हेमंत सोरेन की रिहाई के सियासी मायने
देवानंद सिंह
झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की आखिरकार पांच महीने बाद जेल से रिहाई हो गई है। हेमंत सोरेन की जमानत याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था और उनकी रिहाई का आदेश दिया। दरअसल, 13 जून को सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ED) और बचाव पक्ष की ओर से बहस पूरी होने के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया गया था।
जेल से बाहर आने के बाद हेमंत सोरेन ने जिस केंद्र की सत्तारूढ़ एनडीए सरकार पर हमला बोला, वह सियासी रूप से काफी मायने रखता है, इसका आने वाले विधानसभा चुनाव में भी असर देखने को मिलेगा। उन्होंने सीधेतौर पर कहा कि एक मनगढंत कहानी बना कर मुझे पांच महीने तक जेल में रखा गया। इसी प्रकार देश के अलग-अलग हिस्सों में कहीं पत्रकार बंद हैं, कहीं सरकार के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले लोग बंद हैं, आवाज़ को कुचला जा रहा है, दिल्ली के मुख्यमंत्री जेल में बंद हैं। कई मंत्रियों को जेल में डाला जा रहा है। हेमंत सोरेन का यह बयान कहीं ना कहीं संसद के पहले सत्र के दौरान पक्ष और विपक्ष के बीच संविधान बनाम आपातकाल को लेकर छिड़ रही बहस से भी जुड़ता है।
सत्ता पार्टी आपातकाल को लेकर विपक्ष को घेरे हुए है, ऐसे में, यह बहस और आगे खींचने की पूरी उम्मीद दिखाई दे रही है। सोरेन ने जिस तरह अरविंद केजरीवाल का नाम लिया, उससे भी यह दर्शाने की कोशिश की कि केंद्र सरकार मुख्यमंत्रियों तक को झूठा फंसाने में पीछे नहीं है। हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं और केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। दोनों अपनी-अपनी पार्टी के सबसे प्रमुख नेता भी माने जाते हैं। इनके ऊपर लगाए गए आरोप बेशक गंभीर हैं, लेकिन जिस तरह से लोकसभा चुनावों से कुछ ही पहले इन्हें गिरफ्तार किया गया, उससे विपक्ष को यह कहने का मौका मिला कि इन गिरफ्तारियों के पीछे उसकी चुनावी संभावनाओं को प्रभावित करने की कोशिश हो सकती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को तो सुप्रीम कोर्ट के दखल से चुनाव में प्रचार करने की मोहलत भी मिली, लेकिन हेमंत सोरेन उससे वंचित रहे। हेमंत सोरेन कथित ज़मीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में जेल भेजे गए थे,
जबकि केजरीवाल शराब घोटाले के आरोप में जेल में हैं। झारखंड हाई कोर्ट ने हेमंत सोरेन को ज़मानत देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया सबूतों को देखते हुए ये मानने के कारण हैं कि हेमंत सोरेन कथित अपराधों के लिए दोषी नहीं हैं। कोर्ट ने यह भी कहा-यह ध्यान देने योग्य है कि भानु प्रताप प्रसाद के परिसर से बरामद कई रजिस्टरों और रेवेन्यू रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता (हेमंत सोरेन) या उनके परिवार के सदस्यों का नाम नहीं हैं।
अगर, व्यापक संभावनाओं पर भी जाएं तो स्पेसिफिक या अप्रत्यक्ष रूप से याचिकाकर्ता शांति नगर, बारागैन, रांची में 8.86 एकड़ भूमि के अधिग्रहण और कब्ज़े में शामिल नहीं लगते और ना ही ‘अपराध से की गई आय’ को छिपाने में शामिल दिखते हैं। किसी भी रजिस्टर/रेवेन्यू रिकॉर्ड में उक्त ज़मीन के अधिग्रहण और कब्ज़े में याचिकाकर्ता की प्रत्यक्ष भागीदारी का कोई ज़िक्र नहीं है। ऐसे में, यह सवाल उठता है कि ईडी हेमंत सोरेन पर आरोप सिद्ध करने के लिए क्या कदम उठाती हैं। आगामी महीनों में महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, बिहार के साथ ही झारखंड विधानसभा के चुनाव भी होने हैं, इसीलिए हेमंत सोरेन की रिहाई बहुत मायने रखती है।
लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें जमानत नहीं मिली थी, जिस मुद्दे को गठबंधन ने चुनाव में भुनाने का पूरा प्रयास किया था, जिसका उसे फायदा भी हुआ। हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने भी राजनीति में जबरदस्त इंट्री लेते हुए उपचुनाव में जीत हासिल की। अब ऐसा लगता है कि विधानसभा चुनाव के दौरान भी इस मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश की जाएगी। अब इससे बचने के लिए बीजेपी क्या कदम उठाएगी, यह देखने वाली बात होगी।
दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव होने हैं, इसीलिए दिल्ली की सियासत भी देखने वाली होगी। केजरीवाल के मामले में जमानत पर रिहाई रोकने की जिस तरह की कोशिशें पिछले दिनों दिखीं वे भी सवाल खड़े करती हैं। निचली अदालत के जमानत दे देने के बाद ईडी का हाईकोर्ट पहुंचना अगर सामान्य था भी तो हाईकोर्ट ने जिस तरह से अपना आदेश सुरक्षित रख लिया, उसे सुप्रीम कोर्ट ने भी असामान्य बताया।और फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ठीक पहले जिस तरह से सीबीआई ने केजरीवाल को उसी एक्साइज पॉलिसी केस में गिरफ्तार किया, वह कम से कम जांच एजेंसियों की कुशलता का उदाहरण तो नहीं माना जा सकता।
गत, मंगलवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व मंत्री और आप नेता सत्येंद्र जैन की जमानत अर्जी पर भी सुनवाई स्थगित करने के सवाल पर हाईकोर्ट को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि जमानत से जुड़े मामले बेवजह टाले नहीं जाने चाहिए और यह भी कि बेल को नियम और जेल को अपवाद माना जाना चाहिए। फिर भी अलग-अलग मामलों में बार-बार जमानत की अर्जी को कानूनी प्रक्रिया में उलझाते हुए आरोपी को अधिक से अधिक समय तक जेल में रखने की प्रवृत्ति नजर आती है।
आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि आखिर सियासत के क्या रंग देखने को मिलेंगे और जबरदस्ती जेल भेजने को मुद्दा बनाकर विपक्ष कहां तक सत्ता पक्ष को घेरने में सफल होता है हालांकि आज भाजपा झारखंड के सह प्रभारी असम के मुख्यमंत्री का झारखंड दौरा और आदिवासियों के बड़े नेताओं से मिलना आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर देखा जा रहा है चर्चा यह भी है कि कोर्ट की टिप्पणी से ईडी गठबंधन को लाभ मिलेगा जिसकी काट भाजपा अभी से तलाश रही है
इस मुद्दे को लेकर लोकसभा चुनाव में नुकसान झेलने वाली बीजेपी इस मुद्दे का क्या काट निकालती है।