अब तीन तलाक बना अपराध
बिशन पपोला
लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी तीन तलाक Triple Talaq बिल पर मुहर लग गई है। ऐसे में, भारत में भी अब तीन तलाक देना गैर कानूनी होगा। यह मुस्लिम महिलाओं के लिए बड़ी राहत भरी खबर है। मोदी सरकार ने पहले भी राज्यसभा में इस बिल को पास कराने की कोशिश थी, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई थी, लेकिन इस बार पूरी प्लानिंग के तहत इस बिल का पास करा लिया गया है। मंगलवार यानि 30 जुलाई 2019 को इस ऐतिहासिक बिल को मंजूरी दी गई। राज्यसभा में बीजद के समर्थन तथा सत्तारूढ़ घटक जदयू एवं अन्नाद्रमुक के वाक आउट के चलते सरकार उच्च सदन में इस विवादास्पद बिल का पास कराने में सफल रही। मुस्लिम महिला( विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक को 84 के मुकाबले 99 मतों से पारित करा लिया गया। इस विधेयक को पारित कराते समय विपक्षी कांग्रेस, सपा एवं बसपा के कुछ सदस्यों तथ तेलंगाना राष्ट्र समिति एवं वाईएसआर कांग्रेस के सदस्यों के सदन में उपस्थित नहीं रहने के कारण सरकार को काफी राहत मिली। बता दें कि इससे पहले इस बिल को 84 के मुकाबले 100 मतों से खारिज कर दिया गया था। इस बिल में कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिससे तीन तलाक देने की कोशिश करने वालों से कानून सख्ती से निपटेगा।
बिल में रखे गए खास प्रावधानः
– अब तीन तलाक देना होगा गैर कानूनी।
– तीन तलाक देने वालों को तीन साल की कैद व जुर्माना देना होगा।
– जिसे तलाक दिया जाए, उस महिला के बच्चों के भरण पोषण के लिए गुजारा भत्ता देना होगा।
– जुबानी या मोबाइल से तलाक देना, अब होगा गैर कानूनी।
– आरोपी के खिलाफ केवल पीड़ित और खून के रिश्ते वाले ही दर्ज करा पाएंगे शिकायत।
– बिल के प्रावधान तत्काल तीन तलाक के मामले को सिविल मामलों की श्रेणी से निकालकर आपराधिक श्रेणी में डालते हैं।
– यह कानून सिर्फ तलाक-ए-बिद्त यानि एक साथ तीन तलाक बोलने वालों पर होगा लागू।
– अब तीन तलाक बना संज्ञेय अपराध। पुलिस आरोपी को कर सकती है बिना वारंट के गिरफ्तार।
– यह अपराध तभी मना जाएगा, जब या तो स्वयं पीड़ित महिला या उसका कोई सगा-संबंधी शिकायत करेगा।
– मजिस्ट्रेट आरोपित को दे सकता है जमानत। पर इसके पीछे शर्त यह है कि जमानत तभी मिलेगी, जब पीड़ित महिला का पक्ष सुना जाएगा।
– पीड़ित महिला के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट दे सकता है समझौते की अनुमति।
– मजिस्ट्रेट को होगा सुलह कराकर शादी को बरकरार रखने का अधिकार।
– पीड़ित महिला नाबालिग बच्चों को अपने पास रख सकती है, इस संबंध में मजिस्ट्रेट ही करेगा तय।
– जम्मू-कश्मीर से छोड़कर पूरे भारत में लागू होगा कानून।
विरोध में विपक्ष ने यह दिए थे तर्कः
– इस कानून के लागू होने के बाद इसका दुरुपयोग मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ हो सकता है। इसके पीछे की वजह यह है कि विधेयक में ट्रिपल तलाक साबित करने की जिम्मेदारी केवल महिला पर है। महिला के साथ अगर, पुरुषों को भी इसका साबित करने की जिम्मेदारी दी जाती तो कानून और होता सख्त।
– तलाक देने पर पति को जेल भेज दिया जाएगा तो वह पत्नी एवं बच्चों को गुजारा भत्ता कैसे देगा।
– इस्लाम में शादी को दीवानी समझौता बताया गया है। तलाक का मतलब इस करार को समाप्त करना है। नए कानून के तहत तीन तलाक को बनाया गया है अपराध।
– 1986 के मुस्लिम महिला संबंधी एक कानून के तहत तलाक पाने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता मिल रहा है। इस कानून से पुराने कानून के जरिए मिलने वाला भत्ता हो सकता है बंद।
– मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने बात कही गई है, पर नहीं बताया गया है उसके निर्धारण का तौर तरीका।
– कानून संविधान से मिले मूल अधिकारों का हनन है। कई प्रावधान नहीं हैं काननू संगत।
– तीन तलाक को अपराध की श्रेणी से जाए हटाया।
