10 दिवसीय ” आत्म मोक्षार्थम जगत हिताय च” अभियान संपन्न
संसार की सेवा करनी है और स्वयं के लिए साधना करनी है इसी में उसकी सर्वांगीण मुक्ति है।
10 दिवसीय ” आत्म मोक्षार्थम जगत हिताय च” अभियान में 2 दिन एक प्रहर अखंड कीर्तन, 500 लोगों के बीच नारायण सेवा, 400 साड़ी एवं धोती, 500 फलदार पौधा वितरण, चिकित्सा शिविर, 6 मोतियाबिंद रोगी का लैंस प्रत्यारोपण एवं 1 घंटे का रक्तदान शिविर
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जमशेदपुर:
आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से 10 दिवसीय ” आत्म मोक्षार्थम जगत हिताय च” अभियान चलाया गया।
अपने मोक्ष के साथ जगत का हित करते हुए आगे बढ़ना इस 10 दिवसीय ” आत्म मोक्षार्थम जगत हिताय च” अभियान का उद्देश्य है।अध्यात्मिक वातावरण में जगत के हित के लिए 2 दिन एक प्रहर का “बाबा नाम केवलम् “अखंड कीर्तन, 500 लोगों के बीच नारायण सेवा, 400 साड़ी एवं धोती वितरण , 500 फलदार पौधा वितरण, चिकित्सा शिविर, 6 मोतियाबिंद रोगी का लैंस प्रत्यारोपण एवं 1 घंटे का रक्तदान शिविर । प्रत्येक कार्यक्रम अध्यात्म पर आधारित थे सभी सेवा मूलक कार्यक्रमों में परमात्मा के एक नाम “बाबा नाम केवलम्” मंत्र जाप करने कि बात बताई गई।आनंद मार्ग के सुनील आनंद ने कहा कि 10 दिवसीय ” आत्म मोक्षार्थम जगत हिताय च” अभियान में “आत्म मोक्षार्थम जगत हिताय च” अभियान का उद्देश्य यह है कि अपने मोक्ष के साथ जगत का हित करते हुए आगे बढ़ना
मनुष्य इस दुनिया में आए हैं कुछ करने के लिए। वे आगे के दिनों में जीवित रहना चाहते हैं तो क्यों चाहते हैं? अधिक दिनों तक जीवित रहना चाहते हैं, कर्म करने के लिए। इसी भावना से प्रेरित होकर अधिक दिन जीवित रहने की कामना करें। अगर हम कर्म करना नहीं चाहेंगे, दुनिया की सेवा करना नहीं चाहेंगे तो हम दुनिया का बोझ बन कर रह जाएंगे।
आनंद मार्ग के संस्थापक श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने कहा है कि ‘काम करते करते मरो और मरते-मरते भी काम करते रहो।’ इसलिए इस बात को मन में हमेशा रखना चाहिए कि ‘मैं इस संसार में अपने मिशन को पूरा करने के लिए ही जीवित हूं। इसी कारण से मैं खा रहा हूं, मैं पोशाक पहन रहा हूं, मैं सो रहा हूं। इसको छोड़ कर मेरे लिए सब व्यर्थ है।’ और यदि बिना किसी लक्ष्य के, बिना मिशन के, कोई जीवन जीता है तो उस अवस्था में कोई भी प्रयत्न मानसिक क्षेत्र में सफलता नहीं ला सकता। यदि हम काम करना नहीं चाहते हैं, यदि हम संसार की सेवा करना नहीं चाहते हैं, तब हम संसार के लिए एक भार हो जाएंगे।
मानसिक क्षेत्र के ऊपर आध्यात्मिक क्षेत्र है। आध्यात्मिक जगत में केवल अपने मिशन के विषय में चिंतन करना ही पर्याप्त नहीं है, क्योंकि मिशन का उद्देश्य है बाहरी जगत में सेवा करना। वस्तु जगत में, बाह्य जगत में किसी का कोई भी मिशन क्यों न हो, मूल रूप से उसके मिशन का उद्देश्य है जगत के कल्याण को बढ़ा देना। लेकिन गति जब भीतर की ओर होती है, यानी गति जब मन से आत्मा की ओर होती है, तब मिशन का भी कोई महत्व नहीं है, क्योंकि तब हम अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को परमपुरुष में विसर्जित करने जा रहे हैं। हम अपने जगत कल्याण के मिशन- जगत्हिताय (जगत के हित के लिए)- में सक्रिय रह सकते हैं, किन्तु यही पर्याप्त नहीं है।
वास्तव में मनुष्य जीवन क्यों है, किस वास्ते है? ‘आत्ममोक्षार्थम् जगत् हिताय च’ यानी आत्मा के मोक्ष के साथ समाज सेवा। जगत के हित के लिए अवश्य ही और उसके साथ यह भी बोलना पड़ेगा कि ‘आत्ममोक्षार्थम्’। आत्ममोक्षार्थम् के लिए जो प्रयास नहीं करते हैं, साधना नहीं करते हैं, उनसे जगत का कल्याण नहीं होता है, उनसे दुनिया का कल्याण हो नहीं सकता है। यदि हम अपने मिशन का कार्य करने के लिए शपथ लेते हैं तो याद रखें कि शपथ हमारी मुक्ति की आकांक्षा को संभव नहीं बनाएगा, यद्यपि उस संकल्प के द्वारा हम जगत की सेवा कर सकते हैं। इसलिए आध्यात्मिक क्षेत्र में हमारी प्रगति केवल हमारे मिशन पर निर्भर नहीं है।
मानव अस्तित्व का महत्व इसमें है कि उसे संसार की सेवा करनी है और स्वयं के लिए साधना करनी है। इसी में उसकी सर्वांगीण मुक्ति है। यहां हमको अवश्य ही याद रखना है कि मुक्ति का अर्थ केवल आध्यात्मिक क्षेत्र में ही मुक्ति से नहीं है। मानवता को जीवन के सभी स्तरों पर मुक्ति चाहिए। बिना अपवाद के उसे जीवन के सभी क्षेत्रों में मुक्ति चाहिए। संपूर्ण मानवता सामाजिक क्षेत्र में मुक्ति चाहती है, वह आर्थिक क्षेत्र में मुक्ति चाहती है, वह बौद्धिक स्वतंत्रता के क्षेत्र में मुक्ति चाहती है और वह आध्यात्मिक क्षेत्र में मुक्ति चाहती है। यह सब मनुष्य की न्यूनतम आकांक्षाएं हैं।
आध्यात्मिक प्रगति के इस क्षेत्र में- आत्ममोक्षार्थम् (आत्मानुभूति के लिए, मोक्ष के लिए) केवल उसके मिशन का विचार ही पर्याप्त नहीं है। हमारे मिशन में हमारे काम का परिणाम ही हमारी सेवा के रूप में माना जाएगा और हमारी वह सेवा जब ‘गुरुमंत्र’ के द्वारा पवित्र होगी, तब हम आध्यात्मिक रूप से उन्नत होंगे। किंतु जब आध्यात्मिक मुक्ति का प्रश्न उठता है, तब वहां हमें ‘इष्ट मंत्र’ की आवश्यकता होगी। मंत्र क्या है? मंत्र वह है, जिसको बार-बार दोहराने पर वह त्राण (छुटकारा), मुक्ति का रास्ता दिखला देता है।