कमान संभालते ही हेमंत ने दिया बड़ा संदेश
जय प्रकाश राय
हेमंत सोरेन की अगुवाई में नई सरकार ने झारखंड की कमान उम्मीदों की बीच संभाल ली है और शपथ लेते ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक्सन में आ गये हैं। पहली कैबिनेट की बैठक में जिस तरह के फैसले लिये गये हैं उससे यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि सरकार किस मोड में काम करने जा रहीहै। पत्थलगढी का मुद्दा पिछली सरकार के लिये सरदर्द बना था और हेमंत सरकार ने उस आंदोलन से जुड़े तमाम मुदकमे वापस लेने का ऐलान कर उन आंदोलनकारियों को संदेश देने का काम किया है। पत्थलगढी को लेकर कई तरह के संशय का वातावरण बना रहा था। खुद सरकार में शामिल भाजपा के कई मंत्री पत्थलगढी को लेकर खुलकर कुछ कहने से बचते रहे थे। कहीं न कहीं इस जनादेश में ऐसे आंदोलनों का असर भी देखने को मिला है। माना जाता है कि महागठबंधन को आदिवासियो का जिस तरह का जबर्दस्त समर्थन मिला है, उसे लेकर सरकार की ओर से कई अहम फैसले लिये जा सकते हैं। परिणाम आने के बाद से ही हेमंत सोरेन जिस सहज भाव का परिचय दे रहे हैं, यह सभी को काफी आकर्षित कर रहा है। वे जिस संयम एवं सहजता का प्रदर्शन कर रहे हैं, इससे यह भी संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है कि उनके लिये सभी के द्वार खुले हैं। कहीं न कहीं पिछली सरकार के समय इस तरह का संदेश गया था कि वहां आम लोगों की पहुंच नहीं के बराबर रह गयी है। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान हेमंत सोरेन का व्यक्तिव और भी उभरकर सामने आया। जिस तरह तमाम अतिथियों की वे आगवानी कर रहे थे उससे उनका आत्मविश्वास साफ झलक रहा था। खासकर राहुल गांधी को लेकर मंच पर उनका तमाम अतिथियों एवं अपने विधायकों से परिचय कराया जाना सभी को संदेश दे रहा था। पूरे राजनीतिक घटनाक्रम में भले झामुमो की भूमिका सबसे अहम रही लेकिन हेमंत सोरेन ने कहीं सेयह दर्शाने का प्रयास नहीं किया कि सब उनकी ही बदौलत हुआ है। यह उनके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी बात दिखी है।
झारखंड में पहलीबार इतने प्रचंड बहुमत के साथ कोई सरकार सत्ता में आई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 41 सीटों पर चुनाव लड़कर 30 में कामयाबी हासिल की जो बहुत बड़ी कामयाबी कही जा सकती है। उसका स्ट्राइक रेट काफी बेहतर रहा। पूरे चुनाव प्रचार अभियान में अकेले हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित केंद्रीय मंत्रियों की फौज का मुकाबला किया और जो परिणाम सामने लाया वह उनकी लोकप्रियता को दर्शाने वाला है। यही कारण है कि अब उनसे पूरे प्रदेश को काफी उम्मीदें है। झारखंड में रघुवर दास की पिछली सरकार ने कार्यकाल पूरा किया था। पहली बार इस प्रदेश में ऐसा हुआ। उस समय केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार रही जिसका फायदा रघुवर सरकार को मिला। अब हेमंत सोरेन के लिये बड़ी चुनौती केंद्र वाली भाजपा सरकार का सहयोग प्राप्त करने की रहेगी। यह देखना दिलचस्प होगौ कि क्या वे ममता बनजी, अरविंद केजरीवाल, उद्धव ठाकरे सरीखे मुख्यमंत्रियों की तरह केंद्र के साथ दो दो हाथ करने के लिये तैयार होंगे या फिर प्रदेश हित में प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी एवं दूसरे मंत्रियों से मिलकर काम करेंगे। यहीं पर कांग्रेस की भूमिका अहम हो जाएगी।वह हेमंत सोरेन के काम करने के तरीके पर कितनी टोका टोकी करेगी, इसपर सबकी नजर होगी। कांग्रेस ऐसी पार्टी है जो भले झारखंड में बी टीम की भूमिका में हो लेकिन वह अपने टर्म पर सरकार को डिक्टेट करनेे का प्रयास करती है। ऐसे में हेमंत सोरेन के सामने आने वाले दिनों में कई ऐसे मौके आने वाले हैं जहां उनकी परीक्षा खुद उनके सहयोगी ही लेंगे। लेकिन प्रदेश की जनता की काफीउम्मीदें एक ऐसे मुख्यमंत्री से बंध गयी है जिसने शपथ लेने के पहले ही अपने व्यवहार से सभी का दिल जीत लिया है।
लेखक चमकता आर्ईना, जमशेदपुर के संपादक हैं