– जब तीन तलाक को निरस्त मान लिया गया है तो फिर तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान रखना नहीं है सही।
– इस्लाम में शादी एक करार है और सरकार द्वारा इसे सात जन्म का बंधन बनाने का मतलब है मुस्लिम परिवार को तोड़ना।
– विधेयक को भेजा जाए सेलेक्ट कमेटी में। इसकी जगह लाया जाए कोई वैकल्पिक विधेयक।
सरकार की तरफ से दी गई थी यह दलीलः
– इस बिल को लेकर कानून सियासत, धर्म, सम्प्रदाय का सवाल नहीं है, बल्कि नारी के सम्मान और नारी न्याय का है सवाल।
– यह भारत की बेटियों के अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित है मामला।
– तीन तलाक विधेयक मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के मकसद से लाया गया है, इसके पीछे सरकार नहीं है कोई और मंशा।
– इस मामले को न देखा जाए किसी राजनीतिक चश्मे से।
– सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक फैसले में इस प्रथा पर रोक लगाने के बाद भी जारी है तीन तलाक की प्रथा।
इस तरह चली तीन तलाक की लड़ाईः
16 अक्टूबर 2015- इस दिन एक सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने एक बेंच के गठन का आदेश दिया था। जिसको यह जांचने की जिम्मेदारी दी गई थी कि क्या मुस्लिम महिलाओं को तलाक के मामले में लिंग भेदभाव का सामना तो नहीं करना पड़ रहा है।
5 फरवरी 2016- सुप्रीम कोर्ट के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से तत्काल तीन तलाक, निकाह हलाला और कई पत्नियां रखने के अधिकार के मामलों में संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का मदद करने को कहा।
22 जून 2016- सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों के बीच तत्काल तीन तलाक के मामलों को संवैधानिक ढांचे की कसौटी पर जांचने को कहा।
7 अक्टूबर 2016- भारत के इतिहास में केंद्र सरकार ने पहली बार सुप्रीम कोर्ट में तत्काल तीन तलाक का विरोध किया और लैंगिक समानता व धर्मनिरपेक्षता के आधार पर किया था पुनर्विचार का समर्थन।
16 फरवरी 2017- सुप्रीम कोर्ट ने पांच न्यायाधीशों की एक संवैधानिक पीठ के गठन का दिया निर्देश। ताकि यह पीठ तत्काल तीन तलाक, निकाह हलाला और कई पत्नियों को रखने के मामलों पर विचार करे और फैसला सुनाए।
17 मार्च 2017- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कोर्ट से कहा कि मामला न्यायपालिका के क्षेत्र से बाहर का है।
3 मई 2017- सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल तीन तलाक और हलाला जैसे मुद्दे के लिए सलमान खुर्शीद को बनाया न्यायमित्र।
12 मई 2017 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तत्काल तीन तलाक मुस्लिमों में शादी तोड़ने का सबसे बुरा और वांछनीय है तरीका।
22 अगस्त 2017- सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला और कहा कि तत्काल तीन तलाक यानि तलाक-ए-बिद्त है असंवैधानिक। कुरान के मूल सिद्घांतों के है खिलाफ। दिसंबर 2017 में लोकसभा ने मुस्लिम महिलाओं- विवाह पर अधिकारों का संरक्षण विधयेक-2017 को किया पारित।
9 अगस्त 2018- केंद्र ने तत्काल तीन तलाक विधेयक में संशोधन को दी मंजूरी।
10 अगस्त 2018- मानसून सत्र के दौरान राज्य में तत्काल तीन तलाक विधेयक पेश किया गया। सर्वसम्मति नहीं होने के कारण सरकार विधेयक पारित कराने में रही थी असफल।
10 सितंबर 2018- कैबिनेट ने तत्काल अध्यादेश लाकर तत्काल तीन तलाक को तीन साल की जेल की सजा के साथ बना दिया था दंडनीय अपराध।
31 दिसंबर 2018- विपक्ष ने राज्यसभा में विधेयक की जांच की रखी मांग।
20 जून 2019- राष्ट्रपति ने राजनीतिक दलों से संसद के संयुक्त सत्र में अपने संबोधन के दौरान तत्काल तीन तलाक को मंजूरी देने का किया था आग्रह।
25 जुलाई 2019- विपक्ष के हंगामे के बाद लोकसभा में पारित किया गया विधेयक।
30 जुलाई 2019- राज्यसभा में पास हुआ ऐतिहासिक बिल।
तीन तलाक का सच
