“जय — जय”
चारों दिशा समवेत स्वर,
माटी की जय – जय गाएंगे
मां भारती की वंदना में,
सप्त सुर को सजाएंगे
हरेक कंठ का हर लहर
करे वंदना इस राष्ट्र की,
हरेक घर में, हर पहर
हो अर्चना इस राष्ट्र की
गौरव वही हम जगायेंगे,
माटी की जय – जय गायेंगे !
तुलसी लिखें फिर राम गुण ,
गाए कबीरा प्रेम रस
रसखान हो मीरा भी हों
हर शब्द में हो देश यश
भारत को स्वर्ग बनायेंगे
माटी की जय – जय गायेंगे !
यह सिर्फ एक ध्वज नहीं
ये शौर्य की निशानी है
हाथों में जो तिरंगा है
वो त्याग की कहानी है इसे हृदय से लगाएंगे माटी की जय – जय गाएंगे !
डॉ कल्याणी कबीर
प्रिंसिपल
रंभा कॉलेज,
साहित्यकार
जमशेदपुर।