समाज में सकारात्मक एवं सुन्दर चेतना का विस्तार करती रही है राष्ट्रसंवाद:प्रियंका सौरभ
प्रियंका सौरभ
सन 2000 में देश, काल और परिस्थिति तेजी से बदल रही थी। ऐसे में जरूरत थी वक्त के साथ कदमताल करती पत्रिका की। वह पत्रिका जो समाज का दर्पण हो, तरक्की का सारथी और इतिहास को संजोने वाली हो। इस परिस्थिति में तब राष्ट्र संवाद को शुरू करने के विचार ने जन्म लिया। तभी सच और असीमित जोश के साथ राष्ट्रसंवाद की नींव रखी गई। आज यह 25 साल का सफर तय कर चुकी है…उसी सच और जोश के साथ। राष्ट्र संवाद ने अपनी यात्रा के 25 वर्ष पूर्ण कर आज रजत जयंती वर्ष में प्रवेश किया है।
किसी नवोदित राष्ट्र के लिए 25 वर्ष का समय बाल अवस्था होती है। व्यक्ति 25 वर्ष में जवान हो जाता है। एक समाचार पत्र या पत्रिका से 25 वर्ष पूरे करने पर प्रौढ और परिपक्व अवस्था की अपेक्षा की जा सकती है। राष्ट्र संवाद इस कसौटी पर कहां तक खरी उतरती है इसका निर्णय पाठकवृंद को करना है। राष्ट्र संवाद का जन्म सामाजिक क्रांति और राष्ट्रीय मुद्दों की पृष्ठभूमि से हुआ।
राष्ट्र संवाद मूल्यों पर आधारित सामग्री को लेकर आगे बढ़ी जिससे वह समाज में सकारात्मक एवं सुन्दर चेतना का विस्तार कर सके। राष्ट्रसंवाद में मात्र भारत की विपन्नता को लेकर रुदन वाली रचनाएं न होकर सृजन की रचनाएं रही। इसका उद्देश्य चेतना का हर संभव विकास करना था ताकि भारत में रहने वाला हर नागरिक स्वयं को सशक्त तथा माँ का लाल अनुभव कर सके,
बजाय सदा प्रश्न उठाने वाली पत्रिकाओं के, जो एक अजीब प्रकार की वितृष्णा समाज में उत्पन्न कर रही है। राष्ट्रसंवाद की भाषा, मूल्य एवं संस्कृति को भारत की सुसंस्कृत चेतना ने स्वीकारा एवं न केवल स्वीकारा अपितु आत्मसात भी किया। तथा एक और बात राष्ट्रसंवाद की ही रही कि उसने अच्छे विचारों और रचनाओं का सदा स्वागत किया, तभी तब से लेकर अब तक वह पाठकों के बीच लोकप्रिय रही।
इस वर्ष जब यह पत्रिका अपने रजत जयन्ती वर्ष में एक पूर्ण यौवना की भांति इठला रही है तो यह अपने आप में विशेष है? इस भटकाव भरे समय में, सार्वजनिक हित की वकालत करना – जो हमेशा राष्ट्र संवाद के मिशन के केंद्र में रहा है। कुलमिलाकर यह कहा जा सकता है कि जिस समय हिंदी जगत की वह पत्रिकाएँ जिन्हें जनवादी बुलबुले पर बनाया गया था तथा सरकारी विज्ञापनों एवं एक खास विचारधारा ही जिनका आधार थीं, वह धीरे धीरे दरक रही हैं,
क्योंकि उन्होंने जनवाद तो किया, परन्तु जनता के निकट नहीं गईं, उन्होंने लोक की बातें की परन्तु लोक को तोड़ने की बात की। और जिस पत्रिका ने भारत माँ की चेतना को आम जन मानस तक ले जाने का संकल्प लिया वह इस चुनौतीपूर्ण समय में रजत जयन्ती विशेषांक निकाल रही हैं।
राष्ट्र संवाद को यह श्रेय है कि प्रचंड तूफान में वह राष्ट्रीय आदर्शों एवं सिद्धांतों के पक्ष में खड़ी रही और क्रुद्ध वर्ग की धमकियों के समक्ष झुकने से इसने इन्कार कर दिया। संपादक देवानंद सिंह ने सेनानियों की तरह राष्ट्र संवाद का प्रकाशन किया और जन-जागरण का माध्यम बनाया। राष्ट्र संवाद और इससे संबद्ध लोगों ने जो देशभक्तिपूर्ण और साहसिक भूमिका प्रस्तुत की वह इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी जाएगी। अपने तमाम वर्षों में राष्ट्र संवाद ने खुद की भूमिका निभाते हुए जन साधारण को राष्ट्रीय आदर्शों एवं उद्देश्यों के प्रति चैतन्य एवं शिक्षित करने और दूसरी ओर लोकतंत्रीय प्रक्रिया के कार्यान्वयन में जनहितों का प्रतिनिधित्व करने की जागरूकता लाने का काम बखूबी किया है। राष्ट्र संवाद ने इस दिशा में अकिंचन प्रयास किया है।
पच्चीस साल पहले प्रारम्भ हुआ ये सफर नये आयामों, रचनाकारों को अपने साथ मिलाकर लगातार जारी है। शुरूआत बहुत मुश्किल थी और लक्ष्य था साहित्य के माध्यम से राष्ट्रसंवाद को उचित और गौरवपूर्ण स्थान दिलाना। यह उद्देश्य लगभग पूरा हो चुका है और राष्ट्रसंवाद निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर अपना कार्य कर रही हैं। राष्ट्र संवाद अपने इस उद्देश्य में पूर्णतः सफल रही है। बहुत से नये रचनाकारों को पत्रिका में स्थान मिला है और वे रचनाएं लिख रहे हैं।
अंत में मैं राष्ट्रसंवाद परिवार से जुड़े सभी सदस्यों को पत्रिका के नये अंक के प्रकाशन की बधाई देती हूँ, आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है।
-प्रियंका सौरभ