पुलिसकर्मियों की आत्महत्या के मामलों को गंभीरता से लें आला-अधिकारी
देवानंद सिंह
आम लोग अगर सुरक्षित और बैखौफ रह पाते हैं तो इसमें पुलिस का अहम रोल होता है। पुलिस हर वक्त आम लोगों को सुरक्षा मुहैया कराती है, इसके लिए वह 24 घंटे तैनात रहती है। अन्य तरह कि समस्याओं के निस्तारण में भी पुलिस आम लोगों के लिए सहायक होती है, चाहे इसमें पारिवारिक विवाद्दों के निस्तारण की बात हो या फिर कोई और अन्य सुरक्षा संबंधी सहायता हो, लेकिन जब पुलिसकर्मी ही परेशान हों और अपनी परेशानियों के चलते आत्महत्या जैसा कदम उठाने लगे तो इससे बड़ी चिंता की बात और क्या हो सकती है। या यूं कह सकते हैं कि अपनी समस्याओं के चलते जब पुलिसकर्मी ही आत्महत्या जैसा कदम उठाने लगे तो आम लोगों की सुरक्षा कैसे होगी ? यह सबसे बड़ा सवाल है। गृह रक्षकों की हाल तो और सबसे खस्ताहाल है हाल में ही झारखंड के देवघर में श्रावणी मेला के दौरान गृह रक्षकों (होमगार्ड )की जो समस्या उभर कर सामने आई है वह गंभीर ही नहीं चिंतनीय भी है
झारखण्ड में हाल ही में हुए एक सर्वे में पुलिसकर्मियों द्वारा आत्महत्या किए जाने के जो आंकड़े सामने आए हैं, वह काफी चौंकाने वाले हैं। जी हां, पिछले 12 महीने के दौरान 15 पुलिसकर्मियों द्वारा आत्महत्या जैसा कदम उठाया गया, यानि इस दौरान औसतन 24 दिन में एक पुलिसकर्मी ने आत्महत्या की। आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर सिपाही वर्ग के पुलिसकर्मी शामिल हैं। सर्वे में इनके द्वारा आत्महत्या करने के जो प्रमुख कारण सामने आए हैं, उसमें पारिवारिक विवाद, प्रेम-प्रसंग में विफल होने के अलावा नौकरी में काम का अतिरिक्त दबाव मुख्य रूप से शामिल रहता है।
जिन परिस्थितियों में ये पुलिसकर्मी आत्महत्या कर रहे हैं, अक्सर, हम देखते हैं कि क्राइम से संबंधित मामलों के अलावा पुलिसकर्मियों लोगों की उक्त समस्याओं का निस्तारण भी करते हुए नजर आते हैं। पर इन्हीं परिस्थितियों में पुलिसकर्मियों द्वारा आत्महत्या जैसा कदम उठाया जाना आम लोगों की सुरक्षा के प्रति चिंतित तो करता ही है, लेकिन पुलिस महकमे पर भी सवाल खड़े करता है, यानि जो पुलिस महकमा स्वयं अपने कर्मियों को काम के दबाव से मुक्त नहीं कर पा रहा है, वह आम लोगों को सुरक्षित कैसे रख पाएगा ?
अगर, काम के अतिरिक्त दबाव में पुलिसकर्मी आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं, तो इससे साफ जाहिर होता है कि सिपाही और हवलदार स्तर के पुलिसकर्मियों के लिए 8 घंटे का काम 6 दिन की ड्यूटी महज लॉलीपॉप ही साबित हो रहा है, जबकि ये आदेश पूर्व डीजीपी ने दिए थे, लेकिन इस आदेश को कई बीत चुके हैं, पर इसका कहीं भी पालन नहीं हो रहा है, हालांकि इस आदेश का पालन नहीं करने की मुख्य वजह झारखण्ड में पुलिसकर्मियों की कमी हो सकती है, क्योंकि जब एक ही शिफ्ट में पुलिसकर्मी कम हो रहे हैं तो ये पुलिसकर्मी तीन शिफ्ट में कैसे काम कर सकते हैं ?
