तुष्टिकरण की राजनीति के लिए हिंदुओं को टारगेट दुर्भाग्यपूर्ण
देवानंद सिंह
ममता बनर्जी के राज में जिस तरह पश्चिम बंगाल लगातार जल रहा है, उसने कई तरह के खतरे पैदा किए हैं, खासकर, हिंदुओं के मामले में। जब से वह सत्ता में हैं, तब से इन पर ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ के गंभीर आरोप लगते रहे हैं, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
पश्चिम बंगाल को एक समय ‘बौद्धिक नवजागरण’ की भूमि कहा जाता था, आज धीरे-धीरे सांप्रदायिक तनाव और असुरक्षा की राजनीति में उलझता जा रहा है। इस परिवर्तन का सबसे त्रासद पहलू यह है कि बंगाल का हिंदू समाज, जो सदियों से इस राज्य की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का आधार रहा है, अब खुद को अपने ही घर में असुरक्षित महसूस करने लगा है। हालिया मुर्शिदाबाद की घटना ने इस असुरक्षा को एक भयानक यथार्थ का रूप दे दिया है, जिससे हिंदू समुदाय न केवल डरा हुआ है, बल्कि अब वह राज्य से पलायन पर भी विचार करने लगा है।
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, हिंदू समुदाय पर एक योजनाबद्ध तरीके से हमला किया गया, जिसमें न केवल उनके घर जलाए गए बल्कि कई निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। और भयावह यह नहीं था कि हमला हुआ, बल्कि यह कि स्थानीय प्रशासन या तो निष्क्रिय रहा या कुछ मामलों में हमलावरों के प्रति सहानुभूति रखता दिखा।
जब किसी समुदाय को यह यकीन हो जाए कि राज्य का शासन उसकी सुरक्षा नहीं कर सकता, तो पलायन उसकी विवशता बन जाता है। मुर्शिदाबाद की घटना के बाद कई हिंदू परिवारों ने अपने गांव छोड़कर नजदीकी जिलों में शरण ली, और कुछ तो राज्य की सीमा पार करने पर भी विचार कर रहे हैं। यह दृश्य हमें कश्मीरी पंडितों के पलायन की याद दिलाता है, जहां राज्य सत्ता की निष्क्रियता ने एक पूरे समुदाय को जड़ से उखाड़ दिया।
घटना के बाद प्रशासन का रवैया बेहद चिंताजनक रहा। स्थानीय पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने में टालमटोल, पीड़ित परिवारों को सुरक्षा देने में ढिलाई, और हमलावरों पर कोई ठोस कार्रवाई न होने से यह संदेश गया कि सरकार ‘एकतरफा’ न्याय की नीति अपना रही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से भी कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं आई, न ही उन्होंने घटनास्थल का दौरा किया। इससे यह धारणा मजबूत हुई कि सरकार या तो भयभीत है या एक विशेष वर्ग के हितों की रक्षा के लिए जानबूझकर चुप है।
मुर्शिदाबाद एक मुस्लिम बहुल जिला है, और वहां की जनसांख्यिकी में लगातार हो रहे बदलावों ने सामाजिक तनाव को और गहरा किया है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि वहां की ग्राम पंचायतों, स्थानीय थानों और स्कूलों में हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व लगातार घटता जा रहा है। इस असंतुलन के कारण स्थानीय निर्णयों में एक पक्षीयता आ गई है, जिससे हिंदू परिवार खुद को निर्णय प्रक्रिया से बाहर पाते हैं।
राज्य की राजनीति लंबे समय से अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 30% से अधिक मुस्लिम जनसंख्या के कारण, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए अनेक नीतिगत फैसले लेती रही है। इसमें धार्मिक स्कूलों को सरकारी मदद, इमामों को मानदेय, और मुहर्रम के अवसर पर विशेष सुविधा देना शामिल है। परंतु जब किसी घटना में हिंदू समुदाय पीड़ित होता है, तब वही सरकार मौन हो जाती है। यह मौन ही भय का कारण बनता है।
मुर्शिदाबाद की घटना के बाद एक बड़ा सवाल यह है कि क्या हिंदू समुदाय आत्मरक्षा के लिए संगठित होगा या फिर पलायन को ही अंतिम विकल्प मानेगा? बंगाल का हिंदू स्वभावतः सहनशील रहा है, परंतु जब बार-बार एक ही समुदाय निशाने पर आए, तो सामाजिक संतुलन टूटने लगता है। आत्मरक्षा के नाम पर यदि कट्टरता जन्म लेती है, तो यह न केवल राज्य के लिए, बल्कि देश के लिए भी खतरे की घंटी होगी। चिंताजनक बात यह है कि मुर्शिदाबाद की घटना पर न तो राष्ट्रीय मीडिया में व्यापक कवरेज हुआ, और न ही बंगाल के वामपंथी बुद्धिजीवियों ने कोई विरोध जताया। यह वही वर्ग है, जो मामूली घटनाओं पर भी लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देता है, परंतु जब हिंदू पीड़ित होता है, तब तथाकथित धर्मनिरपेक्षता अचानक मौन हो जाती है। यह चुप्पी अपने आप में वैचारिक पक्षपात को दर्शाती है।
हिंसा की घटनाओं पर केवल पुलिस कार्रवाई से न्याय सुनिश्चित नहीं होता। जब तक राज्य सरकार स्वयं निष्पक्ष जांच के लिए तैयार न हो, और अदालतें स्वतः संज्ञान न लें, तब तक ऐसे मामलों में निष्पक्षता की अपेक्षा बेमानी है। मुर्शिदाबाद की घटना की न्यायिक जांच, एनआईए जैसी एजेंसी से होनी चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आ सके और दोषियों को सज़ा मिल सके।
बंगाल की संस्कृति एक समन्वय की संस्कृति रही है, जहां टैगोर से लेकर विवेकानंद तक ने एक समावेशी समाज का सपना देखा। परंतु आज वही संस्कृति दरक रही है। हिंदू परिवार अपने धार्मिक उत्सवों को मनाने से डरने लगे हैं। सरस्वती पूजा पर रोक, दुर्गा विसर्जन की तारीख में बदलाव, और मंदिरों पर हमले—ये सब घटनाएं एक गहरे पहचान संकट को जन्म दे रही हैं।
कुल मिलाकर, मुर्शिदाबाद की घटना केवल एक जिला विशेष की समस्या नहीं है, यह पूरे पश्चिम बंगाल की सामाजिक स्थिति का दर्पण है। अगर, समय रहते सरकार ने निष्पक्षता नहीं दिखाई, और हिंदू समाज को सुरक्षा और सम्मान नहीं दिया गया, तो बंगाल एक नए संकट की ओर बढ़ेगा। यह संकट केवल सांप्रदायिक नहीं, बल्कि सामाजिक विघटन और अंततः एक बड़े पलायन का कारण बन सकता है।