Close Menu
Rashtra SamvadRashtra Samvad
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • होम
    • राष्ट्रीय
    • अन्तर्राष्ट्रीय
    • राज्यों से
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
      • ओड़िशा
    • संपादकीय
      • मेहमान का पन्ना
      • साहित्य
      • खबरीलाल
    • खेल
    • वीडियो
    • ईपेपर
      • दैनिक ई-पेपर
      • ई-मैगजीन
      • साप्ताहिक ई-पेपर
    Topics:
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Home » “जब खबरें बनती हैं हथियार: युद्ध-प्रोपेगेंडा और फेक न्यूज”
    Breaking News Headlines जमशेदपुर मेहमान का पन्ना राजनीति

    “जब खबरें बनती हैं हथियार: युद्ध-प्रोपेगेंडा और फेक न्यूज”

    News DeskBy News DeskMay 29, 2025No Comments5 Mins Read
    Share Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Share
    Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link

    युद्ध के दौरान फैलाई गई झूठी खबरें न केवल सैनिकों और आम नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालती हैं, बल्कि समाज में भय और नफरत का भी प्रसार करती हैं। यह न केवल जनता की भावनाओं को भड़काती है, बल्कि सच्चाई की नींव को भी कमजोर करती है। कई बार युद्ध के मैदान से बहुत दूर बैठे लोग भी इन झूठी खबरों के शिकार बन जाते हैं और इससे राष्ट्र की एकता और संप्रभुता को भारी क्षति पहुँचती है।

    -प्रियंका सौरभ

    युद्ध का समय हमेशा से मानव इतिहास का सबसे तनावपूर्ण और संवेदनशील दौर रहा है। जब दो देशों के बीच टकराव चरम पर होता है, तब सिर्फ हथियारों की ही नहीं, बल्कि सूचनाओं की भी लड़ाई लड़ी जाती है। प्रोपेगेंडा और झूठी ख़बरें इस संघर्ष का एक अनिवार्य हिस्सा बन जाती हैं। यह स्थिति विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के बीच युद्ध के समय अत्यंत जटिल हो जाती है।

    यह प्रोपेगेंडा क्यों खतरनाक है?

    युद्ध के दौरान फैलाई गई झूठी खबरें न केवल सैनिकों और आम नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालती हैं, बल्कि समाज में भय और नफरत का भी प्रसार करती हैं। यह न केवल जनता की भावनाओं को भड़काती है, बल्कि सच्चाई की नींव को भी कमजोर करती है। कई बार युद्ध के मैदान से बहुत दूर बैठे लोग भी इन झूठी खबरों के शिकार बन जाते हैं और इससे राष्ट्र की एकता और संप्रभुता को भारी क्षति पहुँचती है।

    इतिहास के सबक

    1965, 1971 और कारगिल युद्ध के दौरान भी दोनों देशों ने प्रोपेगेंडा का भरपूर उपयोग किया था। पाकिस्तान ने 1965 में अपने ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ को लेकर भारतीय क्षेत्र में असंतोष फैलाने की कोशिश की थी, जबकि 1971 के युद्ध में भारत ने रेडियो और प्रिंट मीडिया के जरिए अपने सैनिकों और जनता में आत्मविश्वास बनाए रखा। कारगिल युद्ध में भी फर्जी तस्वीरें और विकृत आंकड़े दोनों ओर से साझा किए गए थे।

    कैसे फैलता है प्रोपेगेंडा?

    आज की डिजिटल दुनिया में सोशल मीडिया, वॉट्सएप, यूट्यूब और फेक न्यूज वेबसाइट्स के जरिए अफवाहें तेजी से फैलती हैं। फर्जी वीडियो, फोटोशॉप की गईं तस्वीरें और झूठे दावे किसी भी घटना को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत कर सकते हैं। ऐसे में एक साधारण व्यक्ति के लिए यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि क्या सच है और क्या झूठ।

    जिम्मेदार नागरिक की भूमिका

    युद्ध के समय एक जागरूक और जिम्मेदार नागरिक होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमें हर सूचना को बिना जांचे-परखे साझा करने से बचना चाहिए। विश्वसनीय समाचार स्रोतों पर ही भरोसा करें और हर खबर की पुष्टि करें। अगर कोई संदेश या वीडियो संदिग्ध लगे, तो उसे आगे न बढ़ाएं।

    प्रोपेगेंडा की मनोवैज्ञानिक चालें

    प्रोपेगेंडा का असर केवल सूचना पर ही नहीं, बल्कि लोगों के मानसिक ढांचे पर भी पड़ता है। युद्ध के दौरान डर, असुरक्षा और घृणा जैसी भावनाओं का अधिकतम लाभ उठाया जाता है। यह न केवल समाज को विभाजित करता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डालता है।

    सरकार और मीडिया की जिम्मेदारी

    सरकार और मीडिया की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे जनता को सटीक और प्रमाणिक जानकारी तक पहुंचाएं। प्रेस की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए, झूठी खबरों और प्रोपेगेंडा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। मीडिया को भी यह समझना चाहिए कि उनकी जिम्मेदारी केवल खबर देना ही नहीं, बल्कि खबर की सच्चाई को बनाए रखना भी है।

