बांग्लादेश में हिंसा की पराकाष्ठा
देवानंद सिंह
बांग्लादेश में एक बार फिर हिंसा भड़क उठी है। देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के विरोधियों ने बुधवार की रात उनके पिता शेख़ मुजीबुर्रहमान के ढाका स्थित घर धानमंडी-32 में आग लगा दी और उसे ध्वस्त कर दिया।
दरअसल, प्रदर्शनकारियों ने बुधवार की रात और गुरुवार को तड़के देश भर में शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग के नेताओं के घरों में भी तोड़फोड़ की और शेख़ मुजीबुर्रहमान के भित्ति चित्रों को विकृत कर दिया। हिंसा भारत में मौजूद शेख़ हसीना के एक ऑनलाइन कार्यक्रम से ठीक पहले शुरू हुई। बांग्लादेश के प्रमुख अख़बार ‘द डेली स्टार’ ने लिखा है कि सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट के मुताबिक़ ये प्रदर्शन शेख़ हसीना की ‘बांग्लादेश विरोधी गतिविधियों’ की वजह से किया गया। बांग्लादेश में हो रहीं ऐसी हिंसा और विध्वंस की घटनाएं देश की राजनीतिक स्थिति की गंभीर तस्वीर पेश करती हैं। यह केवल एक भवन का विध्वंस नहीं है, बल्कि यह बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम, उसके संस्थापक और उसके वर्तमान शासन के खिलाफ बढ़ते विरोध का प्रतीक है।
शेख़ हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं हैं और लंबे समय तक देश की राजनीति में एक प्रमुख शक्ति रही हैं। उनके पिता शेख़ मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के संस्थापक और ‘बंगबंधु’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनके नेतृत्व में बांग्लादेश ने 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। हालांकि, शेख़ मुजीब की हत्या 1975 में हुई थी, उनके बाद बांग्लादेश में सत्ता की जंग लगातार जारी रही। शेख़ हसीना ने अपने पिता के खात्मे के बाद राजनीति में कदम रखा और 1996 से देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद के वर्षों में, शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग की सत्ता पर पकड़ मजबूत होती गई, लेकिन इसके साथ ही विपक्षी दलों और प्रदर्शनकारियों का विरोध भी तेज हुआ। वर्तमान में शेख़ हसीना के विरोधी उन्हें भारत में बैठे हुए ‘बांग्लादेश विरोधी गतिविधियों’ का आरोप लगाते हैं। यह आरोप केवल राजनीतिक संघर्ष का हिस्सा नहीं है, बल्कि देश की संप्रभुता, राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता के सवालों से भी जुड़ा हुआ है।
बांग्लादेश में यह हिंसा शेख़ हसीना के एक ऑनलाइन कार्यक्रम से पहले भड़की। प्रदर्शनकारियों में छात्र भी शामिल थे, जो इस कार्यक्रम के विरोध में सड़कों पर उतरे और शेख़ मुजीब के घर को जलाकर तोड़फोड़ की। यह हिंसा केवल एक राजनीतिक विरोध नहीं है, बल्कि इसमें शेख़ मुजीब के भित्ति चित्रों को विकृत करने और उनके स्मारक को नष्ट करने की कोशिशें भी शामिल रहीं। निश्चित रूप से, यह घटना राजनीतिक विचारधारा और विरोध के कारण हुई हिंसा की एक पराकाष्ठा थी। प्रदर्शनकारी इसे ‘फासीवाद’ का प्रतीक मानते हैं और इस कारण से इस ऐतिहासिक स्थल को नष्ट करने की कोशिश की गई।
