हाँ, मैं पागल हो गया पापा
– पागल हो गए हो क्या?
– जी पापा, यूं ही समझ लीजिए। अंजलि से शादी करके ही शायद चैन की नींद सो पाऊंगा मैं। आपने तो मुझे हॉस्टल भेज कर सोचा कि मैं वह घटना भुला दूंगा मगर एक दिन भी ऐसा नहीं हुआ कि मुझे चैन से नींद आई हो। खेल-खेल में ही भले मैंने अंजलि को धक्का दिया था, लेकिन उसके दिमाग पर लगी चोट ने उसे मानसिक रूप से कमजोर बना दिया और आजीवन वह बच्ची ही बन कर रह गई।
पापा जी, अब मैं इस लायक हो गया हूं कि उसका इलाज कराने उसे विदेश ले जाऊं।
– बेटा, उसका इलाज कराओ। मैं कहां मना कर रहा हूं उसका इलाज करने के लिए लेकिन उसके साथ शादी करने की क्या जरूरत है?
यह तुम्हारा जल्दबाज़ी में लिया गया फैसला है।
– आप ठीक कह रहे हैं, पापा। शायद यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला हो मगर शादी के बिना उसे साथ लेकर कैसे विदेश जाऊंगा?
– मगर बेटा, उसकी हरकतों को देखते हो? उसके मां-बाप कितने परेशान हो जाते हैं तो तुम कैसे मैनेज करोगे?
– मैं कर लूंगा पापा। आपको याद है, अंजलि तो मेरे से भी बहुत होशियार थी। अंकल उसे आईएएस बनाना चाहते थे मगर मेरी गलती के कारण वह ऐसी बन कर रह गई। अंजलि ठीक नहीं हुई ना तो उसके पापा- मम्मी की जिम्मेदारी भी मैं लेने के लिए तैयार हूं।
पापा जी, आज मैं जो कुछ भी हूं उसके पीछे भी अंजलि का ही हाथ है ।
– वह कैसे बेटा?
– उसकी जिम्मेदारी उठाने के लिए ही मैंने इतनी पढ़ाई की है और सारा समय मैं पढ़ता था क्योंकि मैं जानता था उसके इलाज के लिए बहुत पैसे कमाने होंगे।
– चलो ठीक है बेटा, जिसमें तुम्हारी खुशी मेरी भी। आज तक अंजलि और उसके परिवार का दोषी अपने आप को ही माना है और जहां तक हो सके उसकी हर तरह से मदद करने की कोशिश की है। तुम्हारा यह फैसला शायद मुझे आज उनके सामने गर्व से खड़ा कर सके।
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डॉक्टर ऋचा यादव
बिलासपुर छग