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    Home » विश्वपटल पर देशहित की बात और राजनीतिक धींगामुश्ती
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    विश्वपटल पर देशहित की बात और राजनीतिक धींगामुश्ती

    News DeskBy News DeskMay 26, 2025No Comments6 Mins Read
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    निशिकांत ठाकुर

    भला हो भारतीय सेना का, जिसने अपने अदम्य साहस, देश के प्रति अपने कर्तव्य का बेहतरीन प्रदर्शन और निर्वहन किया तथा पाकिस्तान को उसकी औकात बताते हुए उन्हें अपनी जगह पर बने रहने की सीमा दिखाई। वैसे देश की सुरक्षा के लिए तैनात पराक्रमी सैनिक ही युद्ध लड़ते हैं, लेकिन विश्व का नियम है कि उसका सारा श्रेय राजनीतिज्ञों को ही मिलता है। यही विश्व के सभी देशों में होता रहा है और आगे भी ऐसा ही होता रहेगा। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि देश के बाहर का यदि आक्रमण होता है, तो उसका सबसे बड़ा उद्देश्य वहां की सत्ता को अपनी पकड़ में लेना होता है;  यही नियम है और यही होता रहा है। सत्ता पर काबिज होने के कारण फिर तो वह पूरे देश पर अपना राज्य कायम कर ही लेता है। आज जिस नीति से भी हो, भारत ने अपने पक्ष का सेहरा बांधते हुए देश में शांति का वातावरण कायम किया। अब इस पर आलोचक कई तरह के आरोप लगा रहे हैं और वह लगाते भी रहेंगे। ऐसा इसलिए, कि भारत एक लोकतांत्रिक लिखित संविधान द्वारा चलने वाला देश है, जहां के विपक्ष और मीडिया को यह अधिकार प्राप्त है कि सरकार के गुण-दोषों पर समाज के समक्ष चर्चा करे,  उसे  उजागर करे; जनहित के लिए विपक्ष का पक्ष भी सार्वजनिक करे।

    अब युद्ध बंद है, जिसके कारण शांतिपूर्ण हवा में सांस लेने का एक अलग ही सुख देशवासियों को मिल रहा है। पत्रकारों को अब युद्ध के विश्लेषण का अवसर मिला है, तो वह उनकी गहन समीक्षा करेंगे । यदि देश ने कुछ अच्छा किया है, तो उसकी बात की जाएगी और यदि देश की नीति में कोई कमी रह गई है तो उसका भी विश्लेषण करेंगे, ताकि भविष्य में हमारी ओर से कोई कमी रह गई हो, तो उसे समय रहते दूर कर लिया जाए। विश्व के हर नागरिक को यह अधिकार है कि वह अपना पक्ष रखे और जो उसकी अच्छाई है, उसे अपने हित में प्रचारित करे। इन्हीं नीतियों के तहत सरकार ने एक अच्छा निर्णय लिया है कि भारत अपनी बात विश्वमंच पर साझा करे। इन्हीं नीतियों को वर्तमान सरकार द्वारा अमल में लाने के लिए पाकिस्तान की करतूतें विश्व के समक्ष उजागर करने के लिए भारत की ओर से एक टीम बनाकर विश्व के तीस देशों में संवाद कायम करेगी। हमारी शान्तिप्रियता को किस तरह से पाकिस्तान ने बार बार युद्ध रचकर साजिश किया और भारत ने उसकी कुटिल नीतियों का मजबूर होकर कैसे विरोध किया।

