क्या सीटों के बंटबारे में भी सियासी तालमेल बिठा पाएगा महागठबंध !
देवानंद सिंह
आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर जिस तरह देश में हलचल दिख रही है, उसमें राजनीतिक पार्टियों में एक बार जोड़तोड़ को लेकर सियासी तालमेल बैठाने का काम शुरू हो चुका है, जहां एक तरफ बेंगलुरू में 26 पार्टियों के नेताओं ने एक मंच पर आने का काम किया है, वही बीजेपी भी एनडीए में जान फूंकने के प्रयासों में जुट चुकी है, जिसके लिए राजधानी दिल्ली में बैठक आयोजित की गई, लेकिन यहां सवाल विपक्ष को लेकर अधिक है, क्योंकि कई बार प्रयास किए जाने के बाद भी विपक्ष सत्तारूढ बीजेपी से मुकाबला नहीं कर पाया है, इस बार भले ही रणनीति के तहत विपक्ष ने कुछ और आगे बढ़ने का प्रयास किया हो, लेकिन अभी राजनीतिक गलियारों में तमाम ऐसे सवाल हैं, जिनसे पार पाना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा।
राजनीतिक जानकार विपक्ष की एकता को लेकर बहुत अधिक आश्वस्त नहीं दिखाई दे रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्षी एकता के लिए भले ही तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन कुछ मुद्दों पर अभी तक विभिन्न दलों के बीच पूर्ण सहमति नहीं बन सकी है। केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग, महंगाई या संसद में विपक्ष को बोलने का पूरा मौका न दिया जाना, इन मुद्दों पर निश्चित ही विपक्षी कुनबा एकमत है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती और असहमति का मुद्दा है लोकसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा कैसे किया जाएगा ? हालांकि इस मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों के बीच क्या सहमति बनी है, इसकी तस्वीर आने वाले दिनों में साफ हो पाएगी। सीटों के बंटवारे को लेकर कोई अनबन न हो, इससे बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
जैसे ही, राजनीतिक विश्लेषकों में इस बात को लेकर चर्चा होने लगी तो बीजेपी से बगावत करने वाले जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विपक्षी दलों को सलाह दी कि वे गंभीरता के साथ भाजपा को टक्कर देना चाहते हैं, तो उन्हें ‘एक सीट, एक उम्मीदवार’ का फॉर्मूला अपनाना पड़ेगा, पर विपक्षी दलों के लिए इस फॉर्मूले पर काम करना आसान नहीं होगा, यही वजह उनके बीच अनबन का सबसे बड़ा कारण बनेगा, हालांकि इस समस्या के समाधान के लिए विपक्ष ने पांच नेताओं की एक्शन टीम तैयार की है, जो इस संबंध में सभी से बातचीत कर सके। इस टीम में मल्लिकार्जुन खरगे, शरद पवार, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी और नीतीश कुमार जैसे नेता शामिल हैं। इसे बफर जोन की संज्ञा दी गई है, जिसका मतलब है कि गठबंधन की कोई भी बात बाहर न जाने पाए और कोई भी नेता मीडिया में कोई भी बयान न दे।
जिस बात पर विवाद है, उस पर चुप रहें और एक्शन टीम के निर्णय का इंतजार करें। विपक्षी खेमें में इन नेताओं की सबके साथ बातचीत है। जब केजरीवाल इस बैठक में शामिल होने को लेकर आनाकानी कर रहे थे, तो नीतीश कुमार और ममता बनर्जी ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई। इस बाबत सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से बात की गई। कांग्रेस पार्टी ने केजरीवाल की बात मानकर उन्हें अध्यादेश को लेकर समर्थन दे दिया। राहुल गांधी और लालू प्रसाद यादव के बीच रिश्ते अच्छे रहे हैं। वे किसी भी मुद्दे पर राहुल से बात कर सकते हैं।
माना जा रहा है कि विपक्षी एकता को आगे बढ़ाने के लिए जो प्लेटफार्म तैयार होगा, उसकी जिम्मेदारी सोनिया गांधी को मिल जाए। आरजेडी, पीडीपी व डीएमके सहित कई पार्टियों को कांग्रेस साधेगी। जिन दलों के साथ कांग्रेस पार्टी के नेता, खुद को असहज महसूस करते हैं, उनसे ममता बनर्जी और नीतीश कुमार बातचीत करेंगे। के. चंद्रशेखर राव से नीतीश कुमार बात कर रहे हैं। बीजू जनता दल के संस्थापक एवं उड़ीसा के सीएम नवीन पटनायक से भी चर्चा हो रही है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावी नतीजे, विपक्षी एकता के लिए आगे की राह तय करेंगे।
महागठबंधन की अगली बैठक मुंबई में होनी है, लेकिन इसकी अभी तारीख तय नहीं की गई है। कोशिश की जा रही है कि लोकसभा चुनावों को लेकर सीटों के बंटबारे को लेकर स्थिति को स्पष्ट कर दिया जाएगा, लेकिन सीटों के बंटबारे को लेकर ही सबसे अधिक ऊहापोह की स्थिति विपक्ष में न केवल बनी है, बल्कि आगे भी बनी रहेगी। भले ही, बीजेपी को हराने को लेकर विपक्षी एकसुर में दिखाई दे रहे हों, लेकिन उसके लिए सीटों में तालमेल बिठाने के साथ ही एनडीए का किला भेदना आसान नहीं होगा। अगर, विपक्ष को सफलता भी मिलती है तो आगे का क्या स्वरूप होगा, उसको लेकर भी मतभेद की संभावना से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
अभी तक विपक्ष का चेहरा कौन होगा, इस बात भी तय नहीं है, ऐसे में किसके चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ा जाएगा, यह भी अपने-आप में एक बहुत बड़ा मुद्दा है। लिहाजा, विपक्ष को चुनाव में सफलता हासिल करनी है तो उन्हें चुनाव से पहले ही अपने सारे विवादों की कड़ी को समाप्त करना होगा, तभी कुछ सफलता की उम्मीद आगे दिखाई दे सकती है।