विद्युत या समीर ?*कभी दोस्त रहे उम्मीदवारों में से किसकी जीत होगी सुनिश्चित !
देवानंद सिंह
गत शनिवार को देश में छठे चरण के मतदान के तहत झारखंड की चार सीटों पर भी चुनाव हुआ, जिनमें गिरिडीह, धनबाद, रांची और जमशेदपुर लोकसभा सीट शामिल रहीं, इन चारों सीटों पर कुल 93 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, लेकिन इस चुनाव के दौरान सबकी नजर प्रदेश की सबसे हॉट सीट जमशेदपुर पर थी। यह सीट केवल औधौगिक नगरी होने की वजह से हॉट नहीं बनी थी, बल्कि इसके पीछे दो ऐसे उम्मीदवारों का आमने-सामने होना था, जो कभी दोस्त हुआ करते थे और इस बार उन्होंने सियासी मैदान में एक-दूसरे के खिलाफ जमकर ताल ठोंकी। जी हां, ये उम्मीदवार कोई और नहीं बल्कि भाजपा प्रत्याशी विद्युत वरण महतो और गठबंधन प्रत्याशी समीर मोहंती रहे और इस सीट पर मुख्य मुकाबला भी इन्हीं दोनों के बीच रहा, फिलहाल इन दोनों का भाग्य ईवीएम मशीनों में बंद हो चुका है।
जब 2019 का लोकसभा चुनाव हो रहा था तो ये दोनों नेता एक साथ थे, लेकिन इस वक्त जब 2024 का लोकसभा चुनाव चल रहा है तो ये दोनों आमने-सामने हैं।
दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव के समय वर्तमान जेएमएम उम्मीदवार यानी गठबंधन उम्मीदवार समीर मोहंती बीजेपी में ही थे। लिहाजा, वह चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी विद्युत वरण महतो की जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत के साथ जुटे हुए थे और विद्युत वरण महतो जीते भी, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव के समय ही वह बीजेपी छोड़ कर जेएमएम में चले गए और झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर बहरागोड़ा के विधायक चुने गए, लेकिन इस बार सियासी माहौल बिलकुल अलग रहा और दोनों एक-दूसरे के खिलाफ सियासी माहौल बनाने में बिल्कुल भी पीछे नहीं रहे।
अगर, दोनों के सियासी यात्रा की बात करें तो दोनों बहरागोड़ा की मिट्टी से निकल कर राजनीति की दुनिया में आए। इन दोनों का ही सियासी सफर आसान नहीं था। शुरूआत में इन दोनों को असफलता ही मिली थी। जेएमएम उम्मीदवार के रूप में विद्युत वरण महतो साल 2000 और 2005 में बहरागोड़ा सीट से विधानसभा चुनाव हार गए थे। पहली बार 2009 का विधानसभा चुनाव जीतते ही उनकी किस्मत खुल गई। 2014 में जेएमएम छोड़ कर भाजपा में आए और लोकसभा चुनाव जीत कर संसद पहुंच गए।
वहीं, समीर मोहंती भी बहरागोड़ा से लगातार 3 बार 2005, 2009 और 2014 का विधानसभा चुनाव हारे थे, लेकिन 2019 में उन्होंने जेएमएम के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा और पहली बार उन्हें जीत हासिल हुई,
लेकिन इस बार जेएमएम के टिकट पर गठबंधन उम्मीदवार के रूप में लोकसभा का सफर सुनिश्चित करने में जुटे हुए हैं। उनके साथ प्लस प्वाइंट यह रहा कि उन्हें जमशेदपुर पूर्वी के निर्दलीय विधायक सरयू राय का समर्थन मिला हुआ था। दोनों की जीत सुनिश्चित करने के लिए दोनों दलों के स्टार प्रचारकों ने भी कई चुनावी सभा यहां की। बीजेपी प्रत्याशी विद्युत वरण महतो के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मऊभंडार में सभा की थी, जबकि जेएमएम उम्मीदवार समीर मोहंती के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक ने रैली की।
