मानवता के अस्तित्व के लिए स्मृति महत्त्वपूर्ण है: मीनाक्षी लेखी
नई दिल्ली, 20 जून, मंगलवार।
‘यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम’ पर विचार-मंथन करने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के कला निधि प्रभाग ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में केंद्रीय संस्कृति और विदेश राज्य मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी मुख्य अतिथि थीं और विशिष्ट अतिथि थे यूनेस्को के नई दिल्ली स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के ऑफिसर इंचार्ज श्री हेजेकील देलमिनी और भारत के संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री लिली पांडेय। सत्र की अध्यक्षता आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने की। इस अवसर पर आईजीएनसीए के कला निधि प्रभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश सी. गौड़ (कार्यक्रम के निदेशक व आईएसी, यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम के सदस्य) भी उपस्थित थे। इस अवसर पर आईजीएनसीए द्वारा प्रकाशित प्रो. रमेश चंद्र गौर और श्री विस्मय बसु की पुस्तक ‘मैपिंग ऑफ आर्काइव्स इन इंडिया’ का विमोचन किया गया।
मुख्य अतिथि केंद्रीय राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने इस अवसर पर कहा कि कई बार कार्य की विकरालता ऐसी होती है कि वह कभी पूरा ही नहीं होता। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, क्षेत्रीय और व्यक्तिगत, हर स्तर पर स्मृति का एक तंत्र होता है। व्यक्तिगत स्तर पर शरीर की प्रत्येक कोशिका में स्मृति होती है और हम इसलिए जीवित हैं, क्योंकि कोशिकाओं के बीच स्मृति का आदान-प्रदान होता है। इसलिए प्रतीकात्मक रूप से व्यक्ति, समाज और सभ्यता के लिए स्मृति महत्त्वपूर्ण है, इस कारण से वैश्विक स्मृति को जीवित रखने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि प्राकृतिक आपदाएं तबाही मचा सकती हैं, लेकिन हम स्मृति के माध्यम से यह भी सीख सकते हैं कि कैसे जीवित रहना है। उन्होंने कहा कि साम्राज्यवादी अतीत के कारण ज्ञान का विघटन और ज्ञान का अपहरण हुआ। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस प्रकार का ज्ञान लोगों के लिए सुलभ होना चाहिए और यह यूनेस्को के एजेंडे का हिस्सा होना चाहिए। उन्होंने अपने भाषण का समापन यह कहते हुए किया कि विश्व सहयोग की ओर देख रहा है और वैश्विक संस्थाओं को व्यवस्था को गहराई से देखने की आवश्यकता है और राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने के साथ इसकपी शुरुआत करने की आवश्यकता है।
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय में संयुक्त सचिव सुश्री लिली पंड्या ने कहा कि दस्तावेजी विरासत मूर्त रूप में हमारी सामूहिक स्मृति का प्रतिनिधि है। हमें एक अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय रजिस्टर मेनटेन करने की आवश्यकता है, इसके संरक्षण के बिना मानवता की विरासत दरिद्र हो जाएगी। श्री हेज़ेकील देलमिनी ने कहा कि ‘यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम’ दस्तावेजी विरासत और उसको प्रसारित करने का एक जीवंत कार्यक्रम है। श्री दलामिनी ने आईजीएनसीए के प्रयासों की प्रशंसा भी की और कहा कि ‘मैपिंग ऑफ आर्काइव्स इन इंडिया’ पुस्तक का प्रकाशन भागीदारों के संस्थागत समर्थन पर प्रकाश डालने में मददगार है।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अपने समापन भाषण में कहा कि यह बहुत गर्व की बात है कि आईजीएनसीए भारत में यूनेस्को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड प्रोग्राम का अब तक का पहला मंथन सत्र आयोजित कर रहा है। उन्होंने कहा कि मानव जाति का इतिहास अलेक्जेंड्रिया के पुस्तकालय से लेकर नालंदा के पुस्तकालय तक के विनाश के उदाहरणों से भरा हुआ है। उन्होंने बताया कि प्रतिशोध की भावना से पुस्तकालयों को नष्ट कर दिया गया था, इसलिए उपभोक्तावाद के इस युग में हमें अपनी विरासत को संरक्षित और सुरक्षित करने की आवश्यकता है। डॉ. जोशी ने ऐसी परियोजनाओं के साथ आईजीएनसीए पर भरोसा करने के लिए संबंधित एजेंसियों के साथ-साथ सभी को धन्यवाद दिया। इससे पहले, प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने अपने उद्घाटन भाषण में मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम के बारे में दर्शकों को बताते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम विरासत के संरक्षण और प्रसार में महत्त्वपूर्ण हैं।
इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि 2014 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम के नोडल सेंटर के रूप में नामित किए जाने के बाद, आईजीएनसीए ने अंतरराष्ट्रीय रजिस्टर में पांच नामांकन- गिलगित पांडुलिपि, मैत्रेयवराकरण, अभिनवगुप्त, नाट्य शास्त्र और 2022 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन अभिलेखागार की पहली शिखर बैठक (संयुक्त नामांकन) प्रस्तुत किए हैं।
गौरतलब है कि यूनेस्को ने 1992 में ‘मेमोरी ऑफ वर्ल्ड प्रोग्राम’ की शुरुआत की थी। मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम एक अंतरराष्ट्रीय पहल और सहयोग रणनीति है, जिसका उद्देश्य विश्व की दस्तावेजी विरासत के संरक्षण की सुविधा प्रदान करना है, विशेष रूप से संघर्ष और प्राकृतिक आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में। साथ ही, इसका उद्देश्य दुनिया भर में दस्तावेजी विरासत तक सार्वभौमिक पहुंच को समर्थ बनाना और व्यापक जनसमूह के बीच दस्तावेजी विरासत के महत्व के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना है। मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम मूल्यवान अभिलेखीय स्वामित्व के संरक्षण की आवश्यकता पर बल देता है और यह अंतरराष्ट्रीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय महत्व की दस्तावेजी विरासत को भी मान्यता देता है, इसका रजिस्टर मेंटेन करता है और पहचान किए गए संग्रहों को एक लोगो प्रदान करता है।