    इन दलों में कई संसदीय, राजनीतिज्ञ और विदेशी मामलों के जानकार शामिल हैं। लेकिन, विरोधी नेताओं द्वारा यह कहा जाने लगा है कि इन सभी दलों में कुछ दागी सदस्य भी शामिल हैं, जिन्होंने देशहित में कम, अपने हित के लिए अधिक काम किया है। विपक्षी दलों द्वारा जिसके लिए कहा गया था कि उन्हें दरकिनार करते हुए विवादित छवि के नेताओं को शामिल किया गया। यदि सही विश्लेषण किया जाए, तो फिर विपक्षी दलों के आरोपों को भी कहने का अधिकार सरकार को देना चाहिए। वैसे, देश की छवि के प्रचार के क्रम में किसी भी सदस्य की छवि को खराब करना उचित ही नहीं, अपितु आपत्तिजनक भी है। आपको याद होगा वर्ष 1994 की बात। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के सत्र में एक प्रतिनिधिमंडल को भेजने का फैसला किया था। इसका उद्देश्य था कि कश्मीर समस्या पर भारत का पक्ष रखते हुए पाकिस्तान द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव को असफल किया जाए, जिसमें दिल्ली की निंदा की जाती थी। उस वक्त यह प्रस्ताव इतना सफल रहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल की वजह से पाकिस्तान का प्रस्ताव गिर गया था।

    यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि ऐसा ही इतिहास रहा है। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने विदेशी मामलों के धुरंधर राजनीतिज्ञ को विश्व पटल पर भारत का पक्ष रखने का फैसला किया था। यह भी इतिहास है कि अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में वह प्रतिनिधिमंडल अपनी बात कहने में सफल रहा। यहां यही कहा जा सकता है कि सत्तापक्ष और विपक्ष की बात तो अपने ही देश के अंदर की राजनीति है, लेकिन विदेश में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए यदि कोई भेजा जाता है, तो वह देश की ही बात करेगा। यहां प्रतिनिधिमंडल में शामिल कई नामों पर विपक्ष ने आपत्ति दर्ज कराई है। उनमें सबसे प्रमुख नाम तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद शशि थरूर के नाम पर चर्चा गर्म है। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि इस बीच उनका प्रधानमंत्री से निकटता बढ़ी है। इस पर भाजपा की ओर से आपत्ति दर्ज कराते हुए पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का उदाहरण दिया जा रहा है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि जिन सांसदों की सूची कांग्रेस द्वारा सरकार को सौंपी गई थी, उसमें शशि थरूर का नाम नहीं दिया गया था, फिर नियम का उल्लंघन करते हुए सरकार ने उनका नाम शामिल किया। वैसे, विपक्ष द्वारा दर्ज कराई गई इस आपत्ति को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि जब पार्टी की ओर से शशि थरूर का नाम नहीं दिया गया था, तो प्रतिनिधिमंडल में उनका नाम शामिल किस आधार पर किया गया! क्या यह पार्टी को तोड़ने के लिए  सरकार द्वारा फूट तो नहीं डाला जा रहा है?

    जो भी हो यह देश विपक्षी दलों को सार्वजनिक तौर पर अपना पक्ष रखने का अधिकार देता है और रही बात शशि थरूर की, तो वह अयोग्य और दागी तो कतई नहीं हैं। लेकिन, यह बात भी सच है कि इस बीच प्रधानमंत्री से उनकी नजदीकियां बढ़ी हैं, जो कांग्रेस को असहज करती है और इसी वजह से उनकी नजदीकी अभी भी देश में चर्चा ही नहीं, विवाद का विषय भी बना हुआ है। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या  कांग्रेस से भाजपा नेता भी दल तो नहीं बदलने वाले हैं। वैसे, यही तो राजनीति है और यदि कोई राजनीतिक क्षेत्र में रहकर राजनीति ही न करे, तो वह कैसा राजनीतिज्ञ? पर इतनी बात तो सच है ही कि कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है और वह अंग्रेजों से उलझते हुए अपने उतार—चढ़ाव को देखा है, इसलिए अभी से यह कहना कि विदेश जाने वाले प्रतिनिधिमंडल का कोई सदस्य देश की आंतरिक स्थिति को कहीं और साझा नहीं करेंगे और देशहित के अपने खास मिशन में अवश्य सफल होंगे। वैसे यह राजनीति है, जहां लगभग सभी कुछ देशहित के नाम पर ही किया जाता है, लेकिन जब किसी के बुरे दिन आते हैं, तो वह कुछ ही दिनों में विलीन भी हो जाता है। ऐसे उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है और ऐसा ही कयास लगाया भी जा रहा है। पानी की गहराई में उतरने के बाद ही पता चलती है कि सच क्या है और झूठ क्या है।

    (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)

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