मोदी के खिलाफ सक्रिय शरारती तत्वों को एक करारा तमाचा
ललित गर्ग
कांग्रेसियों, वामपंथियों और कट्टरवादियों की ओर से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लगातार किये जा रहे उद्देश्यहीन, उच्छृंखल, विध्वंसात्मक विरोध एवं नीति ने एक बार फिर घुटने टेके हैं, एक बार फिर परास्त हुई है। 2002 के गुजरात दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को विशेष जांच दल की ओर से मिली क्लीनचिट को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणियां की, वे मोदी के खिलाफ सक्रिय शरारती तत्वों को एक करारा तमाचा है। यह सर्वविदित है कि पिछले दो दशकों से किस तरह मोदी को आरोपित एवं लांछित करने का एक शरारत भरा कुत्सित एवं विडम्बनापूर्ण अभियान छेड़ा गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर इस शरारती अभियान को रेखांकित किया कि ऐसा लगता है कि विशेष जांच दल की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली जाकिया जाफरी किसी और के इशारे पर काम कर रही थी। यह एक यथार्थ भी है।
नरेन्द्र मोदी को गुजरात दंगांे के लिए जिम्मेदार बताने के लिए छद्म धर्मनिरपेक्ष तत्वों के साथ संदिग्ध किस्म की तथाकथित मानवाधिकारवादी जमात सक्रिय थी। इसका साथ कुछ राजनीतिक दल, नौकरशाह, पत्रकार और नेता भी दे रहे थे। यह महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पाया कि जाकिया जाफरी की याचिका में कई झूठी एवं बेबुनियादी बातें दर्ज की गई। संसार में दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं। पहली श्रेणी में वे लोग आते हैं, जो उजालों का स्वागत करने के लिए तत्पर रहे हैं व रहते हैं। दूसरी श्रेणी की रचना उन लोगों ने की है, जो अंधेरे सायों से प्यार करते हैं। ऐसे लोगांे की आंखों में किरणें आंज दी जाएं तो भी वे यथार्थ को नहीं देख सकते। क्योंकि ऐसे देश तोड़क तत्वों को उजाले के नाम से ही एलर्जी है। तरस आता है उन लोगों की बुद्धि पर, जो सूरज के उजाले पर कालिख पोतने का असफल प्रयास करते हैं, आकाश के पैबंद लगाना चाहते हैं और सछिद्र नाव पर सवार होकर सागर की यात्रा करना चाहते हैं।
मोदी भारत के अकेले ऐसे राष्ट्रनायक हैं जिन्हंे कोई गोली या गाली नहीं मार सकती, कोई विकृत सोच उनकी महानता को दबा नहीं सकती, कोई झूठ या भ्रामकता उनकी राष्ट्रवादी छवि को धुंधला नहीं सकती। देखना यह है कि देश की महान् विभूति की छवि को धुंधलाने का जो दुस्साहस किया गया है या किया जा रहा है, उसका हम कितना करारा जबाव देते हैं। आज जैसे बुद्धिमानी एक ”वैल्यू“ है, वैसे बेवकूफी भी एक ”वैल्यू“ है और मूल्यहीनता के दौर में यह मूल्य काफी प्रचलित है। आज के माहौल में यह ”वैल्यू“ ज्यादा फायदेमंद है लेकिन इसका नुकसान भी बड़ा है, यही बात दुनिया को समझाने की जरूरत है, मोदी विरोधियों के गले उतारने की जरूरत है। क्योंकि इस प्रकार की उद्देश्यहीन, उच्छृंखल, विध्वंसात्मक नीति के द्वारा किसी का भी हित सधता हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता तथा न ही उससे उन व्यक्तियों अथवा संस्थाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिनकी ऐसी आलोचना की जाती है। यह तो समय, शक्ति एवं अर्थ का अपव्यय है तथा बुद्धि का दिवालियापन है।
अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों को टेªन में जिंदा जलाने वाले गोधरा कांड के बाद गुजरात में भड़के दंगों को राज्य प्रशासन के षडयंत्र का हिस्सा बताने के लिए किस हद तक झूठ, फरेब एवं भ्रामकता का सहारा लिया गया, इसे इससे समझा जा सकता है कि कुछ अधिकारियों ने यह फर्जी दावा किया कि वे मुख्यमंत्री की उस बैठक में उपस्थित थे, जिसमें कथित तौर पर दंगों की साजिश रची गई। विशेष जांच दल ने प्रमाणों के साथ यह सिद्ध किया कि इन अधिकारियों का यह दावा कोरा झूठ था। इसी तरह का एक झूठ यह भी था कि बतौर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दंगों को रोकने के लिए कोई कोशिश नहीं की। जबकि मोदी एवं उनकी सरकार ने जिस जागरूकता का परिचय दिया, उसी से जितनी व्यापक हिंसा एवं जनहानि की संभावना थी, वह नहीं हुई।