सत्ता परिवर्तन से कमजोर होगी केजरीवाल की साख
देवानंद सिंह
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आज घोषित हो जाएंगे और वास्तविक रूप से यह पता चल जाएगा कि कौन सरकार बनाने में सफल हो पाता है, लेकिन जिस तरह एग्ज़िट पोल के आंकड़े सामने आए, उसमें दिल्ली में बदलाव साफतौर पर दिख रहा है और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की जीत तय मानी जा रही है। ऐसे में, कहा जा सकता है कि दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी के लिए सत्ता बचाना अब आसान नहीं है। अगर, ये एग्ज़िट पोल सही साबित होते हैं, तो भारतीय जनता पार्टी लगभग 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी कर सकती है। अगर, जीत बीजेपी की होती हैं तो यह सिर्फ चुनावी नतीजों की बात नहीं होगी, बल्कि यह आम आदमी पार्टी के अस्तित्व और उसकी राजनीति के भविष्य पर भी निश्चित रूप से सवाल खड़े करता है।
यह बात उल्लेखनीय है कि आम आदमी पार्टी के गठन का इतिहास दिल्ली की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना रही। 2011 में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखा था। जब उन्होंने दिल्ली में आम आदमी पार्टी की शुरुआत की, तो वे इसे ‘मजबूरी’ में बताकर राजनीति में आए थे, लेकिन जल्द ही पार्टी ने दिल्ली में अपनी उपस्थिति मजबूत कर ली। 2013 में 28 सीटों के साथ दिल्ली विधानसभा में अपनी शुरुआत करने वाली आप ने 2015 में ऐतिहासिक जीत हासिल की, जब उसने 70 में से 67 सीटें जीतीं। 2020 में भी पार्टी ने 62 सीटें जीतकर अपनी स्थिति मजबूत की और इन जीतों के बाद आम आदमी पार्टी को एक मजबूत विकल्प के रूप में देखा जाने लगा था।
हालांकि, आम आदमी पार्टी का राजनीतिक सफर इतनी आसान नहीं रहा। पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और पार्टी के कई प्रमुख नेता जेल गए। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे नेता इस आरोपों के घेरे में आए, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा। इसके बावजूद, अरविंद केजरीवाल की ईमानदारी की छवि और उनकी शासन की शैली ने उन्हें दिल्ली में स्थिर सत्ता की स्थिति में रखा।
लेकिन इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणामों को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। एग्ज़िट पोल ने बीजेपी को अधिक सीटें मिलने का अनुमान लगाया है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या आम आदमी पार्टी सत्ता में रह पाएगी? यदि एग्ज़िट पोल के मुताबिक बीजेपी को बहुमत मिलता है, तो यह पार्टी के लिए एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि आम आदमी पार्टी की सफलता का आधार दिल्ली की राजनीति और अरविंद केजरीवाल की प्रशासनिक शैली रही है।
साथ ही, यह चुनाव केजरीवाल के ‘मुफ़्त’ योजनाओं की लोकप्रियता का भी टेस्ट है। शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी जैसी बुनियादी सेवाओं में सुधार की उनकी योजनाओं ने दिल्ली की जनता को आकर्षित किया है, लेकिन अब सवाल यह है कि क्या ये योजनाएं दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकेंगी? क्या मुफ्त का सरकारी राशन और बिजली पानी जैसे मुद्दे चुनावी जीत की गारंटी हो सकते हैं? या फिर जनता की उम्मीदें बदलाव और विकास की ओर बढ़ चुकी हैं?
आम आदमी पार्टी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बने हैं । जिस पार्टी ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जन्म लिया, उसी पर अब भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। यदि, इस बार पार्टी दिल्ली में चुनाव हार जाती है, तो इसका मतलब यह होगा कि उसकी छवि को गहरा धक्का लगेगा। इसके अलावा, यह पार्टी की साख पर भी सवाल खड़ा करेगा, क्योंकि अगर भ्रष्टाचार के आरोप सही साबित होते हैं, तो यह पार्टी के खिलाफ जनादेश का सबसे बड़ा संकेत होगा।
केजरीवाल के लिए यह चुनाव इसलिए भी अहम है, क्योंकि उनका व्यक्तिगत और राजनीतिक भविष्य अब इस पर निर्भर करता है, हालांकि दिल्ली में पार्टी की सत्ता से बाहर जाने की स्थिति में आम आदमी पार्टी के लिए विपक्षी दलों के साथ अपनी रणनीति और कड़ी टक्कर का सामना करना होगा। बीजेपी, कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों के सामने बिना ठोस विचारधारा के विपक्ष में रहना आम आदमी पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। पार्टी की रणनीति और विकास मॉडल पर विचार करने की जरूरत पड़ेगी।
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के अलावा पंजाब में भी सरकार बनाई और इसने यह सिद्ध कर दिया कि यह सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रहना चाहती। पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने की पूरी कोशिश की और 2014 में लोकसभा चुनाव में भी उतरी थी। हालांकि, लोकसभा चुनावों में पार्टी को निराशाजनक परिणाम मिले और उन्हें कोई बड़ी सफलता नहीं मिली, लेकिन पार्टी ने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को कभी नहीं छोड़ा।
आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में विस्तार की योजना अब भी जिंदा है, लेकिन दिल्ली में अगर उसे शिकस्त मिलती है, तो यह उसकी राष्ट्रीय उम्मीदों को धक्का पहुंचा सकता है। कई विश्लेषकों का मानना है कि अगर, पार्टी दिल्ली में हारती है, तो यह उसके राष्ट्रीय राजनीतिक भविष्य को भी प्रभावित करेगा। इस हार के बाद आम आदमी पार्टी को अपनी राष्ट्रीय योजनाओं को फिर से पुनः मूल्यांकित करने की जरूरत होगी, क्योंकि दिल्ली में मिली सफलता ही पार्टी का आधार रही है।
चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच कई बार तीखे शब्दों और टकराव की स्थिति देखने को मिली। इन दोनों के बीच सत्ता की लड़ाई ने दिल्ली की राजनीति को एक नई दिशा दी है। जहां मोदी ने केजरीवाल को ‘कभी मुख्यमंत्री नहीं बनने लायक’ कहा, वहीं, केजरीवाल ने मोदी पर कई आरोप लगाए और उन्हें दिल्ली के लिए एक ‘अपराधी’ के रूप में चित्रित किया। इस राजनीतिक संघर्ष ने दिल्ली की राजनीति को एक नई पहचान दी, जहां दोनों नेता आपस में टकरा रहे हैं।
अगर, इस बार केजरीवाल को हार मिलती है, तो यह मोदी बनाम केजरीवाल के नैरेटिव को कमजोर कर सकता है। इससे मोदी की सत्ता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन केजरीवाल की व्यक्तिगत छवि को बड़ा धक्का लगेगा।
कुल मिलाकर, दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का केवल दिल्ली की राजनीति पर ही नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी के भविष्य और उसके राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं पर भी गहरा असर पड़ेगा। अगर, एग्ज़िट पोल के अनुमान सही साबित होते हैं, तो यह अरविंद केजरीवाल के लिए किसी भी दृष्टिकोण से एक बड़ा झटका होगा।