महाराष्ट्र में बीजेपी की अप्रत्याशित जीत से इंडिया गठबंधन की सियासत पर पड़ेगा असर
देवानंद सिंह
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अप्रत्याशित जीत ने भारतीय राजनीति के समीकरणों में एक अलग ही हलचल मचा दी है। पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र की राजनीति ने कई बदलाव देखे गए हैं, लेकिन इस जीत ने उन बदलावों को और भी स्पष्ट और मजबूत किया है। बीजेपी की इस सफलता का प्रभाव न केवल राज्य की राजनीति पर पड़ेगा, बल्कि इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर भी व्यापक स्तर पर देखने को मिलेगा। विशेष रूप से इंडिया गठबंधन पर, जिसने 2024 के आम चुनावों से लेकर इन विधानसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बनाने की कोशिश की।
याद हो कि महाराष्ट्र में 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने शिवसेना के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी। हालांकि, 2019 में शिवसेना के साथ मतभेद के बाद बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और एक बार फिर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महा विकास अघाड़ी की सरकार बनीं, लेकिन 2022 में एक और राजनीतिक उलटफेर हुआ, जब शिवसेना के एक धड़े ने बीजेपी से गठबंधन किया और एक नई सरकार का गठन हुआ। इस घटनाक्रम ने महाराष्ट्र की राजनीति को एक नई दिशा दी।
बीजेपी की इस अप्रत्याशित जीत को एक बड़ी राजनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि यह एक ऐसे समय में आई है, जब राज्य की राजनीति में गठबंधन का खेल और पार्टीवाद की रणनीतियां हावी हो चुकी थीं। बीजेपी ने राज्य की राजनीति में एक स्थिर और सशक्त नेतृत्व के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है।
महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत ने विपक्षी दलों के बीच एकता पर भी सवाल खड़ा किया है। इंडिया गठबंधन का सबसे बड़ा लक्ष्य 2024 में बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बनाना था, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी की यह जीत यह सवाल उठाती है कि क्या भविष्य में विपक्षी दल अपनी रणनीतियों में पारदर्शिता और एकजुटता बनाए रख पाएंगे। राज्य में शिवसेना के दोनों गुटों—उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे—के बीच विभाजन और अन्य क्षेत्रीय दलों की असहमति, इस बात का संकेत देती है कि विपक्षी दलों के बीच सामंजस्य और समन्वय की कमी है। इससे गठबंधन के भविष्य और सफलता पर निश्चित ही सवाल खड़े होते हैं।
आम चुनावों में जब बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी और सरकार बनाने के लिए उसे गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर होना पड़ा था तो तब ये कहा जाने लगा था कि दस साल से केंद्र की सत्ता पर क़ाबिज़ बीजेपी के ढलान का वक्त आ गया है, लेकिन उसके बाद हुए राज्य चुनावों में बीजेपी ने पहले हरियाणा में पहले से अधिक सीटें जीतकर वापसी की और अब महाराष्ट्र में अप्रत्याशित जीत हासिल कर साबित कर दिया है कि चुनाव प्रबंधन और जनता की नब्ज़ को समझने के मामले में अभी भी उसका का कोई मुक़ाबला नहीं है।
अब से पहले ये देखा गया था कि जब किसी सरकार का ढलान शुरू होता था, तब वो रुकता नहीं था, चाहे वाजपेयी की एनडीए सरकार हो या उसके बाद की दूसरी यूपीए सरकार। एक बार अगर सत्ताधारी दल का ढलान शुरू होता था, तो उसके बाद वापसी नहीं हुई, चाहे केंद्र में हो या फिर राज्यों में, लेकिन महाराष्ट्र की जीत ने इस बात को स्पष्ट किया है कि अभी ना सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा बरक़रार है, बल्कि बीजेपी की भी लोकप्रियता वही है। चुनाव प्रबंधन को लेकर बीजेपी और आरएसएस के बीच तनातनी की बातें की जा रहीं थीं, लेकिन हाल के चुनाव नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि बीजेपी और आरएसएस के बीच कोई तनाव नहीं है और आगामी दिल्ली चुनावों के लिए भी आरएसएस कमर कस रही है, इन हालातों में मुश्किल महागठबंधन के लिए है। खासकर कांग्रेस के लिए भी। पिछले कुछ चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है।