    डिजिटल साक्षरता की आवश्यकता

    आज जब सूचनाएं मिनटों में दुनिया भर में फैलती हैं, तब डिजिटल साक्षरता की महत्ता और बढ़ जाती है। आम नागरिकों को यह सिखाना जरूरी है कि वे किस तरह से फर्जी खबरों की पहचान कर सकते हैं और उन्हें कैसे रोका जा सकता है। इसके लिए स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक केंद्रों में नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।

    सत्य की ताकत

    सच्चाई की शक्ति कभी क्षीण नहीं होती, चाहे युद्ध का कितना भी कठिन समय क्यों न हो। यह केवल उन लोगों पर निर्भर करता है जो सत्य की रक्षा के लिए खड़े होते हैं। इतिहास गवाह है कि झूठ के महल लंबे समय तक टिक नहीं पाते। यही कारण है कि एक जागरूक और सतर्क समाज ही असली विजय प्राप्त कर सकता है।

    मीडिया और सोशल मीडिया का बदलता परिदृश्य

    वर्तमान समय में, सोशल मीडिया का प्रभाव पारंपरिक मीडिया से भी अधिक हो गया है। यह एक ऐसा मंच है जहां कोई भी व्यक्ति पत्रकार, संपादक या प्रसारक बन सकता है। इसका लाभ न केवल आम लोग बल्कि आतंकी संगठन और विदेशी खुफिया एजेंसियां भी उठा रही हैं। वे फर्जी अकाउंट, बॉट्स और डिजिटल ट्रोल्स के माध्यम से अफवाहें फैलाकर सामाजिक तनाव पैदा कर सकते हैं।

    साइबर युद्ध का खतरा

    युद्ध का स्वरूप केवल सीमाओं तक सीमित नहीं है। आजकल साइबर युद्ध एक नया मोर्चा बन चुका है, जिसमें प्रोपेगेंडा और झूठी खबरें एक महत्वपूर्ण हथियार हैं। यह न केवल सूचना को विकृत करता है, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता को भी नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे में साइबर सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है।

    सामाजिक जिम्मेदारी और सजगता

    हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम केवल सच्ची और प्रमाणिक जानकारी को ही फैलाएं। हमें यह समझना चाहिए कि झूठी खबरें केवल सच्चाई को ही नहीं, बल्कि मानवीय संबंधों और सामाजिक सद्भावना को भी नुकसान पहुंचाती हैं। युद्ध का समय देशभक्ति और मानवता की कठिन परीक्षा का समय होता है। इस दौरान प्रोपेगेंडा से बचना और सत्य का समर्थन करना हर नागरिक का कर्तव्य है। याद रखें, युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि सत्य और विवेक से भी जीता जाता है।

    युद्ध का समय केवल सैन्य ताकत का नहीं, बल्कि सच्चाई और विवेक की परीक्षा का भी होता है। प्रोपेगेंडा से बचना और सच्ची जानकारी तक पहुंचना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। हमें न केवल सूचनाओं की सत्यता की जांच करनी चाहिए, बल्कि समाज में एकता और सहिष्णुता को बनाए रखना भी जरूरी है। याद रखें, युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि सत्य और विवेक से भी जीता जाता है। एक जागरूक समाज ही सच्ची विजय का आधार होता है।

    Share. Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Previous Articleभारत की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की घोषणा की हकीकत
    Next Article इस साल अमरनाथ यात्रा चुनौतीपूर्ण रहेगी लेकिन सभी इंतजाम किए जाएंगे: उमर अब्दुल्ला

    Related Posts

    बस्तर ‘माओवाद मुक्त’ या असमय घोषणा?

    May 30, 2025

    मूल्यबोध और राष्ट्रहित बने मीडिया का आधार -प्रो. संजय द्विवेदी

    May 30, 2025

    हिन्दी पत्रकारिता को व्यवसाय नहीं, मिशन बनाना होगा

    May 30, 2025

    Comments are closed.

    अभी-अभी

    बस्तर ‘माओवाद मुक्त’ या असमय घोषणा?

    मूल्यबोध और राष्ट्रहित बने मीडिया का आधार -प्रो. संजय द्विवेदी

    हिन्दी पत्रकारिता को व्यवसाय नहीं, मिशन बनाना होगा

    राष्ट्र संवाद हेडलाइंस

    समाजसेवी और हिंदूवादी नेता जगदीश प्रसाद लोधा का निधन

    स्वर्गीय मोहनलाल अग्रवाल की चतुर्थ पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित

    भाजपा दफ्तर में बैठक के बाद विजय सिन्हा के घर पहुंचे पीएम मोदी, बेटे-बहू को दिया आशीर्वाद

    सिंहभूम चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री का प्रतिनिधिमंडल निवर्तमान एसएसपी किशोर कौशल एवं नए एसएसपी पीयूष पांडेय से मिला

    जमशेदपुर के आज़ाद नगर में विवाहिता ने की आत्महत्या, पुलिस कर रही है मामले की जांच

    वरीय पुलिस अधीक्षक नेनिरीक्षण के दौरान कई दिशा निर्देश दिए

    Facebook X (Twitter) Telegram WhatsApp
    © 2025 News Samvad. Designed by Cryptonix Labs .

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.