*इसराइल-हमास युद्धविराम और भारत पर असर*
देवानंद सिंह
2023 में हमास और इसराइल के बीच शुरू हुए संघर्ष ने केवल मध्यपूर्व को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। इस युद्ध के कारण लाखों लोग प्रभावित हुए और इसके दूरगामी प्रभाव भी सामने आए। अब अमेरिका और क़तर की मध्यस्थता से इसराइल और हमास ने ग़ज़ा में संघर्षविराम पर सहमति जताई है, जिससे न केवल दोनों पक्षों, बल्कि भारत जैसे वैश्विक खिलाड़ियों को भी राहत मिल सकती है, जो क्षेत्रीय शांति के लिए अच्छा है।
उल्लेखनीय है कि भारत की मध्यपूर्व के देशों के साथ गहरे आर्थिक और सामरिक रिश्ते हैं, जो इस युद्ध के कारण अस्थिर हो गए थे। भारत, कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक देश है और उसकी ऊर्जा आवश्यकताओं का एक बड़ा हिस्सा मध्यपूर्व से आता है। तेल की कीमतों में अस्थिरता और व्यापारिक मार्गों में बाधाएं भारत के आर्थिक हितों के लिए खतरा बन सकती थीं। युद्धविराम से, मध्यपूर्व में शांति की संभावनाएं बढ़ी हैं, जिससे भारत के ऊर्जा आयात पर सकारात्मक असर पड़ने की उम्मीद रहेगी। भारत की तेल जरूरत का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा आयात से पूरा होता है और इनमें से एक बड़ा हिस्सा मध्यपूर्व देशों से आता है। युद्ध के दौरान तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने भारत की आर्थिक स्थिति पर दबाव डाला था। 2024 के अप्रैल महीने में जब इसराइल ने ईरान पर हमले किए, तो तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं, जिससे भारत का आयात बिल बढ़ गया था। युद्धविराम से, अगर मध्यपूर्व में स्थिरता बनी रहती है, तो तेल की कीमतें नियंत्रित हो सकती हैं, जिससे भारत को निश्चित रूप से राहत मिलेगी।
कच्चे तेल की कीमतों में हर दस डॉलर की बढ़ोतरी भारत के चालू खाते के घाटे को आधे प्रतिशत तक बढ़ा देती है। इसके अलावा, महंगे तेल के कारण उत्पादन लागत बढ़ जाती है, जो महंगाई को बढ़ावा देती है। भारत के लिए यह युद्धविराम इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे तेल की कीमतों में स्थिरता आएगी, जो न केवल ऊर्जा क्षेत्र को राहत देगा, बल्कि भारतीय उपभोक्ताओं के लिए भी सकारात्मक परिणाम लाएगा। इसराइल-हमास संघर्ष के चलते हूती विद्रोहियों ने लाल सागर से होकर इसराइल जाने वाले व्यापारिक जहाजों पर हमले तेज कर दिए थे। इन हमलों के कारण भारतीय जहाजों की सुरक्षा भी खतरे में आ गई थी और समुद्री व्यापार में रुकावटों का डर भी था। भारतीय नौसेना ने इस स्थिति से निपटने के लिए कई अभियानों की शुरुआत की थी। युद्धविराम के बाद, इस समुद्री मार्ग पर शांति के कारण भारतीय व्यापारियों और नाविकों को राहत मिल सकती है, साथ ही शिपिंग लागत में कमी आएगी।
लाल सागर, एशिया, यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के बीच व्यापार का महत्वपूर्ण मार्ग है और भारत के व्यापारिक हितों के लिए एक अहम कड़ी है। अगर, इस मार्ग पर शांति रहती है, तो भारत को न केवल सुरक्षा की दृष्टि से, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी लाभ होगा। भारत और मध्यपूर्व के देशों के बीच व्यापार के लिए यह मार्ग अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत के