संजय पंकज
राष्ट्रीय कवि
खुद को सुनना खुद को कहना पंकज घर में ही रहना
कठिन समय है दुनिया डगमग चाल सियासी बंद नहीं
ऐसी आफात में भी क्यों इच्छाएं है मंद नहीं
छल छंदों की गंध नहीं पहनो करुणा का गहना
मृदुल धारा पर पांव टीका का कर नीलगगन से बतियाना
उन्मुक्त हवाओं को पीना चिड़ियों के सुर में गाना
सागर लहरों से टकराना संग नदी के तुम बहना
खुद को सुनना खुद को कहना पंकज घर में ही रहना
जंगल की मस्ती को जीना हरियाली शबनम दिखना
खुली किताबों से तुम जुड़कर तुमअक्षर संवेदन लिखना
प्रेम चिरंतन चखना सीखना पर्वत सा संकट सहना
खुद को सुनना खुद को कहना पंकज में ही रहना
छल छंदों की गंध नहीं पहनो करुणा का गहना
सागर लहरों से टकराना संग नदी के तुम बहना
खुद को सुनना खुद को कहना पंकज घर में ही रहना