भारत-बांग्लादेश विवाद का समाधान जरूरी
देवानंद सिंह
बांग्लादेश से शेख़ हसीना की सत्ता ख़त्म होने के बाद भारत सरकार की असहजता साफ़ दिख रही है, जिस तरह वहां मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के दौरान हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं, वह अत्यंत चिंताजनक है। हालांकि, भारत ने आधिकारिक रूप से कहा कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार अपने यहां हिन्दुओं समेत अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे, लेकिन बांग्लादेश ने अल्पसंख्यकों पर हमले के आरोप को ख़ारिज कर दिया और इसे प्रॉपेगैंडा बताया, जो निश्चित रूप से काफी अनुचित लगता है।
अगर, बांग्लादेश में चल रही उथल पुथल का कहीं सबसे ज्यादा असर दिख रहा है तो वह पश्चिम बंगाल है। दोनों देशों के बीच पनपे अविश्वास का असर पश्चिम बंगाल में साफ़ महसूस किया जा सकता है। पिछले महीने बांग्लादेश के चटगांव में इस्कॉन मंदिर से जुड़े चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ़्तार किए जाने के बाद जिस तरह विवाद बढ़ा है, उससे नहीं लगता है कि दोनों देशों की सियासत अभी ठंडी पड़ने वाली है। इस गिरफ़्तारी के बाद पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने धमकी देते हुए कहा था कि अगर, चिन्मय कृष्ण दास को रिहा नहीं किया गया तो पेत्रापोल के ज़रिए भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाले कारोबार को बंद करवा देंगे। वहीं, पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने भी कहा कि भारत अगर, चाहे तो बांग्लादेश को आर्थिक रूप से गहरी चोट दे सकता है। हालांकि, भारत ने बांग्लादेश से संबंध इसलिए नहीं तोड़े हैं, क्योंकि दोनों देशों का ऐतिहासिक रिश्ता रहा है।
यह बात उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान गहरे जुड़ी हुई है। दोनों राज्यों की भाषा, साहित्य, संगीत, कला और संस्कृति एक जैसी है। बंगाली भाषा और साहित्य, जैसे कि रवींद्रनाथ ठाकुर और काजी नजरुल इस्लाम का योगदान, दोनों देशों में समान रूप से सम्मानित हैं। इस सांस्कृतिक समानता के कारण पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश के प्रति एक विशेष भावनात्मक संबंध मौजूद है, जो राज्य की राजनीति पर गहरा असर डालता है।
पश्चिम बंगाल की राजनीति में इस सांस्कृतिक कनेक्शन का महत्व इस वजह से भी है, क्योंकि राज्य में बंगाली मुसलमानों का एक बड़ा समुदाय है। बांग्लादेश के मुस्लिम नागरिकों से पश्चिम बंगाल के मुस्लिम समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक समानताएं उनके राजनीतिक रुझान को प्रभावित करती हैं। इसलिए, बांग्लादेश के मामलों पर पश्चिम बंगाल में राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया अक्सर अधिक संवेदनशील होती है।
पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच सीमा पर कई मुद्दे रहे हैं, जिनका सीधा असर राज्य की राजनीति पर पड़ता है। भारतीय और बांग्लादेशी सीमा विवाद और सीमा के भीतर की अवैध गतिविधियां अक्सर राजनीतिक बहस का कारण बनती हैं। उदाहरण के लिए, भारत-बांग्लादेश सीमा पर तस्करी, शरणार्थी संकट और सीमा सुरक्षा के मुद्दे राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
बांग्लादेश से अवैध प्रवासन और शरणार्थियों की समस्या पश्चिम बंगाल में एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है। बांग्लादेशी शरणार्थियों के आने से राज्य में आबादी का दबाव बढ़ा है, जो संसाधनों और बुनियादी सुविधाओं पर असर डालता है। यह मुद्दा खासकर पश्चिम बंगाल के हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव का कारण बनता है। राजनीतिक दलों के लिए यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है, जिसमें वे शरणार्थियों के अधिकारों या उन्हें वापस भेजने की मांग करते हैं। इस प्रकार, बांग्लादेश से अवैध प्रवासन पश्चिम बंगाल में राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देता है।
बांग्लादेश के लोगों के लिए कोलकाता सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थल रहा है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में बांग्लादेश से भारत आने वालों की संख्या घटी है। दो दिसंबर को भारत के पर्यटन मंत्रालय ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि 2023 में बांग्लादेश के 21.19 लाख पर्यटक भारत आए थे और 2024 में अगस्त महीने तक 12.85 लाख बांग्लादेशी पर्यटक भारत आए। पिछले साल जुलाई और अगस्त महीने की तुलना में इस साल इन्हीं दो महीनों में बांग्लादेश से भारत आने वाले पर्यटकों की तादाद में क्रमशः 20.26% और 38.08% की गिरावट आई है, जो निश्चित रूप से इस बात को दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच चल रहा विवाद इसकी सबसे बड़ी वजह है, इसीलिए विवाद को अनावश्यक नहीं बढ़ना चाहिए। दोनों देशों के बीच पहले की तरह रिश्ते सामान्य हों, इसका हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।