विपद काल में सनातनी परम्परा का निर्वहण करता भारत
डॉ अपर्णा
कोरोना की त्रासदी के बीच अधिकार, कर्तव्य और दायित्व के तिराहे पर भारत सरकार एकाधिक मोर्चे पर जूझ रही है। वैश्विक महामारी में वर्तमान में पूरे विश्व के लिए एक दुह्स्वप्न की भांति है। भारत में इस महामारी के फैलाव की जिहादी मुहिम नेपाल के रास्ते भी रची गई थी। समय रहते सुरक्षा बलों की मुस्तैदी ने हालांकि इसे विफल बना दिया। बावजूद इसके ऐसी अन्य घटनाओं की पुनरावृति को पूर्णतया नकारा नहीं जा सकता। सीमाओं पर प्रायोजित गोलाबारी और नवनिर्मित केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को उकसाने वाली कार्यवाही, सीमाओं पर हो रहे अनवरत सीजफायर उल्लंघन और पाक अधिकृत कश्मीर में चुनाव की घोषणा, पड़ोसी की नापाक इरादों की पुष्टि करता है।
करोना महामारी के फैलाव को संकुचित करने के उद्देश्य से लगाए गए लॉक-डाउन के कारण विकास के पहिए अवरुद्ध हो गए हैं। सीमित संसाधनों के समुचित उपयोग के जरिए इस त्रासदी से निपटने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। विपत्ति की इस बेला में सरकार तन-मन-धन से निर्बल, असहाय, और जरूरतमंद को सहायता पहुंचाने की यथेष्ट कोशिश कर रही है। किंतु कालचक्र की इस विषम परिस्थिति में भी प्रमुख विपक्षी दल राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हुए हैं। अपूर्ण और अपुष्ट खबरों के माध्यम से लोगों को दिग्भ्रमित करने की नापाक चालें चली जा रही हैं। प्रवासी श्रमिकों के घर वापसी के विभिन्न घटनाक्रम विपक्ष के कुत्सित विचारों का साक्षी है। लॉक-डाउन के पहले चरण में, आनंद विहार बस-स्टैंड की घटना से श्रमिक ट्रेन के टिकट का विवाद विपक्ष की इसी कलुषित विचारधारा का घिनौना उदाहरण है।
एक और जहां अमेरिका, इटली, स्पेन, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे विकसित राष्ट्रों में कोरोना प्रभावित मरीजों की संख्या मिलियंस में पहुंच रही है, वहीं भारत में इसे अभी तक हजारों तक ही सीमित रखा जाना, सरकार की दूरदर्शी सोच का प्रतिफल है। यूनाइटेड नेशन, विश्व स्वास्थ संगठन (UN and WHO) जैसे वैश्विक संगठनों ने भी भारत सरकार के प्रभावी प्रयासों की सराहना की है। निर्यात प्रतिबंध के बावजूद वैश्विक हित के लिए हाइड्रोक्सी क्लोरो क्वीन एवं अन्य दवाओं को कोरोना प्रभावित देशों तक पहुंचाकर वैश्विक संकट के समय वसुधैव कुटुंबकम की अपनी सनातन परम्परा को नई ऊर्जा प्रदान की है। एक ओर जहां चीन जैसे देश इस महामारी के समय दोयम दर्जे के मेडिकल उपकरण का निर्यात करके अपना आर्थिक हित साधने में लगे हैं, वही भारत के प्रयासों की सर्वत्र सराहना हो रही है। भारत ने इस त्रासदी के वक्त में 55 देशों को दवाइयां मुहैया कराई जिसमें से 34 देशों को इसे सिर्फ़ मदद के रूप में प्रदान किया गया है। इसके साथ-साथ कुवैत, मालदीव, नेपाल, कॉमरोस, सिसली, मेडागास्कर जैसे देशों में दवाइयों के साथ-साथ मेडिकल टीम को भेजकर भारत ने अपनी एक अलग ही छवि निर्मित की है। भारत के इन प्रयासों की सर्वत्र सराहना ही नहीं हो रही, अपितु वैश्विक संगठनों द्वारा इसे अनुकरणीय भी बताया जा रहा है।
जायज़ मुद्दों के अभाव में विपक्ष कभी घटती विकास दर और कभी अर्थव्यवस्था का राग अलाप रहा है, तो कभी खाद्यान्नों की कमी का रोना रो रहा है, जबकि सरकार द्वारा पहले ही खाद्यान्नों के समुचित भंडार की बात कही जा चुकी है। सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा जरूरतमंदों तक भोजन एवं आवश्यक वस्तुओं के वितरण की समुचित व्यवस्था की गई है। विगत 6-7 सप्ताह के लॉक-डाउन अवधि में अपने तमाम प्रयासों के बावजूद विपक्ष ने ऐसी किसी पुष्ट सूचना का संप्रेषण नहीं किया है जिससे लगे कि खाद्यान्न संकट की स्थिति है। छिटपुट घटनाएं अवश्य हुई है जिसमें घर जाने के लिए बैचेन प्रवासी श्रमिक नाराज दिखे। इनके पीछे की भी असली वजह उनके बीच गलत जानकारियों का दुष्प्रचार करना रहा। जिससे प्रवासी श्रमिक कई बार उग्र भी हुए। इन्हीं सब बातों का पूर्वानुमान कर माननीय प्रधानमंत्री ने लोगों को पूर्व में ही आगाह करते हुए कहा था कि “जान है तो जहान है”। देश के नाम अपने तीसरे संबोधन में प्रधानमंत्री ने यह बात दोहराई कि उनकी इच्छा थी जो जहां है वहीं रहे, किंतु विपक्ष के फैलाए भ्रम और मानव के विचलित मन की शांति हेतु श्रमिक एवं विशेष ट्रेन के जरिए उनकी सुरक्षित घर वापसी भी सुनिश्चित की जा रही है। विषम परिस्थितियों में जहां संपूर्ण भारतवर्ष से एकजुटता के प्रदर्शन की अपेक्षा थी, वहीं कलुषित मानसिकता के चंद लोगों द्वारा नकारात्मक भूमिका अदा की गई। बावजूद इसके समय-समय पर निर्णायक और ठोस निर्णयों के सहारे सरकार सभी मोर्चे पर अपने दायित्वों का सम्यक निर्वहन कर रही है।
डॉ अपर्णा
सहायक प्राध्यापक , राजनीति एवं अंतराष्ट्रीय संबंध विभाग
केन्द्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, रांची