नीरज प्रियदर्शी
राजनीतिक रणनीतिकार और जदयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के एक बयान ने इन दिनों बिहार के राजनीतिक हलके में चर्चाओं का बाज़ार गर्म कर दिया है.
किशोर ने एक वेब पोर्टल को दिए साक्षात्कार में कहा था, “जुलाई 2017 में राजद से महागठबंधन टूटने के बाद नीतीश कुमार को एनडीए में शामिल होकर सरकार बनाने के बजाय आदर्श रूप में एक नया जनादेश हासिल करके सरकार बनानी चाहिए थी.”
इसके पहले भी मुज़फ्फरपुर के एक कार्यक्रम में दिया गया प्रशांत किशोर का बयान सुर्खियों में आया था, जब उन्होंने भरी सभा में यह कह दिया था कि ‘जब वह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनाने में मदद कर सकते हैं तो युवाओं को एमएलए-एमपी क्यों नहीं बना सकते.”
प्रशांत के दोनों बयान विवाद में रहे हैं. उन्हीं की पार्टी के नेताओं ने उनके बयान की आलोचना की है.
कुछ नेताओं ने दबी ज़ुबान में पार्टी के अंदर प्रशांत किशोर का विरोध करना भी शुरू कर दिया है.
क्या ये अंतर्कलह है?
पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता नीरज कुमार ने तो बातचीच में यहां तक कह दिया कि ‘प्रशांत किशोर नए-नए राजनीति में आए हैं और आते ही इस तरह की बयानबाज़ी करके राजनीतिक दुर्घटना के शिकार हो गए हैं.’
जदयू के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत किशोर के बयान से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए नाम लिए बग़ैर कहा, “जिस समय गठबंधन टूटा था, उस समय की पार्टी गतिविधि के बारे में उनको जानकारी नहीं है. एनडीए के साथ जाने के मामले में पूरी पार्टी की सहमति थी. हमारे नेता नीतीश कुमार उस निर्णय के पक्ष में थे.”
राजनीतिक जानकार और विश्लेषक इसे अंतर्कलह से जोड़कर देख रहे हैं. जदयू पार्टी के दोफाड़ होने के बात भी सामने आने लगी है.
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “जेडीयू में अंतर्कलह को साफ़ देखा जा सकता है. ऐसा नहीं है कि सब लोग प्रशांत किशोर के बयान के विरोध में ही हैं. पार्टी के अंदर भी किशोर के समर्थन में लोग खड़े हैं. लेकिन, जहां तक बात इसके राजनीतिक परिणामों की है तो इसका प्रभाव आने वाले दिनों में बतौर पार्टी जेडीयू पर दिखेगा.”
सवाल ये उठता है कि आख़िर ऐसे वक़्त में जब लोकसभा चुनाव में कुछ दिन ही शेष रह गए हैं, भाजपा-जदयू-लोजपा के एनडीए गठबंधन की सीटों और उम्मीदवारों का फ़ैसला होना बाक़ी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो पटना में रैली करके एनडीए के चुनावी कैंपेन की शुरुआत भी कर दी है. ऐसे में प्रशांत किशोर के इन बयानों के मायने क्या हैं?
क्या बोले प्रशांत
अपने बयान पर क़ायम किशोर ने कहा, “मैं अब भी कहता हूं कि नीतीश कुमार के उस निर्णय से असहमत नहीं हूं. मगर मेथड से असहमत हूं. निर्णय को सही और ग़लत कहा जा सकता है. ये उससे तय होगा कि आप किस नज़रिए से सोचते हैं.”
किशोर आगे कहते हैं , “जहां तक नज़रिए की बात है तो मेरा नज़रिया ये है कि बतौर राजनेता नीतीश कुमार ने जनता के बीच काफ़ी उच्च मानदंड स्थापित किया है. नीतीश कुमार वो नेता हैं कि जिन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव में मिली पार्टी के हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए विधानसभा में मेजोरिटी की सरकार होते हुए भी मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.”
