राष्ट् संवाद नजरिया…
सहयोगात्मक भावना दिखाए विपक्ष
देवानंद सिंह
नए नागरिकता संशोधन विधेयक के कानून बनने के बाद पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ राजधानी दि“ी आग की ज्वाला में झुलस रही है। जिस प्रकार आगजनी व अन्य घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है, उससे लगता है कि आने वाले दिनों में भी यह हिंसा समा’ होने वाली नहीं है। इसमें कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियों द्बारा जो भूमिका निभाई जा रही है, वह पूरी तरह शर्मनाक है। केंद्र सरकार द्बारा बार-बार इस बात को स्पष्ट किया जा रहा है कि इस नए कानून से भारत में रहने वाले अल्पसंख्यक नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है, ऐसे में इस विरोध का कोई मतलब नहीं बनता है। हिंसा की आग भड़काकर केवल जान-माल का ही नुकसान होना है। इससे भी बड़ी चिंताजनक बात यह है कि देश के अंदर साम्प्रदायिक माहौल पूरी तरह से खराब हो रहा है। इसीलिए कांग्रेस पार्टी की सर्वेसवाã सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को एक जिम्मेदार राजनीतिज्ञ के तौर पर स्वयं को पेश करना चाहिए। उन्हें अपनी देश हित में जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए। बिल वैसे भी दोनों सदनों के साथ-साथ राष्ट्पति रामनाथ कोविंद से पास होकर कानून बना है। इसीलिए इसको लेकर विरोधियों को पूरी संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। राजधानी दि“ी में कानून के खिलाफ प्रदर्शन रविवार को हिंसक हुआ, जो लोकतंत्र के लिए घातक है, क्योंकि हमारे भारत में विरोध का दूसरा तरीका है। हिंसा व सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से कोई लाभ नहीं मिलता है, क्योंकि इससे जनता और देश का ही नुकसान होता है। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस से झड़प के बाद चार बसों सहित कई अन्य वाहनों को आग के हवाले कर दिया। दि“ी-मथुरा रोड पर भारी जाम की वजह से आम यातायात व्यवस्था पूरी तरह से ठप रही। आलम यह रहा कि मेट्ो स्टेशनों तक को बंद करना पड़ा, जिससे लोगों की आम आवाजाही बुरी तरह से प्रभावित हुई।
दिल्ली में अधिकांशत देश के दूसरे हिस्सों के लोग रहते हैं, जो मूल रूप से नौकरी कर अपना गुजारा करते हैं। इन सबके बीच राजनीतिक पार्टियों का क्या? उन्हें तो अपनी राजनीति चमकाने का मौका मिल गया है, लेकिन उन्हें इस बात का भी आभास होना चाहिए कि उनके विरोध प्रदर्शनों से हिंसक घटनाएं नहीं होनी चाहिए और किसी भी प्रकार से सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। पश्चिम बंगाल सहित पूर्वोत्तर के आठ राज्यों, जामिया मिलिया इस्लामिया, जेएनयू और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी स्थिति बेहद खराब हो चली है। विरोध की आग से झुलस रहे अधिकांश राज्यों का मानना है कि वे इस कानून को अपने राज्यों में लागू नहीं होने देंगे, लेकिन ऐसे राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रहे लोगों को यह सोचना चाहिए कि यह राज्य का विषय है ही नहीं। यह केंद्र का विषय है, इसीलिए ऐसे राज्यों व राजनीतिक पार्टियों को हिंसा भड़काने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए।
ऐसी राजनीतिक पार्टियों को इस बात का भान होना चाहिए कि भारत ने हमेशा ही अपने संवैधानिक मूल्यों का निर्वहन किया है और हिंदु-मुस्लिम, सिख-ईसाई आपस में प्रेम के साथ रहते आए हैं, लेकिन इस चीज को पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश ने पूरी तरह एडॉप्ट नहीं किया। इन देशों में आज भी अल्संख्यक खराब हालातों में रह रहे हैं। पाकिस्तान की स्थिति तो सभी को पता है कि वहां अल्पसंख्यकों की क्या स्थिति है ? यह बात सहजता से समझी जा सकती है कि जब हमारे जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं पर अत्याचार हो सकता है तो पाकिस्तान में क्या होता होगा। इस मुद्दे को क्यों विपक्षी कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियां उठा रही हैं।
अगर, आज भी देश में यह समस्या बनी है और पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक पीड़ित है तो इसका जिम्मेदारी कांग्रेस के अलावा कोई भी नहीं है। न तो उसने इतने सालों में इस समस्या का समाधान खोजा और अब जब इसका समाधान खोजा जा रहा है तो उस पर भी टांग अड़ाने में कांग्रेस ही सबसे आगे है। यह कितनी शर्मनाक बात है कि जब देश में रोहिंग्या घुसपैठ करते हैं तो ये राजनीतिक पार्टियां उनका बिल्कुल भी विरोध नहीं करती हैं और जब पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक आते हैं तो इन्हें तकलीफ होने लगती है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिस प्रकार रोहिंग्या के समर्थन में रहीं हैं और पश्चिम बंगाल को देश से अलग समझती हैं, यह लोकतंत्र के ह्दय को पीड़ा देने लायक मंजर होता है। यह नया भारत है। यहां बहुत-सी नई चीजें होनी जरूरी हैं। दशकों पुराने कानूनों को इस बदलते दौर में झेलना सही नहीं है, परिस्थिति के अनुसार उसमें बदलाव होना चाहिए।
अगर, केंद्र की बीजेपी सरकार बदलाव के लिए सख्त कदम उठा रही है तो विपक्षियों को भी इसका समर्थन करना चाहिए। आगे अभी बहुत से कदम उठाए जाने हैं। नागरिकता संशोधन विधयेक लागू होने में ही विपक्षी कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियों का दम घुटने लगा है, यह तो झांकी है। अभी जनसंख्या नियंत्रण कानून और एनआसी बाकी हैं, क्योंकि अभी सरकार को महज छह महीने हुए हैं, साढ़े चार साल अभी बाकी हैं। लिहाजा, देश हित में लिए जा रहे सख्त कदमों का समर्थन किया जाना चाहिए और विरोधियों को हिंसा भड़काने की नीति पर नहीं, बल्कि सामंजस्य और सहयोगात्मक भावना को दर्शाना चाहिए।