ये काम कराना महकमे के लिए भी मुश्किल हो रहा है, हालांकि जब एक शिफ्ट ही पुलिसकर्मी कम पर रहे हैं तो 3 शिफ्ट में काम करवाना कैसे संभव हो सकता है। निश्चित ही, इस पर पुलिस के उच्च अधिकारियों और शासन को भी सोचना चाहिए।
फिलहाल, पुलिसकर्मियों द्वारा आत्महत्या करने के मामलों पर नजर डालें तो इसी माह 15 अगस्त से पहले 12 अगस्त 2022 को लोहरदगा में आशुतोष कुमार नाम के सिपाही ने सिर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। इससे पूर्व अन्य घटनाओं को बात करें तो 26 मई 2022 गिरीडीह पंचायत चुनाव की ड्यूटी में बगोदर आए एसएसबी जवान ने भी खुद को गोली मारकर अपनी जीवनलीला समाप्त की थी। 16 मई 2022 रामगढ़ जिला बल के जवान ने फांसी लगाकर आत्महत्या की थी। 2 अप्रैल 2022 दुमका में शिवपहाड चौक के पास सहायक पुलिस के जवान ने आत्महत्या कर ली थी और 8 फरवरी 2022 धनबाद के सीआरपीएफ जवान सारथी नंदन झा ने आत्महत्या कर ली थी। वहीं 11 जनवरी 2022 पलामु के नवागंज बाजार थाना के पूर्व प्रभारी लालजी यादव ने आत्महत्या की थी। 27 दिसम्बर 2021 में सरायकेला में जैप के जवान ने खुद को फांसी लगा ली थी, 03 अक्टूबर 2021 बोकारो पुलिस लाइन के बेरक में बोकारो जिला बल के पुलिस जवान की अपनी राइफल से गोली लगने से मौत हो गई थी। वहीं, 12 अगस्त 2021 को हजारीबाग में जिला पुलिस के जवान ने खुद को गोली मार ली थी,
27 जुलाई 2021 हजारीबाग जिले में मेरु सीमा सुरक्षा बल के जवान द्वारा भी आत्महत्या करने का मामला सामने आया था। 20 जुलाई 2021 तिलैया थाना में क्षेत्र के करमा में होमगार्ड के जवान ने भी आत्महत्या कर ली थी।
8 जून 2021 चतरा जिले के सिमरिया थाना क्षेत्र के सीआरपीएफ के जवान ने पहले साथी को और उसके बाद खुद को गोली मार ली थी। 31 मई 2021 को हजारीबाग में बीएसएफ के जवान द्वारा भी आत्महत्या कर लेने का मामला सामने आया था। 26 फरवरी 2021 को गुमला में सीअरपीएफ के जवान ने अपनी सर्विस राइफल से खुद को गोली मार ली थी। वहीं, फरवरी 2021 में साहिबगंज के बरहेट थाना में कांस्टेबल तालेश्वर बैठा ने भी फांसी लगा ली थी।
वास्तव में, पुलिसकर्मियों द्वारा आत्महत्या करने के ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं, क्योंकि पुलिसकर्मियों पर आम लोगों की सुरक्षा की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। और ये आंकड़े केवल एक ही राज्य के हैं। अन्य राज्यों में भी ऐसी घटनाएं आए दिन हमको सुनने और पढ़ने को मिल जाती हैं। लिहाजा, यह विषय अत्यंत गंभीर और चिंतनीय है, निश्चित ही, यह समस्या तब खत्म होगी, जब हम पुलिसकर्मियों को काम का उचित माहौल मुहैया कराएंगे। अक्सर, काम का अतिरिक्त दबाव भी पारिवारिक विवाद और प्रेम-प्रसंग जैसे मामलों में विफल होने का कारण बनता है। लिहाजा, ऐसे विषय पर पुलिस के आला-अधिकारियों को गंभीरता से सोचने की जरूरत है। पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाने और काम के घंटे नियम के तहत करने की जरूरत है, तभी सार्थक परिणाम हमें देखने को मिलेंगे।