मेथड (राजद गठबंधन से अलग होने का फ़ैसला और 24 घंटे के अंदर एनडीए में शामिल होकर सरकार बनाना) के सवाल पर किशोर ने कहा, “अगर आप गांधी और लोहिया को फ़ॉलो करते हैं तो आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? क्योंकि गांधी और लोहिया की पॉलिसी रिसॉर्ट, ओवरनाइट चेंज और जोड़-तोड़ कर किसी तरह सरकार बना लेने वाली पॉलिसी तो थी नहीं. मैं तो उस नज़रिए से ही देखता हूं नीतीश कुमार को. वो देश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं. देश में हवा के विपरीत खड़े हुए मोदी के ख़िलाफ़. जब लोगों ने मेंडेंट नहीं दिया तो मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी. ये सामान्य राजनेता के लिए एक बड़ी बात है.”
जदयू के ही कुछ वरिष्ठ नेता कह रहे हैं कि प्रशांत किशोर की राजनीतिक आयु छोटी है और वह राजनीतिक दुर्घटना के शिकार हो गए हैं. इस बारे में प्रशांत किशोर ने कहा, “वे कहते हैं तो कहें. मैं उन्हें कुछ नहीं कहूंगा. अगर लोग ये कह रहे हैं कि मुझे राजनीति नहीं आती है तो नहीं आती है. इसमे मैं क्या कर सकता हूं?”
क्या बंट रही है पार्टी?
लेकिन प्रशांत की पार्टी के ही वरिष्ठ लोग उनके विरोध में खड़े हो गए हैं. पार्टी के दो खेमों में बंटने की बात आ रही है. पार्टी को चुनाव में इसका नुकसान भी हो सकता है.
प्रशांत किशोर ने इस बारे में कहा, “पार्टी में कुछ ऐसे लोग हैं जो भाजपा के साथ चलने में अपना भला समझते हैं या यूं कहें कि उसके हिमायती हैं. और वो ऐसा वर्ग है जो 60 साल से ऊपर का है या फिर उसके इर्द-गिर्द का है. और जो दूसरा वर्ग है जो अपेक्षाकृत रूप से युवा है, वो अपने आप को साइडलाइन फ़ील करता है. वो समझता है कि जेडीयू पार्टी अपने दम पर खड़ी हो, पार्टी का विकास और विस्तार हो. ये उन्हीं दो वर्गों की लड़ाई है.”
प्रशांत किशोर इसे विचारधाराओं की लड़ाई कहते हैं. उन्होंने कहा, “एक तबका है जो कहता है कि पार्टी को बढ़ाइए, पार्टी को अपने दम पर खड़ा करिए. चाहे उसके लिए पांच साल और संघर्ष करना पड़े तो किया जाए. यह तबका प्रशांत किशोर की तरह सोचता है. और जो दूसरा वर्ग है वो 10-15 साल से पार्टी से जुड़ा है. सोच रहा है कि अगर एनडीए के साथ जुड़े रहेंगे तो तुरंत सत्ता के भागीदार बन जाएंगे. वो सोच रहा है कि प्रशांत किशोर के ऐसा बोलने से भाजपा के साथ रिलेशन बिगड़ जाएगा.”
प्रशांत किशोर ने तीन मार्च को हुई संकल्प रैली से भी दूरी बनाई हुई थी. मंच से भी एक भी बार किशोर का नाम नहीं उठा.
टीम पीके के सूत्र बताते हैं कि प्रशांत किशोर का मोदी की रैली में न शामिल होना उनका निजी फ़ैसला था. सूत्र ये भी कहते हैं कि “ये अच्छा ही हुआ कि प्रशांत उस रैली में शामिल नहीं हुए. मंच से कुल 14 लोग बोले जिनमें 11 लोग भाजपा के थे और मात्र तीन जदयू के थे. आख़िर आप जिसके दम पर लड़ रहे हैं, जिसने सबसे अधिक भीड़ जुटाई है, उसको मंच पर इतनी कम जगह क्यों?”
लेकिन फिर भी इस वक़्त पर यह बोलने का क्या औचित्य है कि नीतीश कुमार को एनडीए में शामिल होने से पहले जनादेश हासिल करना चाहिए था. ये सवाल ख़ुद जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ही उठाते हैं. कहते हैं कि ‘वो तो उस वक्त पार्टी में थे भी नहीं और यह पार्टी के संसदीय बोर्ड का फ़ैसला था.’
