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    Home » डायन प्रथा अर्ध विकसित समाज की मानसिक बीमारी है अब समाज विकसित हो चुका है
    Breaking News जमशेदपुर

    डायन प्रथा अर्ध विकसित समाज की मानसिक बीमारी है अब समाज विकसित हो चुका है

    Devanand SinghBy Devanand SinghFebruary 17, 2025No Comments4 Mins Read
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    परमात्मा हर मनुष्य के हृदय में वास करते हैं उन्हें इधर-उधर खोजने की जरूरत नहीं मन को अंतर्मुखी कर उन्हें जाना जा सकता है

    परमात्मा हर मनुष्य के हृदय में वास करते हैं उन्हें आध्यात्मिक क्रिया से जानना होगा इसी से मन मजबूत होता है

     

    डायन प्रथा एवं बलि प्रथा को समाप्त करने के लिए मन के प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना होगा मन के भीतर के परमात्मा जानना होगा

     

    परमात्मा हर मनुष्य के हृदय में वास करते हैं उन्हें आध्यात्मिक क्रिया से जानना होगा इसी से मन मजबूत होता है

    मन से कमजोर लोग ही डायन प्रथा एवं बलि प्रथा पर विश्वास करते हैं जो कि समाज के लिए जहर है

    डायन प्रथा अर्ध विकसित समाज की मानसिक बीमारी है अब समाज विकसित हो चुका है

     

    जमशेदपुर : आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से गदरा के दुपुडांग के बस्तियों में तीन जगह तत्व सभा का आयोजन किया गया एवं ग्रामीणों के बीच 200 फलदार पौधे, 25 साड़ी एवं 25 धोती का वितरण किया गया । सुनील आनंद लोगों को बताया कि डायन प्रथा एवं बलि प्रथा को समाप्त करने के लिए मन के प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना होगा और इसके लिए परमात्मा को मन के भीतर खोजना होगा

     

     

    परमात्मा हर मनुष्य के हृदय में वास करते हैं विराजमान है उन्हें आध्यात्मिक क्रिया से जानना होगा और यह जो जानने की क्रिया है इसी से मन मजबूत होता है। संकल्प शक्ति बढ़ती है । बलि प्रथा को धीरे-धीरे त्याग कर देना चाहिए क्योंकि बलि देने से भगवान नाराज होते हैं क्योंकि यह पृथ्वी परम पुरुष की मानसिक परिकल्पना है और इस सृष्टि के पालन करता परम पुरुष ही हैं जब वही इस सृष्टि के पालन करता है तो और यह सृष्टि उन्हीं के मानसिक परिकल्पना है तो अपने छोटे-छोटे बच्चों का वह बलि कैसे ले सकते हैं इस लिए भगवान ,देवी देवता के नाम पर बलि देना अब ठीक बात नहीं क्योंकि समाज अब धीरे-धीरे विकसित हो रहा है बहुत सारी विभिन्न संप्रदायों की मान्यताएं भी अब झूठा साबित हो रही है क्योंकि मान्यताएं मनुष्य के द्वारा अपने स्वार्थ के लिए बनाई गई थी । किसी भी संप्रदाय में भगवान के नाम पर बलि देकर उत्सव मनाना बहुत ही खराब बात है ।डायन कुछ नहीं होता है यह अर्ध विकसित समाज की एक मानसिक बीमारी है अब समाज बहुत विकसित हो चुका है।

     

    दुख का कारण मनुष्य का अपना संस्कार एवं कर्म फल है यही कारण है कि कोई धनी, कोई गरीब कोई स्वस्थ या कोई जन्मजात अस्वस्थ ।इससे संघर्ष करने के लिए मनुष्य को मानसिक शक्ति की जरूरत होती है जो की परम पुरुष परमात्मा के भजन ,कीर्तन करने से प्राप्त होती है ना की किसी ओझा गुनी के चक्कर में पड़ कर पैसा बर्बाद करना एवं अपने को अंधविश्वास के चंगुल में फंसा देना इससे हर स्तर पर मनुष्य को हानि होती है मनुष्य के मन में एक तरह का भय प्रवेश कर जाता है और वह बार-बार उस ओझा का चक्कर में पड़ता रहता है विषैला जीव सांप बिच्छू काटने एवं बीमार होने पर झाड़ फूंक के चक्कर में ना पड़े सरकारी अस्पताल में चिकित्सा करवाए झाड़ फूंक से कोई भी किसी की जान नहीं ले सकता यह सब भ्रम है ओझा गुनी से डरने की जरूरत नहीं है। ओझा किसी को भी डायन बात कर किसी की हत्या करवा देते हैं। यह सब अंधविश्वास है। अपने मन को मजबूत करने के लिए परमात्मा का कीर्तन करें

     

     

    इसलिए इससे हमको ऊपर उठने के लिए अपने आंतरिक शक्ति को मजबूत करना होगा उसके लिए ज्यादा से ज्यादा परमात्मा का कीर्तन भजन करने से मनुष्य को का आत्म बल बढ़ेगा और जब आत्म बल एवं भक्ति बढ़ गया तो फिर कोई भी ऐसे व्यक्ति को गुमराह नहीं कर सकता।ओझा गुनी के पास इतनी शक्ति नहीं कि वह किसी भी मनुष्य को मार सकते हैं अगर उनमें इतनी ही शक्ति है तो उन्हें बॉर्डर पर बैठा दिया जाता और भारत से बॉडर से बैठ कर दुश्मन देश के लोगों को मारते रहते हैं परंतु ऐसी शक्ति ही नहीं है कि कोई भी मनुष्य किसी को तंत्र-मंत्र से मार सकता है अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं कारण परम पुरुष कल्याणमय सत्ता है उनकी पूजा करने से मनुष्य को जीवन जीने की शक्ति एवं समस्याओं से लड़ने की शक्ति एवं प्रेरणा मिलती है ना की इससे किसी को हानि नहीं पहुंचने की शक्ति मिलती हैं। किसी से भी डरने की कोई जरूरत नहीं सभी परम पुरुष के संतान है कोई भी मनुष्य किसी का तंत्र मंत्र से बाल भी बांका नहीं कर सकता यह सब झूठ है ।

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