अगर, पिछले दो चुनावों पर नजर डालें तो विद्युत वरण महतो ने मजबूती के साथ चुनाव जीते थे। चाहे परिणाम 2014 लोकसभा चुनाव के रहे हों या फिर 2019 के लोकसभा चुनावों के परिणाम। दोनों ही चुनाव में मोदी की हवा के साथ-साथ जमशेदपुर में पूरी तरह विद्युत वरण महतो की हवा देखने को मिली। 2014 की बात करें तो जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र से विद्युत बरन महतो को कुल 464153 वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी जेवीएम के अजय कुमार को 364277 वोट मिले थे। वहीं, 2019 की बात करें तो विद्युत बरन महतो को कुल 679632 वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी झामुमो के चंपई सोरेन को 377542 वोट मिले। चंपई सोरेन को 302090 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था, यानि विद्धुत वरण महतो की यह बहुत बड़ी जीत थी।
बता दें कि जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीट आती हैं, जिनमें जमशेदपुर पूर्वी, जमशेदपुर पश्चिम, घाटशिला, बहरागोड़ा, पोटका और जुगसलाई विधानसभा सीट शामिल हैं। इनमें से घाटशिला, बहरागोड़ा, पोटका और जुगसलाई झारखंड मुक्ति मोर्चा- जेएमएम के कब्जे में हैं. जबकि जमशेदपुर पश्चिम सीट कांग्रेस और जमशेदपुर पूर्वी पर निर्दलीय विधायक का कब्जा है, पर जमशेदपुर में अब तक 18 बार हुए लोकसभा चुनाव में से सबसे ज्यादा 6 बार भाजपा, 4 बार कांग्रेस और 3 बार जेएमएम को जीत मिली है। यहां भाजपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो 2 बार जीत की हैट्रिक लगा चुकी है।
अगर, वोट समीकरण की बात करें तो जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र में भूमिहार ब्राह्मण क्षत्रीय और मुस्लिम वोटर हैं। आदिवासी वोटरों की आबादी 10 फीसदी और कुर्मी वोटर 8 फीसदी हैं। इसके अलावा वैश्य, ओड़िया और बंगाली वोटर का भी दबदबा है। जमशेदपुर लोकसभा के 50 फीसदी वोटर शहर में रहते हैं। इसका फायदा बीजेपी को मिलता आया है। कहा जाता है कि जमशेदपुर के वैश्य और सवर्ण मतदाता का रुझान बीजेपी के पक्ष में रहा है तो, आदिवासी और महतो वोटर हर बार परिस्थिति के आधार पर वोट देते रहे हैं। 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भूमिहार कुर्मी वोटर का आशीर्वाद बीजेपी उम्मीदवार के साथ था,
इसलिए तीनों बार बीजेपी को जीत मिली, पर एसटी का दर्जा मिलने की मांग अनसुनी रहने पर इस बार के चुनाव में कुर्मी वोटर बीजेपी से नाराज बताए गए थे परंतु अंतिम समय में विद्युत ने गेंद अपने पाले में किया और भाजपा प्रत्याशी विद्युत वरण महतो के पक्ष में पूर्व मंत्री राजा पीटर और नमो ब्रिगेड की एंट्री और भूमिहार वोटरों का खुले आम समर्थन ने चुनावी माहौल को बदल दिया बीजेपी से कुर्मी समुदाय की नाराजगी का फायदा इस बार जेएमएम उठाना चाहती थी जिसमें आखिरी समय में उन्हें सफलता नहीं मिली हालांकि अब तो दोनों उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम मशीनों में बंद हो चुका है और आगामी 4 जून को देखना होगा कि कभी दोस्त रहे दोनों उम्मीदवारों में से किसकी जीत सुनिश्चित होती है।