विकलांग अनवारूल ने अलविदा जुम्मा का रखा रोजा
बड़कागांव
बड़कागांव: रमजान का पवित्र महीना अब अपने अंतिम पड़ाव में हुआ। रमजान के पवित्र महीने मुस्लिम समुदाय के औरत, मर्द, बुजुर्ग, युवा, और सेहत मंद लोग रमजान के रोजे रख रहे हैं। बड़कागांव प्रखंड के ग्राम बादम निवासी सजरुल हसन का 13 वर्षीय पुत्र अनवारूल हसन ने भी अलविदा जुम्मे का रोजा रखा। 13 वर्ष के बच्चे का रोज रखना आम बात है लेकिन अनवारूल का मामला अलग है। अनवारूल हाथ और पैर से पूरी तरह विकलांग है। बातें भी बहुत कम करता है। अनवारूल को व्हील चेयर या फिर गोदी में उठा कर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है। अनवारूल से पूछने पर मासूम अदा के साथ मुस्कुराते हुए बताया के रोजा रखने में कोई परेशानी नहीं होती है। जब सवाल किया के तुम सेहरी में क्या खाते हो तो किया मुस्कुराते हुए तोतली जबान में अनवारूल ने कहा टेट, रोती औल दूध (यानी केक, रोटी और दूध) खाते हैं। इस दौरान अनवारूल काफी खुश नजर आया। अनवारूल के दादा मेहरुल हसन ने बताया के अनवारूल का ये पांचवां रोजा है।
श्री हसन से हम ने कहा के अनवारूल विकलांग है तो इसे रोजा क्यूं रखने देते हैं, इस्लाम धर्म में पूरी तरह से स्वास्थ्य लोगों पर रोजा फ़र्ज़ है। तो उन्होंने कहा के हमलोग मना करते हैं लेकिन प्रत्येक शुक्रवार को अनवारूल रोजा रखने के लिए जिद्द कर देता है और किसी की नहीं सुनता। हमलोग भी चाहते हैं के कुदरत ने तो अनवारूल को विकलांग पैदा किया है लेकिन जिस काम से अनवारूल खुश होता है और अगर वो गलत काम नहीं है तो उसे करने दें।
अनवारूल का रोजा रखना हमें शिक्षा देता है के परिस्थिति कैसी भी हो हमें अपने अल्लाह, भगवान ईश्वर को नहीं भूलना चाहिए।