अगले कुछ महीनों में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होना है। साथ ही, अगले साल बिहार में भी चुनाव होंगे। महाराष्ट्र की हार ने इंडिया गठबंधन के लिए स्थिति को बेहद मुश्किल कर दिया है और गठबंधन के सामने सभी दलों को साथ रखने की चुनौती भी आ सकती है। दिल्ली में बीजेपी अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। यहां उसे गठबंधन सहयोगी की ज़रूरत नहीं है, लेकिन, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के लिए साथ आना राजनीतिक मजबूरी हो सकती है। अगर, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी साथ नहीं आते हैं, तो इसका निश्चित रूप से बीजेपी को फ़ायदा मिलेगा। राजनीतिक नज़रिए से देखें, तो दोनों दलों को साथ आना ही चाहिए। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आप साथ मिलकर लड़े थे, लेकिन सातों सीटें हार गए। दिल्ली की जनता के लिए लोकसभा चुनाव के मायने अलग हैं और विधानसभा चुनाव के मायने अलग हैं
बीजेपी पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वह अपने गठबंधन सहयोगियों की राजनीतिक ज़मीन खींच लेती है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि अब वह ये संकेत दे रही है कि उसके लिए गठबंधन सहयोगी अहम हैं, भले ही वह सबसे बड़ी पार्टी क्यों ना हो।
बीजेपी इन चुनावों के नतीजों के बाद आत्मविश्वास से भरी हुई है। बड़ी जीत के बावजूद संकेत साफ़ है कि बीजेपी अपने गठबंधन सहयोगियों को साथ लेकर चलना चाहती है। बीजेपी पर ये आरोप लगाया जाता है कि वह गठबंधन सहयोगियों का इस्तेमाल करके छोड़ देती है। ऐसे में बीजेपी इस धारणा को तोड़ना चाहेगी। अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए गठबंधन को बनाए रखना अहम होगा। इन चुनाव नतीजों ने इंडिया गठबंधन की अंदरूनी कमज़ोरियों को एक बार फिर उजागर कर दिया है। माना जा रहा था कि इंडिया गठबंधन एक मज़बूत फ्रंट पेश करेगा, उसकी संभावना अब कमज़ोर हो गई है।
महाराष्ट्र के नतीजों के बाद ये धारणा मज़बूत हुई है कि इंडिया गठबंधन सहयोगी आपसी विवाद में उलझे रहते हैं और मज़बूत विकल्प पेश नहीं कर पाते। इंडिया गठबंधन के दल सीटों के बंटवारों को लेकर उलझे रहते हैं और चुनाव बेहद क़रीब आने तक कोई स्पष्ट रणनीति पेश नहीं कर पाते हैं।
कुल मिलाकर, बीजेपी की जीत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी को अगर अपनी स्थिति मजबूत करनी है, तो उसे राष्ट्रीय स्तर पर एक नई रणनीति और सशक्त नेतृत्व की जरूरत होगी। उधर, इंडिया गठबंधन को अपनी रणनीति और समन्वय को और मजबूत करना होगा, ताकि वह बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा खड़ा कर सके। इसमें कोई संदेह नहीं कि बीजेपी की जीत ने इंडिया गठबंधन की सियासी धारा को प्रभावित किया है। विपक्षी दलों को अपनी राजनीति में बदलाव लाने और जनता के बीच विश्वास बनाने की आवश्यकता है। इंडिया गठबंधन के लिए यह एक बड़ा सबक है कि वह अपनी एकता, समन्वय और रणनीतियों को सशक्त करे, ताकि आने वाले चुनावों में बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा खड़ा किया जा सके। राजनीति में कुछ भी तय नहीं होता, लेकिन बीजेपी की इस जीत ने यह साबित कर दिया है कि सत्ता के समीकरण हर दिन बदल सकते हैं और इसे लेकर किसी को भी हल्के में नहीं लेना चाहिए।