लिए मध्यपूर्व में 90 लाख से अधिक प्रवासी भारतीय रहते हैं, जो प्रति वर्ष भारत को 50 से 55 लाख डॉलर भेजते हैं। इन देशों में शांति की स्थिति भारत के प्रवासी नागरिकों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। अगर संघर्ष और अस्थिरता बढ़ती, तो भारत को अपने नागरिकों को निकालने के लिए बड़ी मात्रा में धन खर्च करना पड़ता। युद्धविराम के बाद, भारत को इस मामले में राहत मिलेगी, और उसकी विदेश नीति के दृष्टिकोण से भी यह महत्वपूर्ण होगा।
इसराइल और भारत के बीच रक्षा क्षेत्र में गहरे रिश्ते हैं, और दोनों देशों के बीच हथियारों का निर्यात बढ़ा है। 2012 से 2022 तक, इसराइल ने भारत को 2.9 अरब डॉलर के रक्षा उपकरणों का निर्यात किया है। भारत के लिए इसराइल के रक्षा उपकरण, जैसे एयर डिफेंस सिस्टम, मिसाइल और यूएवी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। युद्धविराम से, इसराइल और भारत के बीच रक्षा सहयोग को और गति मिल सकती है। इसके साथ ही, भारत को इन उपकरणों की आपूर्ति में कोई रुकावट नहीं आएगी, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम है। मध्यपूर्व में शांति की स्थिति के चलते, इंडिया मिडिल ईस्ट कॉरिडोर का सपना भी अब वास्तविकता में बदल सकता है। यह परियोजना भारत, इसराइल, यूएई और अमेरिका के बीच सहयोग को बढ़ावा देती है और एशिया और यूरोप के बीच रेल और शिपिंग नेटवर्क से यातायात और संचार को आसान बनाएगी। युद्धविराम के बाद, इस परियोजना में तेजी आ सकती है, जिससे भारत को नए व्यापारिक अवसर मिलेंगे और उसकी वैश्विक स्थिति मजबूत होगी।
इस युद्धविराम के तीसरे चरण के तहत के पुनर्निर्माण का काम शुरू हो सकता है। भारत के लिए यह एक बड़ा अवसर हो सकता है, क्योंकि भारतीय कंपनियां यहां पुनर्निर्माण कार्यों में भाग ले सकती हैं। इसके अलावा, इसराइल में भारतीय कामगारों की संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि सुरक्षा के कारण पहले यह प्रक्रिया धीमी हो गई थी। युद्धविराम के बाद, भारतीय कंपनियां और श्रमिकों को नए अवसर मिल सकते हैं, जिससे भारत की आर्थिक स्थिति को एक नई दिशा मिल सकती है। भारत के लिए युद्धविराम और मध्यपूर्व में शांति का एक और पहलू उसकी सॉफ्ट पावर है। गाजा में मानवीय सहायता को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका बढ़ सकती है, जो देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को मजबूत करेगा। भारत का योगदान न केवल कूटनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होगा, बल्कि यह मानवीय दृष्टिकोण से भी उसकी स्थिति को महत्वपूर्ण बनाएगा।
क्या मिलाकर यही कहा जा सकता है कि इसराइल-हमास युद्धविराम के बाद भारत के लिए कई संभावनाएं खुलती हैं। मध्यपूर्व में शांति से तेल की कीमतों में स्थिरता, समुद्री व्यापार की सुरक्षा, भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और रक्षा सहयोग में वृद्धि जैसी कई राहत मिल सकती है। इसके अलावा, इंडिया मिडिल ईस्ट कॉरिडोर और गजा पुनर्निर्माण जैसे परियोजनाओं में भारत की सक्रिय भूमिका भी उसकी वैश्विक स्थिति को और मजबूत कर सकती है। यह युद्धविराम भारत के लिए एक सुनहरा अवसर हो सकता है, बशर्ते इसे लागू करने में सभी पक्षों की प्रतिबद्धता बनी रहे।