देवानंद सिंह
भारत और पाकिस्तान के बीच मई 2025 में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम से हुआ चार दिवसीय सीमित सैन्य संघर्ष, अब केवल रणनीतिक सैन्य अभियानों तक सीमित नहीं रह गया है। इस संघर्ष में हुए संभावित नुक़सान, विशेष रूप से भारतीय लड़ाकू विमानों को लेकर उठे विवाद ने एक नया राजनीतिक व सैन्य विमर्श खड़ा कर दिया है।
यह बहस अब और तेज हो गई है, जब भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने शांगरी-ला डायलॉग के दौरान ब्लूमबर्ग टीवी को दिए गए साक्षात्कार में विमानों के गिरने के सवाल पर कहा, “ज़रूरी नहीं कि जेट गिराया गया, ज़रूरी ये बात है कि ऐसा क्यों हुआ।” उनका यह कथन स्पष्टता से अधिक एक रणनीतिक अस्पष्टता की झलक देता है, जिससे यह प्रश्न और गहराता है कि आख़िरकार संघर्ष के दौरान भारतीय वायुसेना को कितना नुक़सान हुआ और क्या सरकार जानबूझकर इसे छिपा रही है?
पाकिस्तान की सेना और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने दावा किया है कि उन्होंने इस संघर्ष के दौरान भारत के छह लड़ाकू विमानों को मार गिराया, जिनमें तीन रफ़ाल, एक एसयू-30, एक मिग-29 और एक हेरॉन ड्रोन शामिल है। यह दावा अगर सही भी मान लिया जाए, तो यह भारत के लिए केवल सामरिक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और कूटनीतिक स्तर पर भी एक गहरा आघात है। इसके उलट, भारत सरकार ने इन दावों को सिरे से खारिज किया, लेकिन विस्तृत खंडन या तथ्यात्मक विवरण कभी सामने नहीं लाया गया। 11 मई को तीनों सेनाओं के शीर्ष अधिकारियों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में एयर मार्शल एके भारती ने केवल इतना कहा था कि हम जंग की स्थिति में हैं और नुक़सान इसका एक हिस्सा है। महत्वपूर्ण यह है कि हमने अपने उद्देश्य हासिल कर लिए हैं। यह जवाब रणनीतिक रूप से सही हो सकता है, लेकिन लोकतांत्रिक पारदर्शिता की दृष्टि से अधूरा और असंतोषजनक प्रतीत होता है।
CDS जनरल अनिल चौहान का बयान कि ज़रूरी ये नहीं कि जेट गिराया गया, ज़रूरी ये बात है कि ऐसा क्यों हुआ, अपने आप में एक दोधारी तलवार है। यह एक ओर सैन्य सोच की गहराई को दर्शाता है कि किसी नुकसान से सीखा क्या गया, लेकिन दूसरी ओर यह जवाबदेही और पारदर्शिता की अपेक्षाओं को भी कुंद करता है। जनरल चौहान यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या वास्तव में कोई विमान गिरा, यदि गिरा तो कितने और किस परिस्थिति में?
इस तरह का अस्पष्ट उत्तर राजनीतिक नेतृत्व को ढाल देता है, जिससे उन्हें लोकसभा या मीडिया के कठोर सवालों से बचने का अवसर मिल जाता है। क्या यह जवाब सैन्य रणनीति की सुरक्षा के लिए है या सरकार की छवि बचाने की रणनीति? इस मुद्दे पर कांग्रेस ने केंद्र सरकार से स्पष्ट जानकारी देने की मांग की है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सवाल किया है कि भारत ने कितने लड़ाकू विमान खोए? कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है और ‘कारगिल समीक्षा समिति’ की तर्ज़ पर एक स्वतंत्र, विशेषज्ञ कमिटी बनाने का प्रस्ताव रखा है, जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और संपूर्ण संघर्ष की व्यापक समीक्षा करे।
बता दें कि 1999 के कारगिल युद्ध के बाद तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने के. सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी, जिसने मात्र पांच महीनों में ‘From Surprise to Reckoning’ नामक एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी। उस समिति ने न केवल युद्ध के संचालन की समीक्षा की, बल्कि भारत की खुफिया विफलताओं, सशस्त्र बलों की तैयारियों और दीर्घकालीन सुरक्षा नीति पर ठोस सुझाव भी दिए। क्या मोदी सरकार इस ऐतिहासिक उदाहरण से कुछ सीख लेगी? राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में यदि महत्वपूर्ण सूचनाओं को पूरी तरह गोपनीय बना दिया जाए, तो यह एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में चिंता का विषय बन जाता है। यह सही है कि हर सैन्य जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती, लेकिन इतना ज़रूर अपेक्षित होना चाहिए कि देश को यह पता हो कि उसके सशस्त्र बलों ने किस कीमत पर अपने लक्ष्य हासिल किए। क्या हम वाक़ई सिर्फ़ मिशन कामयाब हुआ जैसे कथनों से संतुष्ट हो सकते हैं, जब तक हमें यह न बताया जाए कि उसकी कीमत क्या चुकानी पड़ी?
जनरल चौहान ने जिस तरह ‘टैक्टिकल ग़लतियों’ की बात की और यह कहा कि उन्हें सुधार लिया गया, उससे यह संकेत ज़रूर मिलता है कि संघर्ष के शुरुआती चरण में भारत ने कुछ रणनीतिक चूकें की थीं, लेकिन क्या यह सिर्फ तकनीकी चूक थी, जैसे रडार कवर में गैप, या ईसीएम की विफलता या फिर यह एक व्यापक खुफ़िया विफलता का हिस्सा थी? इन सवालों का जवाब तब तक नहीं मिलेगा, जब तक एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समीक्षा समिति इस पूरे संघर्ष का विस्तृत आकलन न करे।
कुल मिलाकर, जनरल चौहान की बातों से स्पष्ट है कि भारतीय सेना ने संघर्ष से सीख ली और अपनी रणनीति को अनुकूल बनाया। यह निश्चित रूप से सराहनीय है, लेकिन लोकतंत्र केवल रणनीतिक सफलता से नहीं चलता, वह जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग करता है। अगर, वाकई भारत ने एक या एक से अधिक विमान खोए हैं, तो यह जानकारी छुपाने से जन विश्वास पर आंच आती है। इस समय जब पाकिस्तान एक आक्रामक सूचना युद्ध छेड़े हुए है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सैन्य क्षमताओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं, तब भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह तथ्यों के साथ सामने आए, न केवल अपने नागरिकों के प्रति ईमानदारी दिखाने के लिए, बल्कि पाकिस्तान के झूठ को तथ्यों से बेनकाब करने के लिए भी।