क्या कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी को कांग्रेस में शामिल कर कांग्रेस की तकदीर बदल पाएंगे राहुल ?
देवानंद सिंह
वामपंथी नेता कन्हैया कुमार और गुजरात में निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। इसका कांग्रेस को कितना फायदा होगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन इससे कांग्रेस के अंदर बदलाव की एक शुरूआत जरूर लग रही है। लगता है, राहुल गांधी पार्टी के अंदर बदलाव की प्रयोगशाला को आगे बढ़ाना चाहते हैं, जिससे आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मजबूत टक्कर दी जा सके। कांग्रेस दलितों, अल्पसंख्यकों, श्रमिकों, महिलाओं समेत समाज के तमाम वंचित वर्गों को लुभाना चाहती है। जिस तरह हाल के समय में बीजेपी दलित राजनीति को आगे बढ़ा रही है, लगता है कांग्रेस के लिए भी यह मजबूरी बन गई है। हम सभी ने पीएम मोदी के कैबिनेट विस्तार के दौरान भी यह सब देखा। इसी की काट तलाशते हुए कांग्रेस ने पंजाब से शुरूआत करते हुए दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया। कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी को पार्टी में शामिल कर कांग्रेस ने अपने इसी अभियान को आगे बढ़ाया है। जिग्नेश मेवानी दलित नेता हैं। जेएनयू के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार भले ही दलित नहीं हैं, लेकिन वामपंथी नेता होने के नाते वह दलितों, अल्पसंख्यकों, श्रमिकों, महिलाओं समेत समाज के तमाम वंचित वर्गों के प्रतिनिधि माने जाते रहे हैं, इसीलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि उन्हें उक्त वर्गों के अलावा युवाओं का साथ भी मिलेगा। दरअसल, हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और सुष्मिता देव जैसे नेताओं के पार्टी छोड़ कर चले जाने से पार्टी की छवि को जो नुकसान हुआ है, शायद कांग्रेस नए चेहरों को शामिल कर उनकी कमी को पूरा करना चाह रही हो। पर इसकी व्यवहारिकता तब पता चलेगी, जब चुनाव होंगे। कांग्रेस इसे भले ही फायदे के तौर पर देख रही हो, लेकिन इसका नुकसान न हो, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है। खासकर, कन्हैया कुमार को लेकर तरह तरह की बातें लोगों के मन में हैं, उसमें जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगवाए जाना भी मुख्य रूप से शामिल है। हालांकि, वह अभी चुनावी राजनीति में खास सिक्का नहीं जमा पाए हैं। उन्होंने 2019 में सीपीआई के टिकट पर बिहार के बेगूसराय से लोक सभा चुनाव लड़ा था और बीजेपी के गिरिराज सिंह से लगभग सवा चार लाख वोटों से हार गए थे। उन्हें करीब 22 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। खुद कन्हैया कुमार और कांग्रेस उनमें भविष्य में बेगूसराय से जीतने का सामर्थ्य देख रही हो, लेकिन फिलहाल, आरजेडी के साथ कांग्रेस के गठबंधन के तहत यह सीट आरजेडी के कोटे की है, इसलिए अगले चुनावों में कांग्रेस यहां से कन्हैया कुमार को उतारे ऐसा लगता नहीं है। कन्हैया कुमार को लेकर एक जो चर्चा चल रही है, वह यह है कि पार्टी बहुत पहले से कन्हैया को समर्थन और मदद दे रही है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने कन्हैया की कई रैलियों के आयोजन में आर्थिक और दूसरी मदद की थी। यह भी बताया जा रहा है कि जब कन्हैया कुमार दिल्ली में होते हैं तो एक कांग्रेस सांसद के आवास पर ही उनके ठहरने की व्यवस्था रहती है, उनका कांग्रेस में शामिल होना इसी मेलजोल का नतीजा है, लेकिन इसमें अभी तक एक अड़चन यही थी कि 2016 में जेएनयू में कथित रूप से “देश विरोधी” नारे लगाने के आरोप में उनके खिलाफ दिल्ली की एक अदालत में राजद्रोह का मुकदमा अभी भी चल रहा है। आपको याद होगा कि राहुल गांधी ने उस समय जेएनयू जाकर कन्हैया कुमार और दूसरे छात्रों का समर्थन किया था, पर 2019 से राहुल और कांग्रेस कन्हैया कुमार के प्रति गर्मजोशी दिखाने से बच रहे थे। बीजेपी ने कन्हैया कुमार और जेएनयू वाले मामले में शामिल सभी छात्र नेताओं को “टुकड़े-टुकड़े गैंग” का नाम दिया हुआ है और इसमें उनका समर्थन करने वाले राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल जैसे दूसरे नेताओं को भी शामिल कर रखा है। ऐसे में, राष्ट्रीय विचारधारा वाली बात पर इनकी छवि नकारात्मक बनी हुई है। लिहाजा, “राष्ट्रवादी” विचारधारा से प्रेरित मतदाताओं के धड़े का मत खो देने का डर कांग्रेस में भी था और इन नेताओं में भी, लिहाजा, इन नेताओं ने धीरे धीरे खुद को जेएनयू वाले मामले से दूर कर लिया था। अब जब कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल हो गए हैं तो वह अपना कितना असर छोड़ पाएंगे, यह देखने वाली बात होगी। यह राहुल गांधी के लिए भी परीक्षा की घड़ी होगी कि क्या नए प्रयोग से कांग्रेस के पैर जमते हैं या फिर पुरानी कहानी बरकरार रहती है।