अगर निकल जाते तेरे दर से,
तो अच्छा होता!
दर्द दिल में दफन कर लेते,
तो अच्छा होता!
घाव बन चुका है जो अब,
टीस रह-रह कर उभरता है जब तब!
आंसू बन बहा लेते तो अच्छा होता!
नकाब ओढ़े खैरबदें है अब भी,
उन्हें दिल से निकाल देते,
तो अच्छा होता!
उन्हें मेरे जनाजे में जाने का शौक था बहुत,
उनके इशारों को समझ जाते,
तो अच्छा होता!
क्या हुआ जो जी गयेे दो चार दिन,
शांत ही बहेगें कुछ और दिन,
बस मुझे कुछ और साल बहने दो
रोकोगे नदी के बहाव को जब,
उफना न जाए तटों को तोड़ सीमाओं से परे,
ये समझ जाये वो लोग,
तो अच्छा होता!
सरिता सिंह