नमन मंच
एक ग़ज़ल
ज़िंदगी तेरा सदका उतार आए हैं
आज़ फिर बेवजह खुद को मार आए हैं।
क्या बताएं कि कैसे कटी तेरे बिन
बिन तेरे जैसे गुजरी गुजार आए हैं ।
इससे ज्यादा तो उम्मीद रखना भी मत
जितना मुमकिन था जुल्फें संवार आए हैं।
आज फिर इक कहानी गढ़ी जाएगी
आज फिर नाम तेरा पुकार आए हैं।
अब भला किसलिए हो पुकारो हमें
हम चुका कर के सबका उधार आए हैं।
..शैलेन्द्र पांडेय शैल ..