- राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर विषयों पर बोलते समय संयम और गहन समझदारी दिखाने की आवश्यकता
राष्ट्र संवाद संवाददाता
नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में पाकिस्तान द्वारा की गई कायराना गोलीबारी और उसके चलते मारे गए निर्दोष नागरिकों की त्रासदी पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टिप्पणी एक बार फिर विवादों में आ गई है। शनिवार को पीड़ितों से मुलाकात के दौरान राहुल गांधी ने सीमा पार से की गई पाकिस्तानी गोलाबारी को ‘त्रासदी’ करार दिया, जिसे राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है।
राहुल गांधी की यह टिप्पणी न केवल पाकिस्तानी सेना के सुनियोजित आतंकी कृत्यों को ‘दुर्घटना’ बताकर उनके लिए नरमी दर्शाती है, बल्कि यह उन भारतीय नागरिकों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है, जिन्होंने अपने परिजनों को इस हमले में खोया। भाजपा ने इसे इस्लामाबाद को कवर फायर देने की राजनीतिक शैली बताया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और एकजुटता के लिहाज से बेहद खतरनाक मानी जा रही है।
बता दें कि पुंछ में हुई गोलाबारी कोई सामान्य युद्धकालीन घटना नहीं थी, बल्कि यह पाकिस्तान द्वारा भारत में अस्थिरता फैलाने की एक रणनीतिक कोशिश थी। ऐसे में, विपक्ष के बड़े नेता द्वारा इसकी संवेदना को आतंकवाद के सटीक विश्लेषण से अलग करके केवल एक ‘मानवीय त्रासदी’ के रूप में दिखाना, पाकिस्तान के दृष्टिकोण को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नैतिक सहमति देने जैसा है।
इस प्रकार के बयानों से भारतीय सुरक्षा बलों का मनोबल प्रभावित होता है और देश में गलत संदेश जाता है। यह वक्त एकजुट होकर सीमापार की हर शत्रु गतिविधि के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का है, न कि उसे नरमी से समझने या परोक्ष रूप से जायज ठहराने का।
राहुल गांधी की यह टिप्पणी न केवल राजनीतिक अपरिपक्वता का संकेत देती है, बल्कि यह इस बात का भी प्रमाण है कि उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर विषयों पर बोलते समय संयम और गहन समझ की आवश्यकता है। जम्मू-कश्मीर के लोगों को सहानुभूति नहीं, न्याय और ठोस कार्रवाई चाहिए, और इसके लिए देश को एकजुट नेतृत्व की जरूरत है, न कि भ्रमित करने वाले बयानों की जरूरत है।