माल महाराज का मिर्जा खेले होली पैसा सरकार का, सुरक्षा टाटा की
देवानंद सिंह
कई ऐसे मौके पर कहावतें, चरितार्थ प्रतीत होने लगती हैं. जमशेदपुर टाउनशिप को निश्चित रूप से स्थापित करने, उसका विकास करने कुछ कुछ मूलभूत सुविधाओं से नागरिकों को जोड़ने, खासकर अपने कर्मचारियों को हर तरह की सुविधा मुहैया कराने में टाटा स्टील की अहम भूमिका रहती है. लेकिन कभी-कभी कुछ चर्चाएं सवाल भी खड़े करती हैं . कहावत है कि ‘माल महाराज का मिर्जा खेले होली’ यानी सुरक्षा टाटा की, संसाधन और पैसा सरकार का . टाटा स्टील की स्थापना के साथ ही सुरक्षा के ख्याल से पुलिस चौकी और फिर थाना की स्थापना हुई. पुलिस को दी जाने वाली जरूरी सुविधाओं में टाटा स्टील की भूमिका होती है. लेकिन इन सुविधाओं में उसकी व्यसायिकता ज्यादा झलकती है. टाटा स्टील की ओर से शहर के विभिन्न थानों को पेट्रोलिंग वाहन दिए गए हैं तेल भी दिए जाते हैं लेकिन सबका लिमिटेशंस है इसके अलावा रहने को वाटर भी दिए जाते हैं लेकिन बदले में एक मोटी रकम किराए के रूप में ली जाती है पुलिस और प्रशासनिक कर्मियों का इलाज होता है टाटा मैन हॉस्पिटल में बदले में इलाज का खर्च लिया जाता है तो ऐसे में कहावत तो उचित बैठती है कि खर्च तो सारा सरकार का होता है पुलिसकर्मियों के फंड से पैसे जाते हैं लेकिन काम कंपनी घरानों का होता है यानी सुरक्षा कंपनी घरानों कंपनी के अधिकारियों की की जाती है जिसका फायदा कंपनी प्रबंधन को मिलता है और उनके कर्मचारियों को मिलता है ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि माल महाराज का यानी सरकार का और मिर्जा खेले होली यानी तमाम फायदा व्यवसायिक लाभ कंपनी उठाएं. टाटा स्टील कंपनी एरिया विस्तृत है . नए-नए डिपार्टमेंट और अत्याधुनिक उपकरण स्थापित किए गए हैं . ऐसे में मैन पावर की बड़ी जरूरत है. स्थापना के समय एक थाना एक पुलिस चौकी हुआ करती थी . आज शहरी क्षेत्र में 22 थाने हैं . यह ठीक है की आबादी के ख्याल से थानों की स्थापना की गई है. लेकिन शहर से जुड़े अधिकांश थाने टाटा स्टील और टाटा नाम से जुड़ी अन्य कंपनियों के परिसर के आसपास हैं . जैसे बिष्टुपुर, साकची, गोलमुरी , बर्मामाइंस, जुगसलाई, बागबेड़ा थाना आदि तो कंपनी अहाते के चारों तरफ घेराबंदी के ख्याल से बने हैं. टाटा संस से जुड़े टाटा मोटर, टाटा रोबिन फैक्ट्री , टाटा रायसन, टाटा ब्लूस्कोप, टाटा टिनप्लेट कंपनी, टाटा पावर जैसी तमाम छोटी बड़ी कंपनियां भी टाटा घराने से किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई है . ऐसे में पूरे शहर के थानों का दायरा इन कंपनियों के आसपास है . आमतौर पर इन थानों का अधिकांशत उपयोग कंपनियों के हित के लिए होता है. ठीक है कि शहर की विधि व्यवस्था पर नियंत्रण और उसमें सुधार पुलिस का काम है. लेकिन साथ साथ कंपनियों की सुरक्षा का एक बड़ा दायित्व भी स्थानीय पुलिस पर होता है . इसलिए पुलिस के ऑफिस की व्यवस्था, थाना बिल्डिंग हो , पुलिस अधिकारियों और