विरोधियों का आरोप है कि शेख़ हसीना की सरकार ने सत्ता में रहते हुए अनेक मानवाधिकार उल्लंघन किए और कई राजनीतिक हत्याओं को अंजाम दिया। इन आरोपों का उद्देश्य शेख़ हसीना को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करना और उनकी राजनीति को नष्ट करना है। शेख़ हसीना के विरोधी उनके शासनकाल को असंवैधानिक शासन मानते हैं और यह मानते हैं कि उनकी सरकार का दमनकारी रवैया लोकतंत्र के खिलाफ था। ये घटनाएं न केवल बांग्लादेश के भीतर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कड़ी प्रतिक्रिया का कारण बनी हैं। शेख़ हसीना की सरकार ने प्रदर्शनकारियों के इस हिंसक कृत्य की निंदा की है और इसे देश की स्वतंत्रता के खिलाफ एक साजिश करार दिया है। शेख़ हसीना ने कहा कि कुछ बुलडोजर और हिंसक प्रदर्शन किसी देश की आज़ादी को खत्म नहीं कर सकते और वे इतिहास को मिटा नहीं सकते। उनका यह बयान केवल एक प्रतिकार नहीं है, बल्कि यह बांग्लादेश के जनमानस के लिए यह संदेश है कि वे किसी भी प्रकार के बाहरी दबाव या राजनीतिक दबाव के आगे झुकने वाले नहीं हैं।
वहीं दूसरी तरफ, प्रदर्शनकारी इसे शेख़ हसीना और उनकी पार्टी के खिलाफ एक मुहिम के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि शेख़ हसीना की सरकार ने बांग्लादेश को एक फासीवादी राज्य बना दिया है, जहां लोकतांत्रिक अधिकारों की अनदेखी की जा रही है, यह विरोध केवल एक राजनीतिक घटना नहीं है, बल्कि यह बांग्लादेश के इतिहास और संस्कृति के खिलाफ एक गहरे हमले के रूप में देखा जा रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्होंने जो किया, वह बांग्लादेश के लोगों के लिए एक नई क्रांति की दिशा में उठाया गया कदम है। भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में भी इन घटनाओं के बाद तनाव देखा जा सकता है। शेख़ हसीना के खिलाफ की जा रही हिंसा और प्रदर्शन को लेकर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने शेख़ हसीना को भारत से वापस लाने के लिए दबाव डाला है। हालांकि, भारत ने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया है। बांग्लादेश की सरकार ने इसे लेकर भारत से प्रत्यर्पण की मांग की है, लेकिन अभी तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
बांग्लादेश और भारत के बीच संबंध हमेशा ही जटिल रहे हैं। एक ओर जहां दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर मतभेद भी रहे हैं। शेख़ हसीना की पार्टी और उनकी सरकार भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने का प्रयास करती हैं, लेकिन इन घटनाओं ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या भारत और बांग्लादेश के बीच का यह संबंध स्थिर रहेगा, या फिर इसमें और अधिक तनाव आएगा। कुल मिलाकर, बांग्लादेश में हाल की घटनाएं केवल एक राजनीतिक घटना नहीं हैं, बल्कि यह देश के समग्र भविष्य और उसके राजनीतिक परिप्रेक्ष्य पर गहरा असर डालने वाली घटनाएं हैं। शेख़ हसीना के खिलाफ हिंसा और विध्वंस की यह कार्रवाई बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़े बदलाव के संकेत दे रहीं हैं। ऐसे में, यह सवाल उठता है कि क्या बांग्लादेश का भविष्य इसी तरह के विरोध और संघर्ष के बीच सिमट कर रह जाएगा, या फिर यह देश एक नए दिशा की तरफ अग्रसर होगा, जहां लोकतांत्रिक मूल्यों और संप्रभुता का सम्मान किया जाएगा।
बांग्लादेश की जनता के सामने एक बड़ा सवाल है कि वे किस दिशा में बढ़ेंगे – क्या वे हिंसा और विध्वंस के रास्ते पर जाएंगे या फिर शांति और समृद्धि की दिशा में एक मजबूत लोकतांत्रिक राष्ट्र की ओर बढ़ेंगे। इस समय बांग्लादेश में जो हो रहा है, वह केवल एक राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि यह देश की राष्ट्रीय पहचान और भविष्य का प्रश्न बन चुका है।