निशाने लगा दिये हैं। केजरीवाल के लिये इन चुनाव परिणाम के बाद संकट के पहाड़ खड़े होने वाले है।
जिस अन्ना आंदोलन से अरविंद केजरीवाल का नाम पूरे देश में सामने आया। केजरीवाल ने उन्हीं अन्ना को नकार दिया था। दिल्ली चुनाव के रुझानों पर अन्ना हजारे ने कहा कि मैं बार-बार बताता गया, लेकिन उनके दिमाग में नहीं आया और वे शराब को ले आए। शराब यानी धन-दौलत से वास्ता हो गया। अन्ना ने कहा कि चुनाव लड़ते समय उम्मीदवार को आचार शुद्ध होना, विचार शुद्ध होना, जीवन निष्कलंक और त्याग होना जरूरी है। अगर ये गुण उम्मीदवार में हैं तो मतदाताओं को उन पर विश्वास होता है। लेकिन केजरीवाल एवं आप के उम्मीदवारों में ये गुण दूर-दूर तक दिखाई नहीं देते हैं, यही आप की करारी हार का कारण बना है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल की परिस्थितियों में बड़ी समानता रही हैं, पर हेमंत की तरह केजरीवाल दिल्ली की जनता का दिल जीतने में नाकामयाब रहे। दिल्ली में आप की हार केजरीवाल के लिए एक बड़ा व्यक्तिगत झटका है, जिससे राजनीति में उनके भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं। दिल्ली का असर पंजाब की सियासत पर भी पड़ेगा। इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के विस्तार को लेकर अरविंद केजरीवाल की योजना धुंधली पड़ जायेगी। इंडिया गठबंधन के जो दल कांग्रेस के बजाय आम आदमी पार्टी के साथ खड़े थे, वो फिर से दूरी बनाते नजर आएंगे।
इन चुनाव परिणामों ने कांग्रेस को भी आइना दिखा दिया है। उसने जिस तरह से भारत की ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ की भावना को दबाया, सनातन परंपरा को दबाया एवं मोदी विरोध के नाम पर देश-विरोध पर उतर आयी, यही मूल्यहीन राजनीति उसकी हार का कारण बनी। अनेक वर्षों तक दिल्ली पर राज करने वाली कांग्रेस सत्ता में वापस आने के लिए इतनी बेचैन दिखाई दी कि वो हर दिन नफरत, द्वेष एवं घृणा की राजनीति करती रही है। कांग्रेस सांप्रदायिकता और जातिवाद के विष को दिल्ली चुनाव में भी उडेला। हिंदू समाज को तोड़ना और उसे अपनी जीत का फॉर्मूला बनाना ही कांग्रेस की राजनीति का आधार बना और यही उसको रसातल में ले जाने का बड़ा कारण बना है। कांग्रेस की जातिगत जणगणना की मांग भी उसकी विभाजनकारी नीति को ही दर्शाती रही है, जो उसके हार को सुनिश्चित करने का बड़ा कारण बना। एक राष्ट्रीय दल, सबसे पुराना दल, पांच दशकों तक देश पर शासन करने एवं दिल्ली में लगातार तीन बार सत्ता में रहने वाले दल को एक-दो सीटों पर ही उसकी जीत होना उसकी हास्यास्पद एवं लगातार कमजोर होने की स्थितियों को ही दर्शा रहा है।
दिल्ली में कांग्रेस के तेवरों से साफ है कि मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से रोकने में नाकामी के बाद उसने शायद अपने पुनरुत्थान के लिये दिल्ली के चुनाव को आधार बना लिया था, इसमें कोई बुराई नहीं, पर यह काम आसान नहीं रहा, कांग्रेस के सपने टूट कर बिखर गये। कांग्रेस की दिल्ली में दुर्दशा ने लगभग तय कर दिया है कि मतदाता की नजरों में उसकी क्या अहमियत है? कांग्रेस ने न केवल खुद को बल्कि इंडिया गठबंधन को भी जर्जर बना दिया है। यह एक पुरानी कहावत है कि देश जैसी सरकार के योग्य होता है, वैसी ही सरकार उसे प्राप्त होती है।’ दिल्ली में भी ऐसी ही सरकार बनने जा रही है, जो दिल्ली के हितों को प्राथमिकता देगी। दिल्ली में बीजेपी की जीत हुई, वह अधिक मजबूत होकर उभरी है, मोदी एवं भाजपा के प्रति जनता का विश्वास बढ़ा है। इसका असर बिहार के चुनाव में भी सकारात्मक होता हुआ दिख रहा है। राजशाही के विपरीत लोकतन्त्र में जनता के पास ही उसके एक वोट की ताकत के भरोसे सरकार बनाने की चाबी रहती है और ऐसा दिल्ली में होता हुआ दिखा है। दरअसल, जनता के हाथ की इस चाबी को अपने पक्ष में घुमाने एवं जीत का ताला खोलने के लिये यह मुफ्त की संस्कृति, विभाजनकारी राजनीति एवं सनातन-विरोधी स्वर ने आप एवं कांग्रेस को औंधे मुंह गिरा दिया है, इस गिरावट से उभरने की संभावनाएं भी दोनों दलों के लिये एक बड़ी चुनौती है।
दिल्ली के चुनाव एक महायुद्ध था, जो कितने ही मुद्दों को अपने में समेटे हुए रहा। यह अनेक नेताओं एवं दलों के अस्तित्व को बचाने का भी महासंग्राम था। चुनाव में जब सेवा-सुशासन का मूल उद्देश्य गायब हो जाता है, केवल दलगत स्वार्थ और सत्ता प्राप्ति की होड़ मुख्य हो जाती है तब दिल्ली जैसे अप्रत्याशित परिणाम ही सामने आते हैं। राजनीति में केजरीवाली प्रवृत्ति एक नई संस्कृति का स्थान लेती रही है, जिसने हमारे सभी नैतिक मूल्यों को तार-तार कर दिया था, बहुत चर्चा होती रही है कि दिल्ली के विकास में अनेक सुराख हो गये हैं, लोगों का सांस लेना दुश्वार हो रहा था तो यमुना प्रदूषित हो गयी थी, सड़के खड्ढो में तब्दील हुई तो चिकित्सा-शिक्षा व्यवस्था चरमराई। इसलिए दिल्ली के जीवन को खतरा था। दिल्ली में ऐसे सुराख (ब्लैक होल) हो गये थे, जहां नेता पाप करके छुपते रहे हैं। आप नेताओं के दिमाग में सुराख ही सुराख हो गये थे, जिससे मवाद टपकता दिखाई देता था। ये सब स्थितियां दिल्ली को अच्छे भविष्य की ओर नहीं ले जा रही थी, दिल्ली जब कीचड़ में थी, तब आप एवं उसके नेता एक कदम आगे बढ़ने के प्रयास में दो कदम पीछे फिसलते रहे। स्थितियों की इसी विपरीतता ने दिल्ली की जनता को जगाया, एक-एक व्यक्ति दिल्ली के व्यापक हित को अपने हित से ऊपर समझते हुए भाजपा को जीत का सेहरा बांधा है। निश्चित ही दिल्ली में नये सूरज का अवतरण हुआ है, और उसका भविष्य शुभ एवं श्रेयस्कर दिखाई दे रहा है।