कलश यात्रा के साथ श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ
फतेहपुर
भव्य एवं पारंपरिक वेश में सोमवार से फतेहपुर प्रखंड क्षेत्र के अंतर्गत खामारवाद पंचायत के कालूपहाड़ी गाँव में श्रीमद् भागवत कथा का कलश यात्रा गाजे-बाजे के साथ शुभारंभ हुआ। कलश यात्रा बजरंगवली मंदिर परिसर से शुरू हुई और काली मंदिर, दुर्गा व गाँव के गली से होते हुए वापस मंदिर परिसर में पहुंचकर संपन्न हुई। यात्रा में 351 कन्यों और महिला श्रद्धालु पीत वस्त्र पहन कर व सिर पर कलश धारण कर शामिल हुई। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं और वैष्णवों ने भक्ति में लीन होकर “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे, ” “जय भारत माता, ” “जय श्रीकृष्ण, ” और “राधारानी की जय ” जैसे जयघोष लगाए। पंडित भगीरथ पाठक ने ठाकुर पोखर से कलश में पवित्र जल भरकर वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार विधिपूर्वक कलश स्थापना की। इसी दौरान कथावाचाक राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल नंदन महाराज सह क्षेत्र के पंडित भगीरथ पाठक के नेतृत्व में कथा आयोजन स्थल से पवित्र जलस्त्रोत से जल भरने के साथ शुरू हुई और कलश यात्रा में बड़ी संख्या में महिला श्रद्धालु शामिल रहीं। पवित्र जलस्त्रोत ठाकुर पोखर से कलश को भर कर लाने के बाद कथा आयोजन स्थल पर धार्मिक विधि एवं मंत्रोच्चरण के साथ स्थापित किया गया। आरती के साथ शुरू किए गए श्रीमद् भागवत कथा में गोपाल नंदन महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम इसकी महिमा से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि विश्व में सभी कथाओं में ये श्रेष्ठ मानी गई है। जिस स्थान पर इस कथा का आयोजन होता है, वो तीर्थ स्थल कहलाता है। इसका सुनने एवं आयोजन कराने का सौभाग्य भी प्रभु प्रेमियां को ही मिलता है। ऐसे में अगर कोई दूसरा अन्य भी इसे गलती से भी श्रवण कर लेता है, तो भी वो कई पापों से मुक्ति पा लेता है। इसलिए सात दिन तक चलने वाली इस पवित्र कथा को श्रवण करके अपने जीवन को सुधारने का मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। अगर कोई सात तक किसी व्यवस्तता के कारण नहीं सुन सकता है, तो वह दो तीन या चार दिन ही इसे सुनने के लिए अपना समय अवश्य निकालें। तब भी वो इसका फल प्राप्त करता है, क्योंकि ये कथा भगवान श्री कृष्ण के मुख की वाणी है, जिसमें उनके अवतार से लेकर कंस वध का प्रसंग का उल्लेख होने के साथ साथ इसकी व्यक्ति के जीवन में महत्ता के बारे में भी बताया गया है। इसके सुनने के प्रभाव से मनुष्य बुराई त्याग कर धर्म के रास्ते पर चलने के साथ साथ मोक्ष को प्राप्त करता है। महाराज ने बताया कि इस कथा को सबसे पहले अभिमन्यु के बेटे राजा परीक्षित ने सुना था, जिसके प्रभाव से उसके अंदर तक्षक नामक नाग के काटने से होने वाली मृत्य़ु का भय दूर हुआ और उसने मोक्ष को प्राप्त किया था। मौके पर सैकड़ों ही संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे ।