देश का भावी चेहरा भी तय करेगा यूपी विधानसभा चुनाव
देवानंद सिंह
जब भी केंद्र की सियासत की बात होती है, उसमें सबसे पहले उत्तर प्रदेश को जोड़ा जाता है। क्योंकि उत्तर प्रदेश दिल्ली का सफर तय करने का सबसे महत्वपूर्ण रास्ता है। इसीलिए एक बार फिर उत्तर प्रदेश सियासी चर्चा में सबसे ऊपर है, क्योंकि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का परिणाम अगले साल यानि 2022 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों पर निर्भर करने वाला है। पर इस बार का विधानसभा चुनाव केवल केंद्र की सत्ता हासिल करने तक ही सीमित नहीं होगा बल्कि देश का भावी चेहरा भी तय करेगा। यहां आप हमारा इशारा समझ गए होंगे, बात बीजेपी की हो रही है। बीजेपी के लिए यहां केवल दिल्ली की सीढ़ी ही तय करना नहीं है, बल्कि पार्टी में भविष्य के चेहरे को लेकर भी वर्चस्व की लड़ाई है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं तो दूसरी तरफ सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। इसको लेकर यूपी विधानसभा चुनाव, बड़ी ही कसमा कस की लड़ाई साबित होने वाला है।
अप्रैल 2017 में राष्ट्र संवाद ने की थी स्टोरी
यह इसीलिए, क्योंकि जिस तरह बीजेपी ने हाल के महीनों में पांच राज्यों के मुख्यमंत्री बदले हैं, वहीं मोदी और शाह चाहकर भी योगी को बदलने की हिम्मत नहीं कर पाए। इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि बीजेपी शासित राज्यों में यूपी ही एक ऐसा राज्य है, जहां मोदी शाह के इतर केवल योगी का राज चलता है। मोदी शाह चाह कर भी यहां अपने समीकरण सेट नहीं कर पा रहे हैं। उसके कारण भी साफ हैं। दरअसल, मोदी जिस फार्मूले पर चुनाव लड़ते हैं, वह केंद्र की सियासी राजनीति में भले ही सेट हो जाता हो, लेकिन जब राज्य की सियासी राजनीति को साधने की बात आती है, वहां मोदी का यह फार्मूला फेल हो जाता है। 2014 के बाद कई राज्यों में बीजेपी का सत्ता गवाने का सबसे बड़ा कारण भी यही रहा है। पर योगी, मोदी के सहारे यह फुर्मुला यूपी में लागू हो, ऐसा बिलकुल भी नहीं चाहते हैं, क्योंकि योगी यूपी का चुनाव फतह करने में कोई भी ऐसा रिस्क नहीं उठाना चाहते हैं, जिससे उनके सियासी सफर को नुकसान उठाना पड़े, इसीलिए यह चुनाव योगी के लिए तो महत्वपूर्ण है ही, बल्कि मोदी के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। अगर, योगी का अपना फार्मूला चल निकला तो उनका कद और बढ़ जाएगा, जो मोदी शाह कतई नहीं चाहेंगे। योगी, इस बात को भली भांति जानते हैं कि अगर मोदी शाह के नियंत्रण से बाहर निकलना है तो उन्हें खुद का फार्मूला सेट करना ही पड़ेगा और वह फार्मूला आरएसएस के खांचे में भी सेट बैठना चाहिए। जो दिख भी रहा है। योगी उसी लाइन पर आगे बढ़ रहे हैं। 2017 में हम सबने देखा कि किस तरह योगी आदित्यनाथ को पैराशूट से उतारकर सूबे का मुख्यमंत्री बना दिया गया था, इसके पीछे मोदी शाह नहीं थे, बल्कि आरएसएस था। यूपी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नहीं बदला गया, इसके पीछे भी आरएसएस का योगी पर भरोसा था। उसके पीछे कारण है योगी का मजबूत हिंदुत्व का चेहरा होना, जबकि मोदी हिंदुत्व के चेहरे से डायवर्ट होकर ओबीसी कार्ड पर ज्यादा विश्वास कर रहे हैं। कैबिनेट विस्तार दौरान भी हमने इसकी पूरी झलक देखी। इसीलिए मोदी के डायवर्जन की वजह से आरएसएस को हिंदुत्व की राजनीति को लेकर खतरा दिख रहा है। ऐसे में, योगी ही अभी ऐसी शख्सियत हैं, जो हिंदुत्व की राजनीति को सिद्दत से आगे बढ़ा रहे हैं। इसीलिए मोदी शाह योगी को बदलने का जोखिम नहीं उठा पाए। आरएसएस पर भी भविष्य का चेहरा सेट करने का भारी दवाब है और उसके लिए योगी से अच्छा विकल्प कुछ और नहीं है। यह बात योगी भी भली भांति समझ रहे हैं, इसीलिए वह मोदी शाह के भरोसे न रहकर अपने बलबूते पर चुनाव जीतना चाहते हैं, इसीलिए वह अब्बजान जैसे शब्दों को भी खोज ले रहे हैं, जो शब्द पूरे चुनाव में तैरते रहें और विपक्षियों को परेशान करते रहे। योगी अगर ऐसी शब्दावली खोजकर विपक्षियों पर हमला करते रहेंगे तो यह सियासी तौर पर फायदा देने वाला साबित होगा। यानि योगी यही चाहते हैं कि चुनाव मोदीमय होने के बजाय योगीमय ही रहे। क्योंकि जिस तरह से राज्यों के चुनाव में मोदी का चेहरा कुछ खास असर नहीं छोड़ पाया, इसी तरह यूपी के हालात न बनें, इसीलिए योगी का फोकस बिलकुल साफ है। अगर, योगी चुनाव जीतने में सफल होते हैं तो उनकी सियासी पारी को दिल्ली तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता है। जो मोदी शाह के लिए सबसे अधिक खतरे वाली बात साबित होगी। कहीं ऐसा भी न हो कि 2024 में योगी को ही मोदी की जगह प्रोजक्ट किया जाए, क्योंकि जिस तरह मोदी की लोकप्रियता के ग्राफ में लगातार गिरावट देखी जा रही है, उसमें बीजेपी का सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला भी काम नहीं कर पा रहा है। हम सबने 2014 के बाद राज्यों के रिजल्ट देखे हैं, इनमें मोदी की सोशल इंजीनियरिंग काम नहीं आ पाई, बशर्ते यह लोकसभा चुनाव में भले ही काम आया हो, लेकिन राज्यों के चुनाव में बिलकुल भी कारगर साबित नहीं हो पाया। इसीलिए हिंदुत्व के ट्रेंड को बनाकर रखना होगा। बीजेपी के अंदर जो नेता इस ट्रेंड को बनाकर रखेगा, वही भविष्य का खेवनहार होगा। यूपी का विधानसभा चुनाव ऐसे समय में होने जा रहा है, जब देश में पेट्रोल, डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी, आसमान छूती महंगाई, बेरोजगारी, किसान आंदोलन जैसे मुद्दों को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है, ऐसे में मोदी यूपी के मंच से कोई भी ऐलान करेंगे तो उसका लोगों के जेहन में बहुत अधिक असर पड़ने वाला नहीं है, जबकि योगी के पास अपने कामकाज की एक बड़ी फेहरिस्त है। मुसलमानों के बीच भी एक मैसेज है कि योगी के राज में सूबे में एक भी दंगा नहीं हुआ है, यह केवल एक मुद्दा है, ऐसे ही तमाम स्थानीय मुद्दे हैं, जो चुनाव जिताने का काम करेंगे।