महाराष्ट्र: सियासी ड्रामे में और आ सकता है ट्विस्ट
बिशन पपोला
महाराष्ट्र में बदले सियासी ड्रामे के बाद भले ही बीजेपी व अजित पवार एनसीसी समर्थक विधायकों ने मिलकर सरकार बना ली हो, लेकिन राज्य में जिस तरह से सियासी ड्रामा चला है, वह चौंकाने वाला अवश्य है। अभी इस पर विराम नहीं लगा है। जब सरकार बहुमत साबित कर लेगी, तब ही इस सियासी ड्रामे पर विराम लगेगा।
वैसे तो राजनीति के मैदान में हर कुछ जायज होता है। जोड़-तोड़ के ख्ोल पहले भी चलते रहे हैं, लेकिन जिस प्रकार की स्थिति महाराष्ट्र में देखने को मिली, उसकी संभावना बिल्कुल नहीं जताई जा रही थी। पहले बीजेपी और शिवसेना का अलग होना और फिर शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का मिलकर राज्य में सरकार बनाने के प्रयास के बीच अचानक की बीजेपी के समर्थन में शरद पवार के भतीजे अजीत पवार का आ जाना, इस बात का सार्थक करता है कि राजनीति में सबकुछ संभव है। इस सियासी ड्रामे में सबसे अधिक नुकसान में पवार फैमली रही, क्योंकि पार्टी में दो फाड़ होने से एनसीपी की राजनीतिक जमीन पर निश्चित ही बड़ा बिखराव हुआ है, जिसको पाटना बहुत आसान नहीं है।
भतीजे की बगावत के बाद सकते में आए शरद पवार आनन-फानन में भले ही डैमेज कंट्रोल में जुटे हों और उनका पलड़ा फिलहाल भारी लग रहा हो, लेकिन जिस तरह अजीत पवार व देवेंद्र फडनवीस बहुमत साबित करने को लेकर काफी आत्मविश्वासी दिख रहे हैं, उससे लगता कि आने वाले दिनों में शरद पवार के लिए दिक्कत हो सकती है।
महाराष्ट्र में इस दौरान घटे राजनीतिक घटनाक्रम के बीच जो सबसे अलग चीज थी, जिसने राजनीतिक ड्रामे के इतर सकते में डाला, वह था राज्यपाल भगत सिंह कोश्यिारी का रवैया। उन्होंने सरकार बनाने के लिए दिए गए समय को लेकर जिस प्रकार निष्पक्षता नहीं दिखाई, उस पर सवाल उठना बेहद लाजिमी है। अगर, उन्होंने इसमें थोड़ा-सा भी ध्ौर्य दिखाया होता तो यह मामला कोर्ट तक नहीं पहुंचता और इससे पहले राज्य में राष्ट्रपति शासन भी लागू नहीं होता। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच सरकार बनाने पर सहमति तकरीबन बन ही चुकी थी, लेकिन गवर्नर ने थोड़ा और इंतजार करना बेहतर नहीं समझा। भारतीय संघीय प्रणाली में सबसे आदर्श स्थिति यही मानी जाती है कि राज्यपाल द्बारा सरकार के गठन की हर संभव कोशिश की जाए, लेकिन महाराष्ट्र में यह सब देखने को नहीं मिला। राज्यपाल भगत सिह कोश्यारी ने विभिन्न दलों के बीच लगातार असमंजस की स्थिति को सियासी अस्थिरता का संकेत मान लिया था, जिसके चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था।
उन्होंने जिस तरह से बहुमत साबित करने के लिए भी दोनों पक्षों में भेदभाव किया, उससे पिछले कुछ समय से लगातार लग रहे इस आरोप को मजबूती मिली कि राज्यपाल अब सारे फैसले केंद्र सरकार को खुश रखने के लिए ही करने लगे हैं। कोश्यारी ने बीजेपी को सरकार गठन के बारे में बताने के लिए 48 घंटे का समय दिया, जबकि शिवसेना को समर्थन-पत्र हासिल करने के लिए 24 घंटे का वक्त दिया। एनसीपी को तो उन्होंने 12 घंटे में ही निपटा दिया। यही वजह है कि शिवसेना ने उनके रुख को जल्दबाजी भरा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी और अदालत से मांग की कि वह शिवसेना को सरकार के गठन के लिए उचित समय दिए जाने का निर्देश जारी करे।
इस तरह राज्यपाल के निर्णयों को अदालत में चुनौती दिया जाना, हमारी व्यवस्था के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है। फिलहाल, महाराष्ट्र में सरकार बन गई है और कोर्ट ने भी समर्थन-पत्र मांगा है। ऐसे में, आने वाले दिनों की स्थिति और भी देखने लायक होगी, क्योंकि जहां अजीत पवार व देवेंद्र फडनवीस बहुमत साबित करने को लेकर आश्वस्त हैं और उधर शरद पवार अपने सभी विधायकों के समर्थन में रहने को लेकर आश्वस्त हैं, ऐसी स्थिति में सियासी ड्रामे में और नया ट्विस्ट आ सकता है।