ब्यूरो प्रिंस कुमार मिठू
मधेपुरा (बीहार) लोक आस्था और सूर्योपासना के महा पर्व छठ आज सोमवार के नहाय – खाय और कद्दू – भात के साथ ही प्रारंभ हो गया। आज पवनैतिन विभिन नदियों, तालाबो, जलशयो आदि में स्नान – ध्यान कर कद्दू -भात खाकर इस महा पर्व का आगाज करेगी। इसके दूसरे दिन पवनैतिन खरना करेगी। इस दिन अर्थात मंगलवार को सभी पवनैतिन अपने घरों में स्नान – ध्यान कर मिट्टी के नये – नये चूल्हे पर खीर लकड़ियों के जलावन पर विशुद्ध मन से खीर – रोटी बनाकर एकाग्रचित मन से मां छठ मैया को अर्पित कर पूजा -अर्चना के बाद उसका प्रसाद अपने परिवारों और पड़ोसियों के बीच वितरित करेगी। इस प्रसाद को पवनैतिन बड़े ही शुद्ध मन से बनाती है। कहते है कि इसके दूसरे दिन अर्थात खरना के अगले दिन और कार्तिक मास शुक्ल पक्ष के छठे दिन अर्थात छठ के संध्या में विभिन्न धर्मिक नदियों, सरोवरों, तालाबो एव जलाशयों में अस्तानचलगामी सूर्य को अर्ध्य देती है। इसके अगले दिन सप्तमी के दिन अहले सुबह पवनैतिन उदयाचल सूर्य को अर्ध्य देती है और इसके साथ इस चार दिवसीय छठ पूजा का समापन हो जाती है। कहते है कि सूर्योपासना की चर्चा महाभारत में कर्ण को करते दिखया गया है। वैसे भी सुर्य ही मानव-दानव, पशु – पंक्षी, यहां तक की सभी जीवों पेड़-पौधे, घास – फूस का भी जीवन का आधार है। सूर्योपासना से शरीर के कई व्याधियां, चर्म रोग आदि खत्म हो जाते है। इस छठ पूजा को मनाने के लिए पिछले सप्ताह या उससे पूर्व ही प्रशासनिक स्तर के अलावे विभिन्न समिति एव उत्साही युवा साफ -सफाई के साथ घाटो को सजाने – सवारने में लगे हुए है। घाटो के साज – सज्जा देखकर ऐसा लगता है कि मानो धरती इंद्रलोक, देवलोक इस धार्मिक धरा पर उतर आयी है।