पुलिस कर्मियों का आवास जैसी जरूरतों की जिम्मेदारी कंपनी प्रबंधन को लेना चाहिए . भीतर खाने से ऐसी रिपोर्ट है कि कंपनी प्रबंधन ने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को सुविधा संपन्न युक्त आवास तो दिया है , लेकिन बदले में एक मोटी रकम किराए के तौर पर ली जाती है . पुलिस अधिकारियों और पुलिस कर्मियों के वेतन से आवास के किराये का भुगतान किया जाता हैं . इस बात को लेकर पुलिस महकमे में कभी-कभी नाराजगी देखने को मिलती है. चर्चा के दौरान यह बात सामने आई की शहर में पदस्थापित सभी पुलिस अधिकारियों को आवास मुहैया नहीं कराए जाते हैं. अगर किसी को आवास उपलब्ध कराया गया तो बदले में किराया लिया जाता है. काम तो कंपनी का ज्यादा होता है . कंपनी की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस लेती है. कंपनी का बचाव करना हो या कंपनी के अधिकारियों और पदाधिकारियों की सुरक्षा करना हो तो इसके लिए पुलिस की जरूरत पड़ती है. ऐसे में पुलिस की जरूरी सुविधाओं का ध्यान भी कंपनी प्रबंधन को रखना चाहिए था . पुलिस कर्मियों को मेडिकल की फ्री सुविधा मिले, उनको रहने के लिए मुफ्त आवास मिले , जरूरत पड़ने पर अन्य सहयोग भी कंपनी द्वारा किए जाएं तो मन लगाकर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी कंपनी का काम करेंगे . पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों का भी यही मानना है और उनकी जरूरत भी है . पुलिस अधिकारियों का यह कहना है कि उनका जॉब ट्रांसफरेबल है .दो-तीन वर्षों तक रहने के बाद उन्हें फिर राज्य के दूसरे जिलों में जाना पड़ता है. जब तक वे सेवा के दौरान शहर में हैं और उनकी पोस्टिंग है तब तक कंपनी को इन तमाम सुविधाओं का ध्यान मुफ्त में रखना चाहिए. एक जानकारी के मुताबिक बहुत पहले एसएसपी ऑफिस पर टिस्को के बिजली का बकाया 10 लाख रुपए से अधिक का था. आखिर कंपनी को सुरक्षा के ख्याल से पुलिस की सेवा लेनी पड़ती है . पुलिस भी तत्पर रहती है .कारखाने के अंदर की बात हो या कारखाने के बाहर की बात. कई बार घटनाएं हुई हैं . मर्डर तक हुआ है और पुलिस को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. कंपनी के बचाव के लिए कभी-कभी पुलिस अधिकारियों को भी हिंसा का शिकार होना पड़ता है . लेकिन बावजूद इसके मिलने वाली सुविधाओं के एवज में एक बड़ी रकम भुगतान के रूप में लिया जाता है . इस बात को लेकर पुलिस महकमे में चर्चाएं आम रहती हैं . कभी-कभी तो मजबूरी में शहर में पुलिस को कंपनी के खाली पड़े क्वार्टर में जबरन रहना पड़ता है . ऐसे में उन पर मुकदमा कर दिए जाते हैं, और कहा जाता है कि अवैध तरीके से पुलिस अधिकारी क्वार्टर पर कब्जा करके रह रहा है . ऐसे में कंपनी के कार्यों के प्रति पुलिस के अंदर कितना समर्पण रहेगा यह समझने की बात है . आम लोगों का भी यह मानना है कि पुलिस और प्रशासनिक लोगों को कंपनी द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का पर भुगतान नहीं लिया जाना चाहिए.