हिन्दी बेल्ट को छोड़ दक्षिण क्यों गए राहुल गांधी…?
देवानंद सिंह
लोकसभा चुनाव का समय नजदीक है। राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने की पुरजोर कोशिश में जुटी हुई हैं। सत्तासीन बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री द्वारा हर राज्य का दौरा कर विभिन्न घोषणाएं की जा रही हैं, लेकिन इसके इतर देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस इस चुनावी मुहिम को इस दिशा में ले जाने में सफल होती नहीं दिख रही है, जिस दिशा की तरफ बीजेपी जा रही है,
यही वजह भी है कि चुनाव को लेकर कोई फाइट होती नहीं दिख रही है। सवाल इसीलिए भी उठ रहे हैं कि राहुल गांधी देश के हिंदी बेल्ट को छोड़कर दक्षिण भारत पर इतना फोकस क्यों कर रहे हैं ? मजे की बात यह भी है कि उनको अब अपने गढ़ अमेठी और रायबरेली तक की परवाह नहीं है। यह बात अपने-आप में चौंकाती है कि ये दोनों लोकसभा सीटें प्रदेश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की हैं, जहां कभी कांग्रेस का जलवा हुआ करता था। ऐसे में, कांग्रेस और राहुल गांधी के इस फैसले पर भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि हिंदी बेल्ट पर फोकस नहीं करने से क्या 52 सीटों तक सिमट चुकी कांग्रेस इस बार इस आंकड़े में इजाफा कर पाएगी ?
यह चर्चा का विषय इसीलिए भी है, क्योंकि जब भी बात हिंदी बेल्ट को लेकर होती है तो उसका चुनावी समीकरणों में अपना एक अलग ही गणित होता है। जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदी बेल्ट पर पूरा फोकस करते हुए गुजरात से वाराणसी तक के वोटरों को लुभाने में जुटे हुए हैं, वहीं राहुल गांधी दक्षिण तक ही सिमटते हुए नजर आ रहे हैं। सवाल इतना ही नहीं है, बल्कि सीट चयन को लेकर भी है। राहुल गांधी के लिए पुश्तैनी सीट अमेठी का ज़िक्र किए बिना वायनाड की घोषणा की गई है,
जो अपने-आप में ताज्जुब की बात है। बात राहुल तक ही नहीं, सोनिया गांधी तक भी जाती है, क्योंकि वह लोकसभा चुनाव से पहले ही राज्यसभा के लिए चुनी गईं, इससे साफ संदेश मिल गया था कि वह भी रायबरेली से इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगी। इस प्रकार अमेठी और रायबरेली को लेकर सस्पेंस बनाए रखना भी सियासी समीकरणों के हिसाब से कांग्रेस के लिए ठीक नहीं है, क्योंकि यह सिर्फ दो नेताओं का निर्णय भर नहीं है, बल्कि पार्टी, संगठन, कार्यकर्ता और बूथ सबसे जुड़ा हुआ मुद्दा है, ऐसे में सवाल है कि संदेश जा क्या रहा है, पार्टी, नेता और कार्यकर्ता क्या महसूस कर रहे हैं ?
क्या राहुल गांधी अपनी पार्टी की लड़ाई लड़ रहे हैं या सिर्फ अपनी सीट बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं…?
एक जो और महत्वपूर्ण बात है, वह यह है कि बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस में उस स्तर का चुनावी नेतृत्व नहीं दिख रहा है, क्योंकि किसी भी जंग में नेतृत्व ही सबसे अधिक मायने रखता है। मुखिया का सबसे आगे रहना जरूरी होता है। वैसे तो कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को मुखिया के तौर पर देखती है, लेकिन जो परिस्थिति दिख रही है, उसमें वह बात नजर आ ही नहीं रही है। ऐसा लग ही नहीं रहा है कि वह प्रधानमंत्री के मुकाबले कहीं खड़े हैं। इसीलिए सवाल यह है कि राहुल गांधी ने वायनाड लोकसभा क्षेत्र क्यों चुना और अमेठी का ज़िक्र क्यों नहीं किया ?
दूसरा बीजेपी ने चुनाव के लिए 195 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लिस्ट में पहले नंबर पर हैं, जबकि 39 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने वाली कांग्रेस की लिस्ट में राहुल गांधी पहले नंबर पर नहीं हैं,
वह लिस्ट में 17वें नंबर पर हैं। जब तक मुखिया आगे नहीं होगा तो उसकी टीम का भविष्य क्या होगा, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है ? वोटर, पार्टी, कार्यकर्ता, विपक्ष और एक्सपर्ट में क्या संदेश जाएगा, इस संबंध में कांग्रेस पार्टी को सोचना चाहिए था ? कांग्रेस माने या ना मानें, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 की जंग, हिन्दी बेल्ट में ही है, जिस हिन्दी पट्टी से गांधी परिवार के ताल्लुकात शुरू से ही रहे हैं, वहीं इनकी पुश्तैनी सीट (अमेठी, रायबरेली) का पहली लिस्ट में ज़िक्र तक नहीं है, जो आश्चर्य की बात है। यह तब है, जब इन दोनों सीटों को लेकर समाजवादी पार्टी से कोई पेंच फंसने की बात भी सामने नहीं आई है।
राहुल गांधी अपने दौरों में दावा कर रहे हैं कि इस बार प्रधानमंत्री को हराएंगे और विपक्ष की ओर से इकलौते नेता वही हैं भी, जो प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा प्रहार कर रहे हैं, लेकिन जब चुनावी जंग की बात आई, तो वह वायनाड पहुंच गए, जहां वह बीजेपी के बजाय लेफ़्ट से टकरा रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि कांग्रेस कहीं ना कहीं यह स्वीकार कर चुकी है कि हिंदी बेल्ट नहीं बल्कि उसकी थोड़ी बहुत साख दक्षिण भारत की बदौलत ही बच सकती