जम्मू कश्मीर को लेकर कांग्रेस की उलझन
जय प्रकाश राय
जम्मू कश्मीर में धारा 370 एवं 35 ए हटाये जाने के बाद कांग्रेस में घमासान मच गया है। पार्टी के कई नेता मोदी सरकार के फैसले के समर्थन में खुलकर आने लगे हैं और यह पार्टी के लिये एक गंभीर मसला बनता जा रहा है। ताजा नाम कश्मीर के महाराज हरि सिंह के पुत्र कर्ण सिंह का है। उनका कहना है कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाये जाने का स्वागत किया जाना चाहिये। उनका यह भी कहना है कि उनकी चिंता 35 ए में व्याप्त रहे लैंगिक भेदभाव को दूर करने की जरुरत थी। इसके पहले पार्टी के तेज तर्रार नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार के फैसले का स्वागत कर सभी को भौचक कर दिया था क्योंकि वे राहुल गांधी के खासे नजदीकी माने जाते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि संसद में कांग्रेससंसदीय दल के नेता अधीर रंजन ने इस मुद्दे पर जो सेल्फ गोल किया था,उसकी भरपाई इन नेताओं द्वारा की जा रही है। श्री चौधरी ने मंगलवार को संसद में कहा था कि जब यह मामला संयुक्त राष्ट्र में चल रहा है तो यह मामला अंदरूनी कैसे हुआ? कांग्रेस पार्टी जानना चाहती है कि क्या सरकार पोओके के बारे में नहीं सोच रही है। आप कश्मीर पर स्थिति को स्पष्ट कीजिए। चौधरी के इस बयान पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने नाराजगी जाहिर की थी। लेकिन अब अधीर चौधरी के भी सुर बदल रहे हैं। उनका कहना है कि कश्मीर हमारा आतंरिक मामला है। हमारे देश को यह तय करने का पूरा अधिकार है कि देश में कैसा कानून को पारित किया जाए। कांग्रेस नेता डॉ.कर्ण सिंह ने कहा- इस फैसले के कई सकारात्मक पहलू हैं। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। इस पूरे मु्द्दे पर कांग्रेस की जमकर किरकिरी हो रही है। भाजपा पिछले कुछ अरसा के जम्मू कश्मीर समस्या का ठीकरा पंडित जवाहर लाल नेहरु के माथे फोडऩे की मुहिम चला रखी थी और सोसल मीडिया पर नेहरु की भूमिका पर लगातार सवाल किये जा रहे थे। अबतक कश्मीर को नेहरु की देन के रुप में पूरे देश के सामने पेश किया जाता रहा है लेकिन हाल के दिनों में जो कुछ घटनाक्रम हुआ और उसके बाद नेहरु को इस मुद्दे का खलनायक साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। भाजपा ने एक रणनीति के तहत इस मुद्दे पर सरदार बल्लव भाई पटेल को नायक साबित करने की मुहिम चलाई। लोक सभा एवं राज्य सभा में धारा 370 हटाये जाने को लेकर चली बहस में सत्ताधारी दल की ओर से हर वक्ता के निशाने पर केवल और केवल नेहरु ही रहे। राष्ट्रपति द्वारा धारा 35 ए को जोड़े जाने के लिये भी नेहरु को ही जिम्मेदार बताया जाता रहा। यही कारण हैकि कांग्रेस की समझ में नहीं आ रहा कि इस मुद्दे पर क्या स्टैंड अपनाये? वह कोई ऐसा कदम उठाने का जोखिम नहीं उठा सकती जिसमें नेहरु की छवि पर सवाल किये जायें। कांग्रेस की राजनीति इसी एक परिवार के इर्द गिर्द घूमती रही है और यही कारण है कि भाजपा भी इसे ही दुखती रग मानकर हमला करती रही है।
पंडित नेहरु से इतर जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर तत्कालीन गृह मंत्री सरदार बल्लव भाई पटेल एवं संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर को भाजपा द्वारा आगे किया जाता रहा है। जब बहस के दौरान कांग्रेस सांसद मनीश तिवारी ने कहा कि सरकार पटेल इसकी पृष्ठभूमि मे ंथे तो कांग्रेस पर भाजपा हमलावर हो गयी। यह भी सवाल उठाया गया कि जब देश के विभाजन के बाद हैदराबाद सहित तमाम रियासतों के विलय की जिम्मेदारी सरदार पटेल को सौंपी गयी तो फिर पंडित नेहरु ने जम्मू कश्मीर से सरदार पटेल को क्यों अलग कर दिया? अब जबकि कांग्रेस के ही कई दिग्गज नेता एक तरह से मोदी सरकार का साथ इस मुद्दे पर देने लगे हैं तो फिर कांग्रेस की उलझन और बढ गयी है। ऐसा माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर देश की जनता क्या चाहती है, यह कांग्रेस की समझ में नहीं आ रहा। उसकी उलझन यह है कि वह स्वीकर नहीं सकती कि इस मामले में उसकी ओर से चूक हुई है। आपातकाल को लेकर कांग्रेस माफी मांग चुकी है लेकिन उसे देश माफ करने को तैयार नहीं। अब जम्मू कश्मीर का मामला भी सामने आया है तो कांग्रेस की परेशानी चरम पर है। यह संकट भी ऐसे समय में आया है जब वे नेतृत्व को लेकर शून्य की स्थिति मेंदिखती है।
देश अब और इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं कि जम्मू एवं कश्मीर देश का अभिन्न अंग होकर भी अलग क्यों है? ये सवाल उठ रहे हैं कि जो अस्थाई व्यवस्था जम्मू एवं कश्मीर के लिये संविधान में डाली गई थी, उनपर 70 साल बीतने के बाद चर्चा क्यों नहीं होनी चाहिये। उसके नफा नुकसान को देश को बताया जाना चाहिये।
लेखक चमकता आईना के संपादक हैं