प्रशांत किशोर अपने बयान की प्रासंगिकता पर बात करते हुए कहते हैं, “तब हमसे किसी ने नहीं पूछा. जब पूछा गया तो मैंने बता दिया. मैं उस वक़्त पार्टी में था ही नहीं तो किस हैसियत से कहता?”
बयान के पीछे कोई रणनीति है?
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि प्रशांत किशोर एक राजनीतिक रणनीतिकार हैं. उनके हर क़दम के अपने मायने हैं. चूंकि वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे क़रीबी भी हैं, इसलिए ज़ाहिर है कि उनके बयानों असर नीतीश कुमार पर भी पड़ेगा.
नरेंद्र मोदी की संकल्प रैली के अगले दिन यानी चार मार्च को जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की एक बैठक भी हुई थी. उस बैठक का ज़िक्र करते हुए जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के एक सदस्य ने बताया कि मुख्यमंत्री ने अपनी क्लोज़िग स्पीच में भी प्रशांत किशोर का समर्थन किया था.
मुख्यमंत्री ने एक नहीं, क़रीब 10 से 15 बार प्रशांत किशोर का नाम लेते हुए कहा था, “पार्टी का आगे का रास्ता वो है जो प्रशांत किशोर बता रहे हैं. मैं कितने दिनों तक चला पाऊंगा? जैसा प्रशांत किशोर कह रहे हैं, वैसा नहीं करने पर पार्टी ख़त्म हो जाएगी.”
प्रशांत किशोर ने कहा उन्होंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कहा था कि ‘जदयू अपने दम पर आगे बढ़े, लड़े और अगर इसके लिए भाजपा से राजनीतिक लड़ाई भी लड़नी पड़े तो लड़ेंगे.’
दरअसल प्रशांत किशोर के बयान पर यह विवाद उस दिन से चल रहा है जिस दिन उन्होंने मुज़फ्फरपुर में एक कार्यक्रम के दौरान वहां के एबीवीपी के पुराने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को जेडीयू में शामिल कराया था. इस पर मुज़फ्फरपुर के कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं ने प्रतिक्रिया भी दी थी.
टीम पीके के सूत्र कहते हैं कि जिन लोगों ने सोशल मीडिया पर उस बयान को वायरल कराया, उसमें भी भाजपा के ही लोग थे.
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि संकल्प रैली में भी जदयू ने अपनी ताक़त का अहसास कराया था. रैली में जो भीड़ जुटी थी, उसमें अधिकांश के हाथों में जदयू का ही झंडा-बैनर था.
मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “यह बिल्कुल मुमकिन है कि यह सबकुछ एक प्रयोजन के तहत किया गया हो क्योंकि अभी सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है. केवल फॉर्मूलेशन पर बात रुकी है. प्रशांत किशोर एक चुनावी रणनीतिकार भी हैं, हमें इसका भी ध्यान रखना चाहिए. ऐसे समय में उनके ये बयान एनडीए के लिए सिरदर्द साबित हो सकते हैं. और आज की राजनीति उसूलों वाली राजनीति तो रह नहीं गई है, मोहरे कभी भी बदल सकते हैं”
ये तय है कि प्रशांत किशोर के बयानों पर छिड़े विवाद का असर एनडीए पर पड़ेगा. लेकिन क्या?
भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं, “इसका कोई असर नहीं पड़ेगा. गठबंधन के हमारे नेता नीतीश कुमार जी हैं. प्रशांत किशोर उपाध्यक्ष पद पर हैं. ये उनके निजी विचार हो सकते हैं. मगर मैं इतना जरूर कहूंगा कि अगर कोई इवेंट मैनेजर, एडवरटाइज़िंग मैनेजर या मार्केटिंग मैनेजर देश के वोटर को कंज्यूमर समझता है, कैंडिडेट को प्रॉडक्ट समझता है और पोलिटिकल पार्टी को प्राइवेट लिमिटेड समझता है तो ये उसकी भूल है.”
निखिल आनंद ने कहा, “इस देश में राजनीति वही कर सकता है जो जनता के दिलों में बसा हो. नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने जनता के बीच अपना वजूद स्थापित किया है.”
Sabhar (BBC)