पत्थर बोलते हैं
मुकेश रंजन
पत्थर बोलते हैं.. वर्षों पहले गाजियाबाद के एक मुशायरे में तेईस चौबीस साल के एक लड़के ने ऐसा धमाल मचाया.. कि कार्यक्रम की सदारत कर रहे आलातरीन शायर राहत इंदौरी के मुंह से भी तारीफ के दो शब्द निकल ही पड़े.. राहत इंदौरी के मुह से तारीफ के दो शब्द निकलना बड़ी बात थी.. कायदे से उस लड़के को अब शायरी के फील्ड में होना चाहिए था, मगर उस “कमबख्त” पर तो देश सेवा का भूत सवार था.. शैल को पहली बार मैनें श्यामल सुमन के घर जलेस की वार्षिक काव्यगोष्टि में देखा.. भारी भरकम शैल ने
जो मेरे कंधे पर ये कहते हुए हाथ मारा कि “क्या हाल है भाई”.. तो अब तक अपना कंधा सहला रहा हूँ.. फौजी का हाथ जो ठहरा.. जी हाँ.. किसानों जैसी शक्ल वाले शैल एक एक्स आर्मी मैन हैं.. और वो भी बड़े वाले.. यानी ऑफिसर ग्रेड.. मगर इनके घर जाओ तो क्या मजाल है जो इनका असल परिचय मिल जाए.. माथे पर गमछा बांध कर आपसे ऐसे मिलेंगे जैसे अभी अभी खेत जोत कर आ रहे हों.. खैर हमें क्या.. आएं कहीं से भी अपनी बला से.. वैसे शास्त्री जी कह गए हैं “जय जवान.. जय किसान”.. शैल कृषक भी हैं..
इनकी गांव में कृषि योग्य काफी सारी जमीनें हैं, जिसमें ये चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा.. जाने क्या क्या उगाते रहते हैं.. वैसे शैल ने पिछले चालीस सालों से गजलों की फसलें भी खूब उगाई हैं.. इस पूरी “गजलपट्टी” में शैल से बड़ा गजलकार कोई नहीं.. एक बार एक युवा कवि की बीबी नाराज होकर चली गई, उस बेचारे ने शैल की रोमानी गजलों को पढ़ते हुए ही जुदाई के तीन माह पार कर दिए.. शैल भयानक “षड्यंत्री” हैं.. अपने बारे में कुछ “हवा” ही नहीं लगने देते..
जवानी के दिनों में इनका जरूर कोई “लफड़ा” रहा होगा.. वरना इतनी बेहतर रोमांटिक गजलें कोई कैसे लिख सकता है..? #अंतिम #पैराग्राफ #राजमंगल #जी #के #लिए #है.. दो दशक तक देश की सेवा करने वाले हंसते मुस्कुराते शैल जी गंभीर स्वास्थ्यगत परेशानियों से जूझ रहे हैं । साल दो हजार सत्रह में इस बेहद ज़िंदादिल शख्श को “ब्रेन स्ट्रोक” हुआ था.. ब्रेन स्ट्रोक क्या होता है समझते हैं आप..? जिसमें इंसान मर भी सकता है.. मगर अजीब शख्श है ये.. जो मरा नहीं.. आज भी वेदांता में महीनों जिसका इलाज चला करता है..
और वही आदमी फिर से उठ खड़ा हो.. कभी गांव में हार्वेस्टर मशीन पर चढ़कर खेती कर रहा होता है.. तो कभी शहर में ग़ज़लों की फसलें उगा रहा होता है.. मैनें तो शुरू में कहा अजीब शख्श है.. “षड्यंत्री” है.. जरूर जवानी में इसका कोई “लफड़ा” रहा होगा.. वरना गजलों में इस स्तर का “रोमांटिसिज्म”.. एक बार एक युवा कवि की बीबी नाराज होकर चली गई..
उस बेचारे ने शैल की रोमानी गजलों को पढ़ते हुए ही तीन माह पार कर दिए.. अब ये मत पूछियेगा की ये बात मुझे किसने बताई.. चाहे उड़ती चिड़िया ने बताई हो.. वो मैं आपको क्यों बताऊँ..