क्या वाकई भारत और चीन के बीच रिश्तों में हो रहा सुधार
देवानंद सिंह
भारत और चीन के बीच संबंधों में पिछले चार वर्षों से एक ठहराव सा देखा जा रहा है। यह ठहराव विशेष रूप से गलवान संघर्ष के बाद से महसूस किया जा रहा है। गत सप्ताह को भी दोनों देशों की हुई विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत में कुछ सहमति बनी है, जो यह संकेत देती है कि दोनों देशों के रिश्तों में धीरे-धीरे सुधार हो सकता है। निश्चित रूप से यह सहमति उस दिशा में एक सकारात्मक कदम कहा जा सकता है, लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर अभी बहुत उम्मीद के साथ नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि यह अभी शुरुआत ही है। इस प्रक्रिया में कई किंतु-परंतु और बढ़ाएं भी हैं, इसीलिए दोनों रिश्तों के पूरी तरह सामान्य होने को लेकर इंतजार करना होगा।
हालांकि, यह बात उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के बीच रिश्तों की जड़ें बहुत पुरानी हैं। दोनों देशों के बीच गहरे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और व्यापारिक संबंध रहे हैं, लेकिन इन रिश्तों में उतार-चढ़ाव भी आते रहे हैं। 1962 में हुए युद्ध ने इन रिश्तों में एक गहरी खाई पैदा की थी, जो अब तक पूरी तरह से भरी नहीं है, हालांकि 1980 और 1990 के दशकों में दोनों देशों ने आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को सुधारने की कोशिश की थी। 1993 और 1996 में सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए गए, लेकिन चिंताजनक बात यह रही कि ये प्रयास दीर्घकालिक स्थिरता नहीं ला सके।
भारत-चीन संबंधों में कुछ वर्ष पूर्व एक गंभीर मोड़ आया था, जब गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई। इस झड़प में भारतीय और चीनी सैनिकों की जानें भी गईं, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में गहरी खटास आ गई थी। इस संघर्ष ने दोनों देशों के बीच सीमावर्ती क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा दिया था। इसके बाद से दोनों देशों के बीच बातचीत का कोई प्रभावी हल नहीं निकल सका और स्थिति में कोई स्पष्ट सुधार नहीं दिखा। चीन की सीमा से संबंधित रणनीति और भारतीय सुरक्षा के प्रति चिंता ने इन रिश्तों में और जटिलता पैदा कर दी थी।
कुछ दिनों पूर्व भारत और चीन के बीच विशेष प्रतिनिधियों की एक बैठक हुई, जिसमें दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर चर्चा की गई और कुछ सहमति भी बनी, जिससे रिश्तों की कड़वाहट में ठहराव आने की उम्मीद बढ़ी है, हालांकि यह सहमति शुरुआत में ही है और इसे दीर्घकालिक स्थिरता में बदलने के लिए कई कदम उठाने होंगे। इस बैठक में, विशेष रूप से सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखने और सैन्य तनाव को कम करने पर जोर दिया गया है। यह एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसे वास्तविकता में उतारने के लिए दोनों देशों को ईमानदारी से सहयोग करना होगा।
दोनों देशों के बीच सबसे बड़ी चुनौती सीमा विवाद है। विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच तनाव रहा है। पिछले कुछ समय में, दोनों देशों ने सैन्य बातचीत और कुछ समझौतों के माध्यम से सीमा पर शांति बनाए रखने का प्रयास किया है।
यदि, दोनों देशों की एक स्थायी समाधान पर सहमति बनती है, तो निश्चित रूप से यह दोनों देशों के संबंधों के सामान्यीकरण में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
इसके अलावा भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों में भी उतार-चढ़ाव आया है, हालांकि चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है, लेकिन व्यापारिक असंतुलन एक समस्या बनी हुई है। अगर, दोनों देश अपने व्यापारिक संबंधों को संतुलित करने और आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए कदम उठाते हैं, तो यह निश्चित रूप रूप से दोनों देशों के रिश्तों में एक सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। यह बात उल्लेखनीय है कि भारत और चीन दोनों ही एशिया के प्रमुख शक्तियां हैं। दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उनके रिश्ते वैश्विक राजनीति को प्रभावित करते हैं। इस संदर्भ में, दोनों देशों के बीच सहयोग से न केवल क्षेत्रीय स्थिरता में सुधार आ सकता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक नई साझेदारी की संभावना बन सकती है।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक जटिल मुद्दा है, लेकिन अगर दोनों देशों के बीच सीमा प्रबंधन के बेहतर समझौते होते हैं, तो यह सीमा पर शांति को बनाए रखने में मदद करेगा। विशेष रूप से, दोनों देशों को एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करते हुए, सैन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने की आवश्यकता होगी, लेकिन इन सबके बीच दोनों देशों के रिश्तों को सामान्य करने के पीछे की बाधाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है, जिसमें सीमा विवाद को लेकर रणनीतिक असमंजस बहुत बड़ी बाधा है। भारत और चीन के बीच सबसे बड़ी बाधा ही सीमा विवाद है। 1962 के युद्ध के बाद से इस विवाद को सुलझाने में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा सके। चीन की विस्तारवादी नीति और भारत की सुरक्षा चिंताओं ने इस विवाद को और जटिल बना दिया है। सीमा पर सैन्य तैनाती, साथ ही चीनी सैन्य गतिविधियां भारत के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं।
चीन का वैश्विक दृष्टिकोण और उसकी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ने भारत के लिए चिंता का कारण बन गया है। भारत इस पहल का विरोध करता है, क्योंकि यह पाकिस्तान और चीन के बीच बढ़ते सहयोग को मजबूत करता है। चीन की रणनीतिक गतिविधियां और विस्तारवादी नीतियां भारत के लिए चुनौतीपूर्ण बनी हुई हैं। इसके अलावा भारत और चीन दोनों ही वैश्विक ताकतें हैं, लेकिन दोनों के बीच तनाव और प्रतिस्पर्धा वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ भारत के रणनीतिक संबंध चीन को नापसंद करते हैं। इसके अतिरिक्त, चीन की एशिया और अफ्रीका में बढ़ती प्रभावशाली उपस्थिति भारत के लिए चिंता का विषय है। दोनों देशों की आंतरिक राजनीति भी उनके रिश्तों को प्रभावित करती है। भारत में, चीन के प्रति सख्त दृष्टिकोण और राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताएं राजनीतिक नेतृत्व की प्राथमिकता रही हैं। वहीं, चीन में भारतीय संबंधों पर नियंत्रण रखने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक लक्ष्यों की दिशा तय की जाती है।
इन हालातों के बीच भारत और चीन के बीच रिश्तों का सामान्यीकरण एक जटिल और धीमी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन यह संभव है कि यदि दोनों देश अपनी सीमा विवादों, रणनीतिक असमंजस और वैश्विक चिंताओं के समाधान के लिए ईमानदारी से काम करें। वर्तमान परिस्थितियों में सकारात्मक संकेत यह है कि दोनों देश आपसी सहयोग और संवाद के रास्ते पर चलने को तैयार हैं। यदि, दोनों देशों के नेताओं और कूटनीतिक दलों के बीच मजबूत इच्छाशक्ति और समर्पण दिखाई देता है तो भारत-चीन रिश्तों में एक नई सुबह का आगमन हो सकता है, जो दोनों देशों के लिए और समग्र वैश्विक समुदाय के लिए फायदेमंद साबित हो।