तलाक..तलाक..तलाक। Talaq…Talaq…Talaq… ये तीन शब्द कहने मात्र से पति-पत्नी का रिश्ता खत्म हो जाता था, चाहे उस रिश्ते की उम्र दो महीने पुरानी हो या बीस वर्ष। इस संबध में हिंदू और मुस्लिम धर्म के अनुसार स्थिति अलग रही। हिंदू धर्म में जहां इसे सात जन्मों का बंधन माना गया है, वहीं मुस्लिम धर्म में यह एक अनुबंध था। यह स्त्री-पुरुष के बीच का करार था कि अगर, उनमें किसी भी हाल में निभ नहीं पाए तो तलाक लेकर संबध तोड़ा जा सकता था।
तीन तलाक के कुछ चर्चित प्रकरणः
शाहबानो प्रकरण “Shahbano case”
तीन तलाक की लंबी लड़ाई के बीच शाहबानो प्रकरण याद आना लाजिमी था। इंदौर की शाहबानो के कानूनी तलाक भत्ते पर देश भर में राजनीतिक बवाल मच गया था। मुस्लिम महिला शाहबानों को उसके पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था। पांच बच्चों की मां थी शाहबानो और उम्र थी 62 वर्ष। गुजारा भत्ता पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। केस भी जीत लिया मगर, उसे पति से हर्जाना नहीं मिल सका। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड “All India Muslim Personal Law Board” ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरजोर विरोध किया।
इस विरोध के बाद 1986 में राजीव गांधी “Rajiv Gandhi” की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया। इस अधिनियम के तहत शाहबानो को तलाक देने वाला पति मोहम्मद गुजारा भत्ता के दायित्व से मुक्त हो गया था। तलाक-तलाक-तलाक कहकर अपनी जिंदगी से पत्नी को बेदखल करने के इतने वर्षों बाद भी मुस्लिम महिलाओं की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है।
शायरा प्रकरण “Shayra Case”
शाहबानों प्रकरण के बाद शायरा प्रकरण भी काफी गर्म हुआ। असल में, उतराखंड “Uttrakhand” की रहने वाली शायरा को उसके पति ने चिट्ठी भेजकर तलाक दे दिया था। शायरा की शादी इलाहाबाद के रिजवान से 2००2 में हुई थी। पहले तो रिजवान उसे बहुत प्रताड़ित करता था, जिसके बाद रिजवान और शायरा अलग-अलग रहने लगे थे। एक दिन रिजवान ने चिट्ठी भेजकर शायरा को तीन बार तलाक कह दिया।
शायरा का कहना है कि शादी के पहले से ही दिन रिजवान उस पर अत्याचार करने लगा। अप्रैल 2०15 में पति रिजवान ने तीन बार तलाक कहकर शायरा से नाता तोड़ लिया। शायरा ने यह भी आरोप लगाया है कि उसके शौहर ने उसका छह बार जबरन अबॉर्शन करवाया है और वह उस पर गर्भनिरोधक गोलियां खाने के लिए भी दबाव बनाता था। शादी के 15 साल बाद ये रिश्ता तब टूटा, जब उसके घर तलाकनामा पहुंचा। शायरा की सुप्रीम कोर्ट से मांग है कि उसे अपने भरण-पोषण दो बच्चों की कस्टडी चाहिए।
सोशलॉजी से ग्रेजुएट शायरा न्याय के लिए अड़ी हुई है। वह खुलकर कहती है कि इस्लाम धर्म में पुरूषों के मुकाबले महिलाओं को बेहद कम अधिकार दिए गए हैं। उनके मुताबिक जब शादी सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में तमाम रस्मों व दूल्हा और दूल्हन की रजामंदी के बाद ही पूरी मानी जाती है तो तलाक सिर्फ पुरूषों को अकेले में भी तीन बार बोलकर या लिखकर कह देने से क्यों मान लिया जाता है। यह बहुत वाजिब सवाल है।
सुप्रीम कोर्ट में 23 फरवरी, 2०16 को दायर याचिका में शायरा ने गुहार लगाई कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के तहत दिए जाने वाले तलाक-ए-बिद्दत यानि तिहरे तलाक, हलाला और बहु-विवाह को गैर-कानूनी और असंवैधानिक घोषित किया जाए। यहां बता दें कि शरीयत कानून में तिहरे तलाक को मान्यता दी गई है, इसमें एक ही बार में शौहर अपनी पत्नी को तलाक-तलाक-तलाक कहकर तलाक दे देता है।
अफरीना केस “Afreena Case”
शायराबानों के बाद 28 वर्षीया आफरीन है, जो इस तरह तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार, महिला आयोग समेत सभी पक्षों को इस मामले में नोटिस भेजकर जवाब मांगा। आफरीन का आरोप था कि शादी के बाद से ही उनको दहेज के लिए ताने दिए जाते थे, जो बाद में मारपीट में बदल गया। आफरीन की शादी 24 अगस्त 2०14 को इंदौर के सैयद असार अली वारसी