IAS पूजा सिंघल को पहचानिए
पूजा सिंघल प्रकरण : भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा
देवानंद सिंह
जनसेवा के लिए सिविल सर्विस में आने वाले अधिकारी का रूतबा बहुत बड़ा होता है। एक आईएएस अधिकारी वह सेतु होता है, जो प्रशासनिक कार्यप्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन कर सकता है, क्योंकि इस सिस्टम का संचालन प्रत्यक्ष रूप से उसी के पास होता है, लेकिन अगर कोई आईएएस अधिकारी भ्रष्टाचार करने पर उतर जाए तो वह सिस्टम को दीमक की तरह चट भी कर सकता है। झारखंड की 2000 बैच की आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल का मामला जिस तरह से सामने आया है, उसे सबको हैरान कर दिया है। सरकार की तरफ से अच्छी-खासी तन्ख्वाह, सुख-सुविधाएं, नौकर-चाकर, बंग्ला-गाड़ी मिलने के बाद भी एक जनसेवक की नीयत कितनी खराब हो सकती है, इस मामले से साफतौर पर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
भले ही, झारखंड में सरकार बदल गई, लेकिन मैडम का रूतबा कम नहीं हुआ। रघुवरदास के मुख्यमंत्रित्व काल में वह कृषि सचिव के पद थीं और हेमंत सोरेन सरकार में वह खनन और उद्योग विभाग की सचिव रहने के साथ ही, झारखंड राज्य खनिज विकास निगम लिमिटेड की चेयरमैन भी हैं। इसीलिए मैडम पर उद्योगों के विकास और खनन माफियाओं से निपटने के बजाय अपनी तिजोरी भरने पर ज्यादा ध्यान लगाया। बस इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री से लेकर व्यवसायी और मीडिया मैनेजमेंट को सेट करके रखा। जिस अधिकारी को अपने उत्तरदायित्व का सही निर्वहन करना चाहिए था, उसने इस कला में पारंगतता हासिल कर बस अपनी तिजोरी भरने का काम किया। ईडी के छापे में अब तक 25 करोड़ की नकदी और 300 करोड़ की संपत्ति के दस्तावेज मिले है, जो अपने-आप में आश्चर्यजनक बात है। अभी जांच चल रही है, मैडम के भ्रष्टाचार की कई परतें उसमें खुलेंगी। इस सारे परिदृश्य में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जनसेवा की कसम खाने वाला एक अधिकारी इस हद तक कैसे गिर सकता है ? क्या कभी उसने इस पर मंथन नहीं किया होगा कि वह किस उद्देश्य से सिविल सर्विस में आया है और वह क्या कर रहा है ? क्या कभी उसे इस तरह का कृत करते हुए उपर वाले का भी ध्यान नहीं आया होगा। वास्तव में, इस देश के सामने यही सबसे विचित्र स्थिति है। कुर्सी मिलने के बाद जिस तरह भ्रष्टाचार को जन्म दे दिया जाता है, वह देश को गर्त की तरफ ले जा रहा है। भारत में गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी क्यों बढ़ रही है। वह इसीलिए क्योंकि पूजा सिंघल जैसे अधिकारियों के पास सिस्टम की चाबी है। जिस तरह के उनके कारनामे सामने आ रहे हैं, उससे तो यही साबित होता है कि उन्होंने तो जनसेवा को कब की तिलांजलि दे होगी। इसीलिए वह भ्रष्टचार की चरमसीमा तक पहुंच चुकी थीं और अपने मातहत अधिकारियों से भी पैसे की मांग करती थीं। यह कितना जुर्म है कि एक गरीब, लाचार की मेहनत की पैसा लेने में भी इस अधिक की रूह नहीं कांपी। जब देश में इस तरह के अधिकारी हो जाएं तो उस देश का क्या हो सकता है, इसको समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है। जिसका दंश आज भी देश झेल रहा है। लिहाजा, इसे भ्रष्ट अधिकारियों को सेवा से तत्काल बर्खास्त कर देना चाहिए और उससे वह संपत्ति भी जब्त कर लेनी चाहिए, जो उसे सरकार की तरफ से नौकरी के दौरान दी गई है, क्योंकि सरकार उसे तन्ख्वाह इसीलिए नहीं देती कि वह लूट मचाए। जब इस तरह की सख्ती नहीं बरती जाएगी, जब जनसेवा के नाम सिविल सर्विस में आने वाले अधिकारी इसी तरह अपनी मनमानी करते रहेंगे।
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